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वाणी, व्यवहार में... उसे केवलज्ञान कहा है।
____ जगत् के लोग देखते हैं, वैसा ज्ञानी भी देखते हैं, पर जगत् के लोगों का देखा हुआ काम में नहीं आता। क्योंकि उनका 'बेसमेन्ट' अहंकार है। 'मैं चंदूलाल हूँ' वह उसका 'बेसमेन्ट' है। और 'अपना' 'बेसमेन्ट' 'मैं शुद्धात्मा हूँ' है। इसलिए अपना देखा हुआ केवलज्ञान के अंश में जाता है। जितने अंश से हमने देखा, जितने अंश से हमने अपने खुद को जुदा देखा, वाणी को जुदा देखा, ये 'चंदूभाई' क्या कर रहे हैं वह देखा, उतने अंश में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ।
हमें तो कोई गालियाँ दे तो वह हमारे ज्ञान में ही होता है, 'यह रिकॉर्ड क्या बोल रहा है' वह भी हमारे ज्ञान में ही होता है। रिकॉर्ड गलत बोला हो, वह हमारे ज्ञान में ही होता है। हमें पूरी जागृति रहा करती है। और संपूर्ण जागृति वह केवलज्ञान है। व्यवहार में लोगों को व्यवहारिक जागृति रहती है, वह तो अहंकार के मारे रहती है। पर यह तो शद्धात्मा होने के बाद की जागृति है। यह अंश केवलज्ञान की जागृति है और वहाँ से ही कल्याणकारी है।
भीतर की मशीनरी को ढीला मत छोड़ना। हमें उसके ऊपर देखरेख रखनी चाहिए कि कहाँ-कहाँ घिस रहा है. क्या होता है. किसके साथ वाणी कठोर निकली। बोले उसमें हर्ज नहीं है, हमें 'देखते' रहना है कि, 'ओहोहो, चंदूभाई कठोरता से बोले!'
वाणी, व्यवहार में... के ऊपर राग नहीं। अच्छा-बुरा देखने की आपको जरूरत नहीं है। क्योंकि सत्ता ही मूल अपने काबू में नहीं है।
७. सच-झूठ में वाणी खर्च हुई प्रश्नकर्ता : मस्का लगाना, वह सत्य है? झूठी हाँ में हाँ मिलाना वह?
दादाश्री : वह सत्य नहीं कहलाता। मस्का लगाने जैसी वस्तु ही नहीं है। यह तो खुद की खोज है, खुद की भूल के कारण दूसरे को मस्का मारता है यह।
प्रश्नकर्ता : किसीके साथ मिठास से बोलें तो उसमें फायदा है? दादाश्री : हाँ, उसे सुख लगता है!
प्रश्नकर्ता : वह तो फिर पता चले तब तो बहुत दु:ख हो जाता होगा। क्योंकि, कोई बहुत मीठे बोल होते हैं, और कोई सच्चे बोल होते हैं, तो हम ऐसा कहते हैं न कि यह मीठा बोलता है, पर इससे तो दूसरा व्यक्ति भले ही खराब बोलता है पर वह अच्छा व्यक्ति है।
दादाश्री : सच्चे बोल किसे कहा जाता है? एक भाई उसकी मदर के साथ सच बोला, एकदम सत्य बोला। और मदर से क्या कहता है? "आप मेरे पिताजी की पत्नी हो' कहता है, वह सत्य नहीं है? तब मदर ने क्या कहा? तेरा मुँह फिर मत दिखाना, भाई। अब तू जा यहाँ से! मुझे तेरे बाप की पत्नी बोलता है।
__ इसलिए सत्य कैसा होना चाहिए? प्रिय लगे ऐसा होना चाहिए। सिर्फ प्रिय लगे वैसा हो तो भी नहीं चलेगा। वह हितकर होना चाहिए, उतने से ही नहीं चलेगा। मैं सत्य, प्रिय और हितकारी ही बोलता है, तो भी मैं अधिक बोलता रहूँ न, तो आप कहो कि, 'अब चाचा बंद हो जाओ न। अब मुझे भोजन के लिए उठने दो न।' इसलिए वह मित चाहिए सही मात्रा में चाहिए। यह कोई रेडियो नहीं है कि बोलते रहे, क्या? मतलब सत्य-प्रिय-हितकर और मित, चार गुणाकार हो तो ही सत्य कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : पर जब तक नहीं बोला जाए तब तक अच्छा न?
दादाश्री : 'बोलना, नहीं बोलना' वह अपने हाथ में रहा नहीं है अब।
बाहर का तो आप देखोगे वह बात अलग है, पर आपके ही अंदर का आप सारा देखते रहोगे, उस समय आप केवलज्ञान सत्ता में होओगे। पर अंश केवलज्ञान होता है, सर्वांश नहीं। अंदर खराब विचार आए उन्हें देखना, अच्छे विचार आए उन्हें देखना। खराब के ऊपर द्वेष नहीं और अच्छे