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प्रवचन-९
____११७ लोग पापाचरण करते हैं, प्रचुर राग-द्वेष से पापाचरण करते हैं, उनको जो कर्मबन्ध होता है वह कर्मबन्ध प्रगाढ़ होता है अर्थात् उन कर्मों का कटु फल भोगना ही पड़ता है उन्हें ।
सभा में से : तो क्या ऐसे कर्म भी बंधते हैं कि जिन कर्मों का फल जीव को भोगना नहीं पड़े? कर्मों का विपाकोदय एवं प्रदेशोदय : __ महाराजश्री : हाँ, ऐसे कर्म भी बंधते हैं कि जिन कर्मों का फल जीव को नहीं भोगना पड़े। जीव को मालूम ही नहीं पड़ता कि उसके कर्मों का उदय आ रहा है और कर्म नष्ट हो रहे हैं। जैसे अपन घर में सोये हो और कोई मनुष्य घर में आए और जाए! अपन को मालूम नहीं पड़ता है। कर्मों का उदय दो प्रकार से होता है : विपाकोदय और प्रदेशोदय | जिस कर्म का विपाकोदय होता है, जीव को सुख-दुःख का अनुभव करवाएगा ही। जिस कर्म का प्रदेशोदय होता है, जीव को कोई सुख-दुःख का अनुभव नहीं होता, कर्म उदय में आता है और नष्ट हो जाता है। कोई अनुभव नहीं, कोई संवेदन नहीं। कहिए, आपको कैसा कर्मोदय पसंद है? विपाकोदय या प्रदेशोदय? समझ तो गए न बात? धर्म-आराधना से जो कर्म बंधे, उन कर्मों का विपाकोदय हो तो अच्छा और पापाचरण से जो कर्म बंधे, उन कर्मों का प्रदेशोदय हो तो अच्छा । परन्तु कर्मों के उदय में अपनी कुछ नहीं चल सकती, कर्मों के बंध के समय अपनी चल सकती है। जैसा उदय चाहते हो वैसा कर्मबंध होना चाहिए। आप मन-वचनकाया से धर्म-आराधना करोगे तो ऐसा कर्मबंध होगा कि उन कर्मों का विपाकोदय होगा, यानी आपको वे कर्म सुख का अनुभव करवायेंगे | बहुत प्रेम से दान दिया, बहुत दया से परोपकार किया, बहुत भक्ति से परमात्मा का पूजन किया, बहुत सद्भाव से सदगुरु की उपासना की, बहुत वात्सल्य से साधर्मिकों की सेवा की, बहुत श्रद्धा से धर्मतीर्थ की रक्षा की...इत्यादि धर्माचरण से जो कर्मबंध होगा उसका विपाकोदय तब होगा जब वह जीव को सुख का अपूर्व अनुभव करायेगा, दिव्य सुखों का अनुभव कराएगा, दीर्घकाल तक सुखानुभव कराएगा। इस बात का तात्पर्य यह है कि जिस क्रिया में प्रबल राग-द्वेष जुड़े हुए होते हैं-मिलते हैं, उस क्रिया से ऐसा कर्मबंध होता है कि जिसका विपाकोदय होता है। वह क्रिया धर्म की हो या पाप की हो। तीव्र राग-द्वेष से पापक्रिया करोगे तो वैसा कर्मबंध होगा कि जब उसका उदय होगा, तब घोर दुःख का अनुभव कराएगा। इसलिए वीतराग सर्वज्ञ परमात्मा ने कहा कि :
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