________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
जिंदगी इम्तिहान लेती है
१०६ ® वैराग्य केवल साधु जीवन में ही नहीं वरन गृहस्थजीवन में भी उतना ही
जरूरी एवं उपयोगी है। पर यह बाजार से खरीदी जा सके, वैसी चीज नहीं है!
® वैराग्य सहज स्वाभाविक गुण है। जब आत्मा की विकास यात्रा योग
साधना के क्षेत्र में से गुजरती है... तब स्वत: वैराग्य का आविर्भाव होने
लगता है। ॐ कभी भी बाहरी आचरण या क्रियाकलाप से व्यक्ति के व्यक्तित्व का मूल्यांकन
करने की गलती मत करना। ® जड़-चेतन पदार्थों का उपयोग करना एक बात है और उससे लगाव बनाए
रखना अलग बात है। • वैराग्य के साथ-साथ संयम साधना का उत्साह एवं उमंग भी साधक जीवन
में जरूरी है।
पत्र : २४
प्रिय मुमुक्षु!
धर्मलाभ, __ पत्र मिला, तेरी कुशलता, प्रसन्नता से मेरी अन्तरात्मा प्रसन्न बनी। इस पत्र में तूने एक महत्वपूर्ण प्रश्न पूछ लिया है, इसलिए पहले तेरे प्रश्न का प्रत्युत्तर देना उचित लगता है, अन्यथा तुझे अपने मन की बातें कुछ लिख देता! आजकल मन में कुछ समस्याओं का समाधान तात्विक दृष्टि से खोज रहा हूँ। समाधान मिल भी रहे हैं और आन्तर-शांति का प्रशस्त-पथ आलोकित हो रहा है। ___ आज तेरे प्रश्न का उत्तर लिखता हूँ। तेरा प्रश्न है : संयमजीवन-साधु जीवन में मात्र वैराग्य ही अपेक्षित है या दूसरी भी बातें अपेक्षित हैं? हैं, तो कौन-कौन सी?
प्रिय मुमुक्षु! वैराग्य मात्र साधु जीवन में ही नहीं, गृहस्थजीवन में भी इतना ही आवश्यक है। परंतु वैराग्य ऐसी वस्तु नहीं है कि बाजार से खरीद ले आएँ! वैराग्य सहज-स्वाभाविक गुण है। जब आत्मा की विकास यात्रा योग क्षेत्र में प्रवेश करती है, आत्मा में सहज भाव से वैराग्य का आविर्भाव हो जाता है। गृहस्थ मनुष्य का योग के क्षेत्र में प्रवेश हो सकता है। जिसको हम 'मिथ्यादृष्टि'
For Private And Personal Use Only