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को किस तरह पता चले? एक व्यक्ति को सच्चा प्रेम है या यह उसका मोह है, ऐसा खुद को कैसे पता चले?
दादाश्री: वह तो झिडकें, तब अपने आप पता चलता है। एक दिन झिड़क दें और वह चिढ़ जाए, तब समझ लें कि यह युजलेस है ! फिर दशा क्या हो? इससे तो पहले से ही खडकाएँ। रुपया खडकाकर देखते हैं, कलदार है या खोटा है वह तुरन्त पता चल जाता है न? कोई बहाना निकालकर और खड़काएँ। अभी तो निरे भयंकर स्वार्थ! स्वार्थ के लिए भी कोई प्रेम दिखाता है। पर एक दिन खड़काकर देखें तो पता चले कि यह सच्चा प्रेम है या नहीं?
प्रश्नकर्ता : सच्चा प्रेम हो वहाँ कैसा होता है, खड़काए तब भी?
दादाश्री : वह खड़काए तब भी शांत रहकर खुद उसे नुकसान न हो वैसा करता है। सच्चा प्रेम हो, वहाँ गले उतार लेता है। अब, बिलकुल बदमाश हो न तो वह भी गले उतार लेता है।
(प्रूफ) इकट्ठे होते हैं, सब एविडेन्स इकट्ठे होते हैं, तब फिर बला लिपट जाती है।
प्रश्नकर्ता : बला क्या है?
दादाश्री : हाँ, वह मैं बताऊँ। एक नागर ब्राह्मण था, वह ऑफिसर था। वह उसके बेटे को कहता है, 'यह तू घूम रहा था, मैंने तुझे देखा था, तू साथ में बला किसलिए लेकर घूमता है?' लड़का कॉलेज में पढ़ता था, किसी गर्लफ्रेन्ड के साथ उसके बाप ने देखा होगा। उसे बला ये लोग नहीं कहते. पर ये पराने जमाने के लोग उसे बला कहते हैं। क्योंकि फादर के मन में ऐसा हुआ कि 'यह मूर्ख आदमी समझता नहीं, प्रेम क्या है वह। प्रेम को समझता नहीं और मार खा जाएगा। यह बला लिपटी है, इसलिए मार खा-खाकर मर जाएगा।' प्रेम को निभाना वह आसान नहीं है। प्रेम करना सभी को आता है, पर उसे निभाना आसान नहीं है। इसलिए उसके फादर ने कहा कि, 'यह बला किसलिए खड़ी की?'
तब वह लड़का कहता है, 'बापूजी, क्या कहते हो यह आप? वह तो मेरी गर्लफ्रेन्ड है। आप इसे बला कहते हो यों? मेरी नाक कट जाए ऐसा बोलते हो? ऐसा नहीं बोलते।' तब बाप कहता है, 'नहीं बोलूंगा अब।' उस गर्लफ्रेन्ड के साथ दो वर्ष दोस्ती चली। फिर वह दूसरे किसी के साथ सिनेमा देखने आई थी और वह उसने देख लिया। इसलिए उसके मन में ऐसा लगा कि यह तो पापाजी कह रहे थे कि 'यह बला लिपटाई है', यानी वैसी यह बला ही है।
इसलिए पुरावे (घटक, परिस्थितियाँ) मिल जाएँ न तो बला लिपट जाती है, फिर छूटता नहीं और दूसरों को लेकर फिरें तब फिर रात-दिन लड़के को नींद ही नहीं आती। होता है या नहीं होता ऐसा? उस लड़के ने जब जाना कि 'यह तो बला ही है। मेरे पापा कहते थे वह सच्ची बात है।' तब से वह बला छूटने लगी। मतलब, जब तक गर्लफ्रेन्ड कहे और उसे बला समझे नहीं तब तक किस तरह छूटे?!
प्रश्नकर्ता : तो फिर यह मोह और प्रेम, उसका निर्णय करना हो
वह प्रेम या बला? प्रश्नकर्ता : दो लोग प्रेमी हों और घरवालों का साथ नहीं मिले तो आत्महत्या कर लेते हैं। ऐसा बहुत बार होता है तो वह प्रेम है, उसे क्या प्रेम माना जाएगा?
दादाश्री : आवारा प्रेम! उसे प्रेम ही कैसे कहा जाए? इमोशनल होते हैं और पटरी पर सो जाते हैं ! और कहेंगे, 'अगले भव में दोनों साथ में ही होंगे।' तो वह ऐसी आशा किसी को करनी नहीं चाहिए। वे उनके कर्म के हिसाब से फिरते हैं। वे वापिस इकट्ठे ही नहीं होंगे!!
प्रश्नकर्ता : इकट्ठे होने की इच्छा हो तब भी इकट्ठे होते ही नहीं?
दादाश्री : इच्छा रखने से कहीं दिन फिरते हैं? अगला भव तो कर्मों का फल है न! यह तो इमोशनलपन है।
आप छोटे थे तब ऐसी बला लिपटी थी किसी तरह की? तब पुरावे