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________________ वाणी, व्यवहार में... ३७ प्रश्नकर्ता : जान-बूझकर गलत करें और फिर प्रतिक्रमण कर लूँगा कहें, तो वह चलेगा? दादाश्री : नहीं, जान-बूझकर मत करना। पर गलत हो जाए तो प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। प्रश्नकर्ता : दूसरों के भले के लिए झूठ बोलना, वह पाप माना जाएगा? दादाश्री : मूल तो झूठ बोलना वही पाप माना जाता है। तो दूसरों के भले के लिए बोलें तो एक तरफ पुण्य बंधा और एक तरफ पाप बंधा। इसलिए इसमें थोड़ा-बहुत तो पाप रहता है। झूठ बोलने से क्या नुकसान होता होगा? विश्वास उठ जाता है अपने पर से। और विश्वास उठ गया मतलब मनुष्य की क़ीमत खतम! प्रश्नकर्ता : और झूठ पकड़ा जाए तब क्या दशा होती है? दादाश्री : हमें कहना चाहिए न कि, 'पकड़ा गया हमारा' और मैं तो कह दूँ कि 'भाई, मैं पकड़ा गया।' हर्ज क्या है? फिर वह भी हँसे और हम भी हँसे। उससे वह समझ जाता है कि इसमें कुछ लेना-देना नहीं है या नुकसान हो वैसा नहीं है। प्रश्नकर्ता : मान लो कि हमारा झूठ आपने पकड़ लिया, तो फिर आपको क्या होता है? दादाश्री : कुछ भी नहीं होता। बहत बार मैं झठ पकडता हैं। मैं जानता हूँ कि ऐसा ही होता है। उससे अधिक आशा हम किस तरह से रखें? __अनंत जन्मों से झूठ ही बोले हैं। सच बोले ही कब हैं? हम पूछे, 'कहाँ गए थे?''रास्ते में घूमने गया था ऐसा कहता है, और गया होता है सिनेमा में। हाँ, पर उसकी तो माफ़ी माँग लेनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : परमार्थ के काम के लिए थोड़ा झूठ बोलें तो उसका वाणी, व्यवहार में... दोष लगता है? दादाश्री : परमार्थ मतलब आत्मा हेतु जो कुछ भी किया जाए, उसका दोष नहीं लगता। और देह के लिए जो कुछ भी किया जाए, गलत किया जाए तो दोष लगता है और अच्छा किया जाए तो गुण लगता है। आत्महेतु हो न, उसके जो-जो कार्य हैं, उनमें कोई दोष नहीं है। सामनेवाले को हमारे निमित्त से दु:ख पड़े तो उसका दोष लगता है! __ झूठ बोलकर भी आत्मा का करते होंगे तो हर्ज नहीं है और सच बोलकर भी देह का हित करोगे तो हर्ज है। सच बोलकर भौतिक का हित करोगे तो भी हर्ज है। पर झूठ बोलकर आत्मा के लिए करोगे न, तो हितकारी है। प्रश्नकर्ता : किसीका अच्छा काम करने के लिए हम झूठ बोलें, तो किसे दोष लगेगा? ऐसा किया जा सकता है? दादाश्री : झूठ बोले उसे दोष लगता है। प्रश्नकर्ता : कोई झूठ बोलने के लिए दबाव डाले तो? दूसरे किसीका अच्छा हो रहा है इसलिए आप झूठ बोलो, ऐसा कोई दबाव डाले तो? दादाश्री : तो ऐसा कहना चाहिए कि, 'भाई, मैं आपके दबाव से बोलूँगा। मैं तो तोता हूँ। यह तो आपके दबाव से तोता होकर बोलूँगा। बाक़ी, मैं नहीं बोलता।' फिर तोता बोले उस तरह से बोलना। आप खुद मत बोल उठना। तोता होकर बोलना। हम कहें 'आया राम' तो तोता कहेगा, 'आया राम।' ऐसे बोलना चाहिए। मुझे 'ज्ञान' नहीं हुआ था न, तब कोर्ट में एक बार जाना हुआ था। गवाही देनी थी। तब वकील कहता है कि, 'यह मैं आपको कहूँ वैसा आपको बोलना है।' मैंने कहा, 'नहीं भाई। मैं जानता हूँ उतना बोलूँगा। मैं कोई आपका कहा हुआ बोलनेवाला नहीं हैं।' तब वह कहता है, 'मझे यहाँ कहाँ आपके लिए खड़ा किया? मैं झूठा दिलूँगा। मेरी आबरू जाएगी।
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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