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जिंदगी इम्तिहान लेती है
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तेरी विशेषताएँ दुनिया नहीं जानेगी, तेरी प्रशंसा नहीं होगी... तू जरा भी अस्वस्थ नहीं होना । तेरी विशेषताओं का प्रतिबिंब अनन्तज्ञानी परमात्माओं में पड़ रहा है... वे तुझे देख रहे हैं, उनकी ज्ञानदृष्टि में तेरा मूल्यांकन हो रहा है... यह जानकर तू संतुष्ट रहना । दूसरों के वैशिष्ट्य की प्रशंसा सुनकर तू विचलित मत होना। दूसरों के सौन्दर्य की 'वाहवाह' सुनकर तू अपनी 'वाहवाही' के लिए लालायित मत होना ।
ज़्यादा नहीं लिखता हूँ आज । दाहिने हाथ का अंगूठा दुःख रहा है .... लिखने में रुकावट कर रहा है... फिर भी धीरे-धीरे लिखता जाता हूँ । मन जब लिखने को प्रेरित करता है, डॉक्टर की आज्ञा का उल्लंघन हो ही जाता है।
इस पत्र के साथ ‘अरिहंत' का तीसरा वर्ष समाप्त हो जाएगा । चतुर्थ वर्ष का नवम्बर से प्रारम्भ हो जाएगा। 'जीवनदृष्टि' कोई नए प्रदेश का दर्शन कर रही है... संभवतः उस नए प्रदेश का दर्शन कराना चाहता हूँ अगले पत्रों में...। तेरी कुशलता चाहता हूँ। जय वीतराग !
२-१०-७८
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प्रियदर्शन