________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
९२
जिंदगी इम्तिहान लेती है
जीवन की उत्तरावस्था... वृद्धावस्था तो समता-समाधि में व्यतीत होनी ही चाहिए न? यूँ भी आजकल मनुष्य की वृद्धावस्था ज़्यादा दुःखरूप बन रही है। वृद्धों के प्रति उनके परिवारों का स्नेह, सद्भाव घटता जा रहा है। अमरीका U.S.A. में तो वृद्धों की दुर्दशा खूब बढ़ गई है। वहाँ 'एकत्व' का भावनाज्ञान नहीं है और एकत्व में जीना अपरिहार्य बन गया है। बहुत से वृद्ध तो आत्महत्या कर लेते हैं। हाँ, बाह्य सुख-सुविधा होने पर भी उन वृद्धों के चित्त में घोर अशांति होती है। वहाँ के वृद्धों को कोई चाहता नहीं, वृद्धों से कोई प्रेम करता नहीं! वृद्धों ने अपने मन को अनासक्त बनाया नहीं होता है। __'एकत्वभावना' और 'अन्यत्वभावना' से अन्तरात्मा को ऐसा भावित कर लेना चाहिए कि अकेला भी रहना पड़े, जीना पड़े, तो मन में कोई व्यथा न हो, वेदना न हो। सबके साथ जीवन जीने का और सबसे अपना हृदय अलिप्त रखने का! हृदय को किसी भी जड़-चेतन से बाँधने का नहीं। निबंधन रखना हृदय को। निबंधन हृदय ही समता-समाधि का अमृत अनुभव कर सकता है।
प्रिय मुमुक्षु! आज जब पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्रीय परिस्थितियाँ बदल रही हैं, मानवता, नैतिकता, धार्मिकता और आध्यात्मिकता के मूल्यांकन बदल रहे हैं, स्नेह, सद्भाव, वात्सल्य और करुणा जैसे जीवनरस को परिपुष्ट करनेवाले तत्त्व विलीन होते जा रहे हैं... तब समझदार... बुद्धिमान मनुष्य को अपनी आन्तरिक परिस्थिति सुदृढ़ बना लेनी चाहिए | आन्तरिक आनंद मात्र बाह्य सुख-साधन पर निर्भर नहीं है, यह बात समझ लेना। ___पुण्यकर्म और पापकर्म के अधीन जीवात्मा, यदि थोड़ी भी अपनी स्वाधीनता प्राप्त नहीं करेगा, तो कर्मसत्ता उसको कुचल डालेगी। ऐसा कुछ स्वाधीन सुख, स्वाधीन आनंद होना चाहिए कि कैसी भी परिस्थिति में अशांत, क्लेश और सन्ताप हमें सताए नहीं।
तेरे प्रश्नों का उत्तर आज नहीं लिखता हूँ... आज तो मेरे मन की बातें... अभी-अभी किया हुआ चिन्तन ही लिख दिया! तेरे प्रश्नों के उत्तर अवश्य लिखूगा। तेरे मन की प्रसन्नता चाहता हूँ। यहाँ हम सब कुशल हैं, स्वस्थ हैं। तेरा धर्मध्यान निरन्तर चलता रहे, यही मंगल कामना...|
बड़ौदा
२०-१२-७७
- प्रियदर्शन
For Private And Personal Use Only