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प्रवादपूर्व, प्रथमानुयोग आदि प्राचीन श्रुतो, पण प्रासंगिक स्मरण कर्यु छ । ऋषिचरित, नेमिचरित, सनत्कुमारचरित, वुसदेवहिंडी आदिना पण उल्लेखो आमां छे । विशेष जाणवा माटे जेनो निर्देश अनेक वार करेलो छे, ते उपदेशमालाव्याख्यान (विवरण), तथा द्विमुनिचरित (प्रा.),आ विवरणकारनी अन्य रचनाओ जणाय छे । उपर्युक्त सर्व साहित्य, प्रायः प्राकृत छे अने श्वेताम्बर जैनागम साथे सम्बन्ध धरावे छे, तथा तेनी अविच्छिन्न परम्पराने, प्राचीनताने अने प्रामाणिकताने प्रकाशित करे छे । ग्रन्थकारे सुप्रसिद्ध श्वेताम्बर जैनाचार्य सिद्धसेनदिवाकरनो, वाचकमुख्य(उमास्वाति)नो, तथा अप्रसिद्ध वंदिकाचार्यनो निर्देश करी, तेमनी कृतियोमाथी अवतरणो दर्शाव्यां छे । जैनागम उपरान्त वेद, अक्षपाद, सुगत धर्मकीर्ति, कपिल, सांख्य, काणाद, भागवत आदि अन्य दर्शनोना मन्तव्योना अने रामायण, भारत, नीतिशास्त्र आदिना नाम-निर्देश साथे प्रासंगिक प्रकट उल्लेखो पण कर्या छ । आथी ग्रन्थकारनी बहुश्रुतता प्रकाशित थाय छे, जेनो लाभ समाजने आवी रीते आप्यो छे । __अहीं दर्शावेलाविषयानुक्रम जोवाथी आ ग्रन्थमांना विषयोनो, धर्मोपदेशोनो, तथा तेने अनुसरती कथाओनो सामान्य रीते ख्याल आवशे, अने यथायोग्य पठन-पाठन-परिशीलनथी ग्रन्थनी विशिष्टता सुज्ञोना लक्ष्यमां आवशे । ते साथे, विश्वमा सर्वत्र मैत्री विस्तारनार, अने शान्तिने स्थापनार, विश्व, कल्याण करनार, अहिंसालक्षण, सत्यप्रतिष्ठित जैनधर्म तेना तत्त्वज्ञानमय उत्तम सदुपदेशोथी विश्वधर्मनी वास्तविक प्रतिष्ठाने प्राप्त करे छे, तेवू समजाशे ।
भारतवर्षना प्रतिभाशाली सज्जनो अने परोपकारपरायण पवित्र जीवन गाळता धर्माचार्यो विश्वना विविध विषयो, केतुं विशाल ज्ञान धरावता हता? ते साथे पोताना विशिष्ट बुद्धिवैभवनो, प्राप्त थयेली शक्तिनो, अने पोताना अमूल्य समयनो सदुपयोग तेओ केवां प्रशंसनीय कार्योमां करता हता? ते आवा ग्रन्थ जोवा-जाणवाथी समजाशे । आवी ग्रन्थरचना जोवाजाणवाथी भारतीय श्रेष्ठ प्रतिभा प्रकाशमां आवशे, अने विचारक सुज्ञोना अन्तःकरणोमांथी शतशः सहज धन्यवादना उद्गारो प्रकट करावशे । वर्तमान धर्माचार्योने निज कर्तव्योनी उच्च प्रकारनी प्रेरणा आपशे ।
आवी श्रेष्ठ सरस कृति, आपणा प्रमादथी अने बेदरकारीथी अत्यार सुधी अन्धकारमा रही गई, प्रकाशमां न आवी शकी, एथी एना लाभथी आपणे वंचित रह्या-ए माटे आपणे सखेद शरमावू जोईए । एक हजार वर्षो उपरान्त लगभग एक सो वर्षों वीती जवा छतां सद्भाग्ये आ रचना सुरक्षित रही प्रजा-स्वातन्त्रयना वर्तमान युगमां, अभिनव गूजरात विश्वविद्यालयना प्रादुर्भाववाळा शुभ वातावरणमा प्रकाशमां आवे छे, एथी आपणे आनन्द मानीए । उत्तम धर्मोपदेशोनी आमाला,विद्वज्जनोना करकमलने, तथा कण्ठकमलने विभूषित करशे, एटलं ज नहि, सहृदयोनां हृदयकमलोने उल्लसित करवा पण समर्थ थशे-एवी आशा अस्थाने नथी।
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