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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१३२ ®समय के तीव्र प्रवाह में सब कुछ बह जाता है... रह जाता है, मात्र बीती बातों
की यादों का लंबा कारवां! और फिर मन यादों के खंडहर में भटकता है, बावरा सा होकर! ® साधक जीवन में अति जनसंपर्क, सामाजिक जीवन वगैरह बहिर्मुखी वृत्ति
प्रवृत्तियाँ बाधक बनती हैं। ® ज्ञानसाधना एवं ध्यानसाधना की प्राचीन परंपरा आज तो लुप्तप्राय: हो
चुकी है। ® आज का साधु-जीवन भी अधिकतर सामाजिक कार्यकलापों का शिकार
बन चुका है! समाज का सतत संपर्क साधु जीवन की मस्ती को फीकी बना डालता है।
पत्र : ३०
प्रिय मुमुक्षु,
धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला। तेरी संवेदनाओं ने मेरे हृदय को स्पर्श किया। काल की अस्खलित गति में हम सभी बह रहे हैं। अवस्थाओं का परिवर्तन होता ही रहता है। ज्ञाता बनकर, द्रष्टा बनकर देखते रहो परिवर्तनों की दुनिया को ।
अभी हम इडर में दस दिन रहे। इडर ऐतिहासिक जगह है। प्राचीनता जगह-जगह बिखरी पड़ी है। काल की अविरत गति के साथ बहुत कुछ बह गया है, परंतु जो कुछ शेष है, वह भी अद्भुत है। पहले भी मैं इस शहर में आया था, परंतु उस समय मेरी अभिरुचि मात्र अध्ययन की थी। मैंने एक बड़ा शास्त्र यहाँ पढ़ डाला था।
इस समय महोत्सव था । महोत्सव पूर्ण होने पर मैं और मेरे साथी मुनिवरहम सब इडर के किले पर गये। थोड़े सोपान चढ़े और हमारे सामने राजमहल आया। बड़ा राजमहल है, परंतु आज उसकी दुर्दशा है। राजाओं की दुर्दशा से भी ज़्यादा दुर्दशा इस महल की है। एक समय था कि इस महल में राजपरिवार की चहलपहल रही होगी। महल के चारों ओर सैनिक खड़े रहते होंगे। महल का कोना-कोना रोशनी से आलोकित होगा। वैभव-संपत्ति इस महल में यथेच्छ क्रीड़ा करती होगी। बड़े-बड़े राजदरबार यहाँ भरे जाते
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