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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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को याद करने चाहिए, जिन सुखों का तूने जानबूझ कर त्याग कर दिया था! जो सुख तेरे पास थे, उन सुखों से बढ़कर दूसरे काल्पनिक सुख तुझे ज़्यादा अच्छे लगे, तूने अपने वास्तविक सुखों का त्याग कर दिया... काल्पनिक सुख पाने के लिए तू दौड़ा... नहीं मिले वे सुख । तू याद कर तेरे वे स्वर्ग से भी बढ़ कर सुख के दिन! इसलिए याद करने को कहता हूँ, चूँकि तू पुनः वे वास्तविक सुख पाने के लिए तत्पर बनें। काल्पनिक वैषयिक सुख के पीछे भटकना छोड़ दे। जो याद हमें सत्कार्य के प्रति प्रेरित करे, वह याद करने में कोई हर्ज नहीं । जो याद हमें मात्र परेशान ही करती हो, वह याद करने में कोई मजा नहीं ।
जब तूने स्वयं आकर तेरे वे पुराने सुखमय, साधनामय और आनंदमय दिनों की याद सुनाई, मेरा मन भी प्रफुल्लित हो गया । जिस सुखमय जीवन को दुःखमय मानकर तूने त्याग दिया था, आज तुझे अपनी वह भूल समझ में आ गई और तेरी वह याद तुझे वास्तविकता की ओर प्रेरित करने वाली बनी, इससे मुझे बेहद खुशी हुई ।
जैसे सुखों की याद नहीं, वैसे दुःखों की फरियाद नहीं ! किसके सामने दुःखों की फरियाद! जो स्वयं दुःखी हैं, उनके सामने दुःखों की फरियाद करने से क्या ? दुःखों की फरियाद करते रहने से दुःख बढ़ते हैं या घटते हैं। यदि दुःख घटते हों तो करते रहो फरियाद । फरियाद करने मात्र से दुःख घटते हों तो मैं दुनिया को कहूँगा कि दुःखों की फरियाद करते रहो । प्रिय मुमुक्षु, दुःखों की फरियाद करने से मन कितना अशांत बना रहता है, कितना अस्वस्थ और चंचल बना रहता है, यह कोई कहने की बात है ?
दुःखों का भय दुःखों की फरियाद करवाता है । दुःखों से क्यों डरना ? अपने ही किए हुए पापों के फलस्वरूप दुःख आते हैं, उनको बिना फरियाद किए भोगते रहो! दुःखों को स्वस्थता से, समाधि से भोगते हुए दुःखों का नाश करो। दूसरे किसी के सामने अपने दुःखों को रोने से आपके दुःख बढ़ जाएँगे । आप अशांत बन जाओगे ।
तू कहेगा : दूसरों के सामने अपने दुःखों की बात करने से मन कुछ हल्कापन महसूस करता है, मन का भार कम होता है।
मेरा कहना है कि मन का भार बढ़ता है! दुःखों की सतत स्मृति ही तो घोर अशांति पैदा करती है ! महासती सीता ने अपने युवा पुत्र लव और कुश के सामने भी अपने दुःख की बात नहीं कही थी ? रामचन्द्रजी के प्रति आक्रोश नहीं किया था। न तो मिथिला- अयोध्या के सुखों को याद किए थे, न तो
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