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________________ २४ अधर्मीओने पण अध्यात्ममार्गे वाळनार उद्धारक उपदेशोवाळां दृष्टान्तो पण आमां जोवाजाणवा मळशे । विशाल भारतने उज्ज्वल बनावी गयेली आर्य महिलाओनां, सुशील सन्नारीओनां, राजीमती जेवी राजकुमारीओनां, राजरमणीओनां, श्रमणीओनां, सती-महासतीओनां आदर्श पवित्र चरित्रो आ ग्रन्थमां सरस शैलीथी उत्तम प्रकारे दर्शाव्यां छे, ते आर्यावर्तनी पवित्र नीतिरीतिनो अने आर्योनी उच्च संस्कृतिनो सारो ख्याल आपे तेवां छे । एमांथी देशने अने समाजने उच्च प्रकारचं शिक्षण मळी शके तेम छ । पुरुषोने पवित्र मार्गे वाळनारी, पतनमांथी बचावी लेनारी श्रेष्ठ महिलाओनी पुण्यकथा अनन्य प्रेरणा आपशे । ते साथे बीजां केटलांक चतुराईभर्यां स्त्रीचरित्रो पण आमांथी जोवा-जाणवा मळशे, केटलीक अधम स्त्रीओनां निंद्य दुःसाहसोनी कथाओमांथी पण सुज्ञो सद्बोध मेळवी शकशे ।। आ ग्रन्थमांनां धर्ममार्गमां लई जनार, नीतिमय पवित्र सन्मार्ग तरफ प्रेरनार, शान्तरसने पुष्ट करनार, नवरसमय कथानको, आजना नवलिकारसिक नवलकथाकारोने, तथा नवल-कथाप्रेमीओने प्राचीन कथाकारोनी विशिष्ट सरस शैलीनुं परिज्ञान करावशे, पाश्चात्य कथाओथी मुग्ध बनेलाओने भारतीय कथाओनी उत्तमता अने सरसतानो ख्याल करावशे । अत्यन्त प्राचीन समयनी लोकवार्ताओ, परम्पराथी वर्तमानमां उतरी आवी छे, ते आमांनी केटलीय कथाओने वर्तमानमा प्रचलित लोकवार्ताओ साथे सरखावी जोवाथी समजी शकाय तेम छ । देशपरदेशनी वार्ताओने, देशी भाषाओमां प्रचलित कथाओने, आवा प्राचीन प्राकृत साहित्यनी कथाओ साथे सरखाववाथी लोकवार्ता-वृत्तान्तोनां उंडां मूळो समजाशे । तुलनात्मक दृष्टिए अभ्यास करवा योग्य आ गहन छतां रसप्रद विषय छे । दृष्टान्त तरीके आमां दर्शावेली बुद्धिहीन मूर्ख गामडियानी कथा [पृ. २१४]ने 'मूरखो' वार्ता साथे सरखावी शकाय । सम्भव छे के आमांनी केटलीय सरस कथाओने नाटकोमा अने सीनेमानी फिल्मोमां उतारवा ते विषयना निष्णातो ललचाय, तेवी तेनी उत्तम सङ्कलना छ । विवरणकारे प्रारम्भमांश्रुतदेवखें मंगल स्मरण कर्यु छे, तेम प्रायः प्रत्येक विस्तृत कथाना अन्तमां पण तेनुं स्मरण करतां ते ते कथाने श्रुतने अनुसारे रचेली जणावी छे. 'श्रुत' शब्दवडे अहीं जैन आगम-सिद्धान्त प्रकारान्तरे अन्यत्र सूचवेल छे। जैन सिद्धान्तने अनन्य निष्ठ रही, श्रुतदेवीना सान्निध्यथी आ विवरणनी अने तदन्तर्गत कथाओनी पोते रचना करी छे–एवं कविए आमां सूचन कएँ छे । जैन आगमोमां जाणीती कथाओने कविए पोतानी सरस शैलीथी दर्शावी छ। आगमोमां मुख्यतया आवश्यकविवरण, उत्तराध्ययन, ज्ञाताध्ययन, सूत्रकृतांग, दशवैकालिक, आचारकल्प, दशकल्प, व्यवहार आदि सूत्रोनो आधार लीधेलो जणाय छे, केटलेक स्थळे तेनो नामनिर्देश करेलो छे । गणिपिटक (द्वादशांगी), दृष्टिवाद, आत्मप्रवादपूर्व, सत्य mala-t.pm5 2nd proof
SR No.009624
Book TitleDharmopadeshmala prakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaysinhsuri, Chandanbalashree
PublisherBhadrankar Prakashan
Publication Year2010
Total Pages418
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size2 MB
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