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जिंदगी इम्तिहान लेती है
१०५ जीवन जीने की कला प्राप्त कर ले। कुछ ऐसे विचारों का परिवर्तन कर ले। दुःखपूर्ण संसार में भी ज्ञानी पुरुष आनंद से जी सकता है। उसको दुःख होता है, तो दूसरों को दुःखी देख कर | सुखी जीवन जीने के उपाय... मार्ग होने पर भी जो जीव उस मार्ग पर नहीं चल रहे हैं और दुःखी होते हैं, उनको देखकर ज्ञानी पुरुषों का हृदय दुःखी होता है। उनको अपने स्वयं के कोई दुःख नहीं होते। वे मानसिक सृष्टि के स्वर्ग में जीते हैं। ___ जो मनुष्य अपने आपको दुःखी नहीं मानता है, वह स्वर्ग में ही जीता है। जो मनुष्य अपने आपको दुःखी मानता है, वह नरक में जीता है। क्यों जानबूझकर नरक में जीना? स्वर्ग में जीना सीख लो। तत्त्वज्ञान से ही यह संभव है। परमात्मकृपा से ही यह संभव है।
क्या लिखना था और क्या लिख दिया! तेरे पत्र के प्रत्युत्तर तो सबके सब रह गए। और मैंने मेरी बातें ही लिख दी। यूँ तो तेरा पत्र आने से पूर्व ही यह सब लिखना था, परंतु ‘परमात्म-प्रतिमा-प्रतिष्ठा' महोत्सव में व्यस्त होने से नहीं लिख सका। तेरे प्रश्नों के उत्तर लिखूगा, परंतु आज नहीं... आगे लिखूगा।
'योगोद्वहन' में एक 'कालग्रहण' की विशिष्ट क्रिया करने की होती है। शास्त्र-अध्ययन में 'कालशुद्धि' को कितना महत्त्व दिया है ज्ञानी पुरुषों ने! 'कालशुद्धि' न हो तो शास्त्राध्ययन नहीं हो सकता है। भावशुद्धि में 'कालशुद्धि' प्रबल निमित्त माना है। इस विषय में भी चिंतन हो रहा है। श्रमणजीवन में शास्त्रअध्ययन का कितना महत्वपूर्ण स्थान है। शास्त्रअध्ययन के लिए तप करना पड़ता है, यौगिक क्रियाएँ करनी पड़ती हैं, कालशुद्धि देखनी पड़ती है। कभी तू यहाँ आएगा तब इस विषय में बात करूँगा। है यह थोड़ी गहरी बात, परंतु तू समझ सकेगा।
तेरी चित्त प्रसन्नता चाहता हूँ। डभोई, १ अप्रैल ७८
- प्रियदर्शन
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