________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
११६
प्रवचन-९ पाप को पाप मानना ही होगा, चाहे करना पड़े :
चाहे दूसरे मनुष्यों में दोष हो, आप दोष मत देखें। आपको गुण ही देखने के हैं। एक भी गुण ही देखो, दूसरे में। पेथड़शाह वैसी गुणदृष्टि पाए हुए थे। भीम श्रावक के ब्रह्मचर्य-गुण के प्रति उनको बड़ा आदरभाव पैदा हुआ। वह ब्रह्मचर्य का उच्चतम मूल्यांकन करते थे। हालाँकि वह स्वयं ब्रह्मचारी नहीं थे, उन्होंने शादी की हुई थी और सदाचारी जीवन व्यतीत करते थे। अब्रह्म का सेवन करते थे परन्तु अब्रह्म को अच्छा नहीं मानते थे! उपादेय नहीं मानते थे। क्योंकि वे सम्यकदृष्टि सद्गृहस्थ थे। उनके पास ज्ञानदृष्टि थी। वे पाप को पाप मानते थे, पाप को त्याज्य हेय मानते थे। ऐसा कोई जरूरी नहीं कि हम जो पाप करते हों उसको त्याज्य न समझें। संभव है कि पापों को त्याज्य समझने पर भी हम उन पापों का त्याग नहीं कर सकते हों। ज्ञानदृष्टिवाले मनुष्य के जीवन में भी कुछ पाप हो सकते हैं, परंतु वह मनुष्य उन पापों को त्याज्य दृष्टि से देखता है! पापों की हेयता को समझता है। 'कब अन्तरात्मा की भावना प्रबल हो और मैं इन पापों का त्याग कर दूं।' ऐसा विचार उसको आता रहता है। पेथड़शाह अब्रह्म-मैथुन का सेवन करते थे परन्तु मैथुन को वे पाप मानते थे, मैथुन-क्रिया को वे अच्छी नहीं मानते थे। उनका आदर्श था ब्रह्मचर्य । __जिन लोगों के पास ज्ञानदृष्टि नहीं होती है, वैसे लोग कभी-कभी यह भूल कर बैठते हैं कि जो पापाचरण उनके जीवन में होता है, उसको वे कर्तव्य के रूप में मान लेते हैं! उपादेय मान लेते हैं! इसलिए कभी भी वह पाप उससे छूटता नहीं। इसमें कुछ अहंकार भी काम करता है। कुछ ज्यादा बुद्धिमत्ता भी काम करती है! पापों को कर्तव्यरूप सिद्ध करने में वे अपने आपको बुद्धिमान समझते हैं! मुक्त मन से तभी पाप हो सकते हैं न! वे लोग कहते हैं कि 'पाप करने में भी मन पर भय का दबाव नहीं आना चाहिए, निर्भय होकर पाप करने चाहिए।' वे लोग 'पाप' नहीं बोलेंगे, 'कर्तव्य' कहेंगे। ऐसे बुद्धि के अहंकारी पुरुषों को कौन समझाए? ऐसे लोग समझाने से समझते भी नहीं हैं | पाप का पश्चात्ताप है दिल में?
पापत्याग की अशक्ति से, विवशता से जो लोग पाप करते हैं, उनके हृदय में पापाचरण का घोर दुःख होता है। आवेग में और आवेश में पाप कर तो लेते हैं, परन्तु तत्पश्चात् पश्चात्ताप भी हुए बिना नहीं रहता। ऐसे मनुष्यों को पापाचरण से जो कर्मबन्ध होता है वह शिथिल कर्मबन्ध होता है यानी अल्प कर्म बन्धते हैं, प्रगाढ़ कर्मबन्ध नहीं होता। परन्तु जो अज्ञानी और अहंकारी
For Private And Personal Use Only