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जिंदगी इम्तिहान लेती है
११७ ® जब तक औरों से लबालब प्रेम की अपेक्षा बनी रहेगी तब तक व्यथा और
वेदना भी बढ़ती रहेगी। ® दुनिया के लोगों से अखंड व अटूट प्रेम की अपेक्षा रखना यानी बबूल के
पेड़ से आम के फल की इच्छा रखना। ® प्रेम देने का तत्व है... लेने का या मांगने का नहीं! पाने की लालसा हृदय
को प्रतिपल जलाती रहेगी। ® प्रेम करना ही है, तो पहले हृदय को अनासक्त एवं विरक्त बनाना जरूरी है।
तो ही सही अर्थ में प्रेम कर सकोगे।
® स्वकेन्द्रित विचारधारा को समष्टि के कल्याण की भावना में परिवर्तित करना होगा।
पत्र : २६
प्रिय गुमुक्षु!
धर्मलाभ, तेरा पत्र मिला, तेरी आन्तर वेदना ने मेरे अन्तःकरण को स्पर्श किया । मैं जानता हूँ, तेरी वेदना द्रव्याश्रित नहीं है, तेरी वेदना भावाश्रित है। द्रव्याश्रित वेदना तुझे कैसे होगी? तुझे जितने और जैसे द्रव्य चाहिए, मिल गए हैं! तेरे मनपसंद द्रव्य मिल गये हैं, इसलिए द्रव्याभावजन्य वेदना संभव नहीं है। अब तुझे चाहिए हृदय के भाव! दूसरों के हृदय के भाव । प्रेमपूर्ण भाव चाहिए। वैसे भाव नहीं मिल रहे हैं, इसलिए तू व्यथित है। ___ तेरी यह व्यथा... यह वेदना बनी रहेगी। जब तक तू दूसरों के प्रेम से लबालब भावों की अपेक्षा रखेगा तब तक तेरे जीवन में व्यथा और वेदना रहेगी ही। मैंने तुझे पहले भी लिखा था कि संसार के किसी भी व्यक्ति के साथ प्रेम अखंड नहीं रह सकता। कैसा भी प्रेम हो, एक दिन टूटेगा ही। इस प्रेम का स्वभाव ही है टूटने का! तू दुनिया के लोगों से अखंड प्रेम की अपेक्षा रखता है। तेरी यह अपेक्षा कभी परिपूर्ण होनेवाली नहीं है। बबूल के वृक्ष से आम्रफल की अपेक्षा रखने वालों को क्या कहना?
फिर भी तुझे करना हो तो कर ले प्रेम! पर यह समझ लेना कि वह प्रेम टूटेगा अवश्य | समझ कर आगे बढ़ना । जब संसार में चारों ओर से तुम्हारा
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