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वाणी, व्यवहार में... प्रश्नकर्ता : इस समाज में बहुत लोग झूठ बोलते हैं और चोरीलुच्चाई सब करते हैं, और बहुत अच्छी तरह रहते हैं। सच बोलते हैं, उन्हें सब तकलीफें आती हैं। तो अब कौन-सी लाइन पकड़नी चाहिए? झूठ बोलकर खुद को थोड़ी शांति रहे ऐसा करना चाहिए या फिर सच बोलना चाहिए?
वाणी, व्यवहार में...
___३५ नहीं तो सिर्फ नग्न सत्य बोलें, तो वह असत्य कहलाता है।
वाणी कैसी होनी चाहिए? हित-मित-प्रिय और सत्य, इन चार गुणाकारोंवाली होनी चाहिए। और दूसरी सब असत्य हैं। व्यवहार वाणी में यह नियम लागू होता है। इसमें तो ज्ञानी का ही काम है। चारों ही गुणाकारोंवाली वाणी सिर्फ 'ज्ञानी पुरुष' के पास ही होती है. सामनेवाले के हित के लिए ही होती है, थोड़ी भी खुद के हित के लिए वाणी नहीं होती है। ज्ञानी' को 'पोतापणं' (मैं हूँ और मेरा है, ऐसा आरोपण, मेरापन) होता ही नहीं है, यदि 'पोतापणुं' हो तो वह ज्ञानी ही नहीं होते है।
सत्य किसे कहा जाता है? किसी जीव को वाणी से दु:ख नहीं हो, वर्तन से दःख नहीं हो और मन से भी उसके लिए खराब विचार नहीं किया जाए। वह सबसे बड़ा सत्य है। सबसे बड़ा सिद्धांत है। यह रियल सत्य नहीं है। यह अंतिम व्यवहार सत्य है।
प्रश्नकर्ता : मनुष्य झूठ किसलिए बोलता है?
दादाश्री : मेरे पास कोई झूठ नहीं बोलता। मेरे पास तो इतना तक बोलते हैं कि, दस-बारह वर्ष की उम्र की लड़की हो और आज पचास वर्ष की हुई हो, उसने बारह वर्ष से लेकर पचास वर्ष तक उसने क्याक्या किया वह सबकुछ मुझे स्पष्ट लिखकर दे देती है। नहीं तो इस दुनिया में हुआ ही नहीं, ऐसा। कोई स्त्री खुद का ज़ाहिर करे ऐसा हुआ नहीं है। ऐसी हजारों स्त्रियाँ मेरे पास आती हैं और मैं उनके पाप धो देता हूँ।
प्रश्नकर्ता : मनुष्य बिना कारण झूठ बोलने के लिए प्रेरित होता है। उसके पीछे कौन-सा कारण काम करता होगा?
दादाश्री: क्रोध-मान-माया-लोभ के कारण करते हैं वे। कोई भी वस्तु प्राप्त करनी है, या तो मान प्राप्त करना है या लक्ष्मी प्राप्त करनी है, कुछ तो चाहिए। उसके लिए झूठ बोलता है या तो भय है, भय के मारे झूठ बोलता है। अंदर छुपा-छुपा भय है कि 'कोई मुझे क्या कहेगा?' ऐसा कुछ भी भय होता है। फिर धीरे-धीरे झूठ की आदत ही पड़ जाती है। फिर भय नहीं होता तो भी झूठ बोल लेता है।
दादाश्री : ऐसा है न, पहले झूठ बोला था उसका यह फल आया है, यहाँ चख रहे हो आराम से (!) दूसरा थोड़ा सच बोला था, उसका फल उसे मिला है। अब इस समय झूठ बोलता है, तो उसका फल उसे मिलेगा। आप सच बोलोगे तो उसका फल मिलेगा। यह तो फल चखते हैं। न्याय है, बिलकुल न्याय है।
आज एक व्यक्ति की परीक्षा का रिजल्ट आया और वह पास हो गया। और हम नापास हुए। पास होनेवाला व्यक्ति आज भटकता रहता है, पर परीक्षा देते समय करेक्ट दी होती है। इसलिए यह सब जो आता है, वह फल आता है। उस फल को शांतिपूर्वक भोग लेना उसका नाम पुरुषार्थ।
प्रश्नकर्ता : कितने ही झूठ बोलें तो भी सत्य में खप जाता है और कितने ही सच बोलें तो भी झूठ में खपता है। यह पज़ल (पहेली) क्या है?!
दादाश्री : वह उनके पाप और पुण्य के आधार पर होता है। उनके पाप का उदय हो तो वे सच बोलते हैं तो भी झूठ में चला जाता है। जब पुण्य का उदय हो तब झूठ बोले तो भी लोग उसे सच स्वीकारते हैं, चाहे जैसा झूठा करे तो भी चल जाता है।
प्रश्नकर्ता : तो उसे कोई नुकसान नहीं होता?
दादाश्री : नुकसान तो है, पर अगले भव का। इस भव में तो उसे पिछले जन्म का फल मिला। और यह झूठ बोला न, उसका फल उसे अगले भव में मिलेगा। अभी यह उसने बीज बोया। बाक़ी, यह कोई अंधेर नगरी नहीं है कि चाहे जैसा चल जाएगा!