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जिंदगी इम्तिहान लेती है सरल काम तो नहीं है, परन्तु असम्भव काम भी नहीं है। संसार से हृदय को अलिप्त रखने का मार्ग ज्ञानी पुरुषों ने बताया है। अनेक उपाय बताए हैं... परन्तु हमको अलिप्त होने की तमन्ना चाहिए! लिप्तता में जब तक आनंद माना है, सुख माना है, तब तक अलिप्तता प्रिय कैसे लगेगी? संसार के अनेक पदार्थों के साथ हृदय को बाँध लिया है। व्यवहार को सत्य मान कर हृदय से संसार को जोड़ दिया है।
संसार मिथ्या है, वैसे संसार के सारे व्यवहार भी मिथ्या हैं! व्यवहार तो मात्र व्यवस्था के लिए है। व्यवस्था तंत्र का हृदय के साथ कोई संबंध नहीं है। इसलिए तो तीर्थंकर भगवन्तों ने 'निश्चय' का मार्ग बताया है। निश्चय दृष्टि से आत्म स्वरूप को समझाया है। इस दृष्टि के बिना हृदय अलिप्त, अनासक्त, निराकुल नहीं बन सकेगा। तू गृहस्थ है न? तुझे जैसे व्यवहारमार्ग का ज्ञान होना चाहिए वैसे निश्चय मार्ग का भी ज्ञान होना चाहिए। निश्चय का मार्ग आत्मशांति का मार्ग है। निश्चय दृष्टि नहीं है और मात्र व्यवहार दृष्टि है, तो फिर आत्मशांति नहीं मिलेगी। क्योंकि व्यवहार में विसंवाद रहेंगे ही। व्यवहार में द्वन्द्व रहेंगे ही। इन द्वन्द्वों का, विसंवादों का तेरे हृदय पर प्रभाव पड़ेगा ही, यदि तेरे पास निश्चय दृष्टि नहीं होगी तो!
दुर्भाग्य है आज अपना...| मनुष्य आज ऐसा ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं चाहता । अन्तरात्मा की शांति, समता और प्रसन्नता प्रदान करने वाला ज्ञान प्राप्त करना ही नहीं चाहता। आज तो मनुष्य को चाहिए अर्थ प्राप्ति कराने वाला ज्ञान! तुच्छ मनोरंजन देने वाला ज्ञान! क्षणिक आनंद देनेवाला ज्ञान! दुनिया की कुछ जानकारी देने वाला ज्ञान! कौन चाहता है, निश्चय और व्यवहार का ज्ञान? कौन चाहता है 'उत्सर्ग' और 'अपवाद' का ज्ञान? जीवन अर्थप्रधान और कामप्रधान बन गया है। ज़्यादा से ज़्यादा पैसा कमाना और ज़्यादा से ज़्यादा विषयसुख भोगना! ___ धर्मक्रियाएँ करनेवाले भी आज ज़्यादातर अर्थप्रधान और कामप्रधान दिखते हैं। धर्मक्रिया करते हैं, परन्तु मोक्षसुख पाने के लिए नहीं, संसारसुख पाने के लिए! फिर उनको अन्तरात्मा की शांति कैसे मिले? चित्त की प्रसन्नता कैसे मिले? संसारी हो या साधु हो, ज्ञानदृष्टि के बिना समता-समाधि नहीं मिल सकती।
जिस वृद्ध पुरुष की बात कर रहा हूँ, उस वृद्ध पुरुष ने कभी ऐसा भेदज्ञान पाया ही नहीं है! निश्चय-व्यवहार का ज्ञान प्राप्त किया ही नहीं है... फिर पत्नी का विरह उनको व्यथित नहीं करेगा तो क्या करेगा?
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