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________________ वाणी, व्यवहार में... ऐसे गवाह मिलें तो हमारा तो पूरा केस ही उड़ जाए।' तब मैंने कहा, 'इसका उपाय क्या है?' तब वकील कहता है, 'हम कहें उतना बोलना है।' फिर मैंने कहा, 'कल सोचकर बताऊँगा।' फिर रात को अंदर से जवाब मिला, कि अपने तोता बन जाओ। वकील के कहने से कह रहा हूँ, वैसा भाव रहना चाहिए, और फिर बोलो। बाक़ी, किसीके लिए अच्छा काम करते हो तो हो सके तब तक झठ नहीं बोलना चाहिए। किसीके अच्छे के लिए चोरी नहीं करनी चाहिए। किसीके अच्छे के लिए हिंसा नहीं करनी चाहिए। सब अपनी ही जोखिमदारी है। झूठ बोलने की आपकी इच्छा है अंदर? थोड़ी-बहुत भी? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : फिर भी बोल लिया जाता है, वह हक़ीक़त है न! तो जब झूठ बोला जाए और आपको पता चले कि यह झूठ बोला गया कि तुरन्त 'दादा' के पास माफ़ी माँग लेना कि 'दादा, मुझे झूठ नहीं बोलना है, फिर भी झूठ बोल लिया गया। मझे माफ़ करो। अब फिर झूठ नहीं बोलूँगा।' और फिर भी यदि ऐसा हो जाए तो परेशान नहीं रहना है। माफ़ी माँगते रहना है। उससे उसके गुनाह की वहाँ फिर नोंध नहीं होगी। माफ़ी माँगी मतलब नोंध नहीं होगा। वाणी, व्यवहार में... दादाश्री : बेशक! पर झूठ बोले हों न, उससे तो झूठ बोलने के भाव करते हो, वह उससे भी बढ़कर कर्म कहलाता है। झूठ बोलना तो मानो कर्मफल है। झूठ बोलने के भाव ही, झूठ बोलने का हमारा निश्चय, उससे कर्मबंधन होता है। आपकी समझ में आया? यह वाक्य कुछ हेल्प करेगा आपको? क्या हेल्प करेगा? प्रश्नकर्ता : झूठ बोलना बंद कर देना चाहिए। दादाश्री : नहीं, झूठ बोलने का अभिप्राय ही छोड़ देना चाहिए और झूठ बोला जाए तो पश्चाताप करना चाहिए कि, 'क्या करूँ?! ऐसे झूठ नहीं बोलना चाहिए।' पर झूठ बोला जाना वह बंद नहीं हो सकेगा। पर वह अभिप्राय बंद हो जाएगा। 'अब आज से झूठ नहीं बोलूँगा, झूठ बोलना महापाप है, महा दुःखदायी है और झूठ बोलना ही बंधन है।' ऐसा यदि आपका अभिप्राय हो गया तो आपके झूठ बोलने के पाप बंद हो जाएँगे। और पूर्व में जब तक यह भाव बंद नहीं किया था, तब तक उसके रिएक्शन (प्रतिक्रियाएँ) हैं, उतने बाकी रहेंगे। उतना हिसाब आपको आएगा। आपको फिर उतना झूठ अनिवार्य रूप से बोलना पड़ेगा, तब उसका पश्चाताप कर लेना। अब पश्चाताप करते हो, फिर भी जो झूठ बोले, तो उस कर्मफल का भी फल तो आएगा और फिर उसे भुगतना ही पड़ेगा। तब लोग आपके घर से बाहर निकलकर आपकी बदनामी करेंगे कि, 'क्या, ये चंदूभाई, पढ़े लिखे आदमी, ऐसा झूठ बोले? यह उनकी योग्यता है?!' अर्थात् बदनामी का फल भुगतना पड़ेगा फिर, पश्चाताप करोगे तो भी। और यदि पहले से वह पानी बंद कर दिया हो, 'कॉजेज' ही बंद कर दिए जाएँ, तब फिर 'कॉज़ेज़' का फल और उसका भी फल नहीं होगा। इसलिए हम क्या कहते हैं? झूठ बोला गया पर 'ऐसा नहीं बोलना चाहिए' इस तरह से उसका तू विरोधी है न? हाँ, तो यह झूठ बोलना तुझे पसंद नहीं है, ऐसा निश्चय हो गया कहलाएगा। झूठ बोलने का तेरा अभिप्राय नहीं है न, इसलिए तेरी जिम्मेदारी का 'एन्ड' (अंत) आ जाता प्रश्नकर्ता : हम हररोज़ बातें करते हैं कि यह गलत है, नहीं बोलना चाहिए था, फिर भी वह क्यों हो जाता है? नहीं करना है फिर भी क्यों हो जाता है? दादाश्री : ज़रूरत से अधिक अक्ल अंदर भरकर लाए हैं इसलिए। हमने एक भी दिन कभी किसीको कुछ कहा नहीं है कि ऐसा नहीं करना चाहिए। यदि कहा हो, तो भी सतर्क हो जाते हैं उस घड़ी। प्रश्नकर्ता : हम झूठ बोले हों, वह भी कर्म ही बांधा कहा जाएगा न?
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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