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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१२८ ® अतीत के सुखों की स्मृति और दुःखों की कड़वाहट मनुष्य के मन को
दु:खी बना डालती है। ® औरों के सामने अपने दुःख का रोना रोने से ठीक है... थोड़ी शब्दों की
सांत्वना मिल जाती है... पर वह क्षणिक होती है! ® सुखों की याद में 'टेम्पररी स्वीटनेस' मिलती होगी पर उस मधुरता के पीछे ___ कड़वाहट की लंबी जलन छिपी रहती है। ® सुखों की याद नहीं... और दु:खों की फरियाद नहीं! ® दु:खों का डर ही तो फरियाद करता-करवाता है! पर दुःखों से डरना क्यों? ® दु:खों के साथ समझौता कर लेने पर फरियाद करने का मन नहीं होगा!
पत्र : २९
प्रिय गुमुक्षु!
धर्मलाभ, वर्षावास के चार महीने पूर्ण हो गए और हमने लींबडी छोड़ भी दिया! संघ और समाज के हजारों स्त्री-पुरुषों ने श्रद्धा, स्नेह और सद्भाव से विदा किया । उनको... उनके हृदय में विरह की व्यथा थी, आँखों में व्यथा के साक्षी
आँसू थे। हालाँकि ऐसे दृश्य प्रतिवर्ष... चातुर्मास पूर्ण कर, विहार करते समय देखते आए हैं। संयोग-वियोग की व्यथापूर्ण कथा तो मैंने हजारों बार मेरे प्रवचनों में कही है, परंतु ऐसे प्रसंगों में अनुभव भी करता रहा हूँ।
मैंने अपने लींबडी के अन्तिम प्रवचन में अपना अन्तिम संदेश दिया : 'सुखों को याद मत करो, दुःखों की फरियाद मत करो।'
भूतकालीन सुखों की याद करते रहने से और दुःखों की फरियाद करते रहने से ही मनुष्य दुःखी बनता है, अशांत बनता है, बेचैन बनता है। जिस मनुष्य के पास भूतकाल में खूब संपत्ति थी, वैभव था, पुत्र-पत्नी-परिवार था, इज्जत थी, सत्ता थी, आज कुछ नहीं है! सब कुछ चला गया है... आज वह अकेला है... ऊपर आकाश है, नीचे धरती है...। यदि यह मनुष्य अपने भूतकालीन सुख-वैभवों को याद करता रहे तो? क्या इस याद से उसको शांति मिलती है? स्वस्थता मिलती है?
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