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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
१०५ चाहता हूँ। यह मेरे दोष का परिणाम है।' किसी भी मनुष्य के प्रति जो जो दोष किये हों और भीतर आप माफ़ी माँगते रहो भगवान के पास, तो सब धुल जाएगा।
प्रश्नकर्ता : हमें धर्म की राह पर चलना हो, तो घर संसार छोड़ना पड़े। यह धर्मकार्य के लिए अच्छा है परन्तु घर के लोगों को दु:ख हो, किन्तु अपने लिए घर संसार छोड़ें वह अच्छा है?
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार आपके साथ मेरा जन्म होगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं होता। यह तो सब बावलापन है। (रिअल में) पति-पत्नी ऐसा कुछ है नहीं। यह तो बुद्धिमान लोगों ने व्यवस्था की है।
प्रश्नकर्ता : भाई कहते हैं, यदि किसी प्रकार की तकरार नहीं हो, तो अगले जन्म में फिर साथ में रह सकेंगे?
दादाश्री : नहीं। घरवालों का हिसाब चुकता करना ही होगा। उनका हिसाब चकता हो जाए तो वे सभी खश होकर कहेंगे कि 'आप जाइए' तब कोई हर्ज नहीं। लेकिन उन्हें दुःख हो ऐसा मत करना। क्योंकि एग्रीमेन्ट (करार) का भंग नहीं कर सकते।
दादाश्री : इस जन्म में ही रहा नहीं जाता, इस जन्म में ही डिवॉर्स हो जाते हैं, तब फिर अगले जन्म की कहाँ बात करते हो? ऐसा प्रेम ही नहीं होता न! अगले जन्म के प्रेमवालों में तो क्लेश ही नहीं होता। वह तो ईजी लाइफ (सरल ज़िन्दगी) होती है। बड़े प्यार की जिन्दगी होती है। किसीकी भूल ही नहीं दिखती। भल करे तो भी नज़र नहीं आती. ऐसा प्रेम होता है।
प्रश्नकर्ता : भौतिक संसार छोड़ने को जी करता है, तो क्या करें?
दादाश्री : भौतिक संसार में घुसने को जी करता था न, एक
दिन?
प्रश्नकर्ता : तब तो ज्ञान नहीं था। अब तो ज्ञान है इसलिए उसमें फर्क पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : तब ऐसी प्रेमभरी ज़िन्दगी हो तो फिर अगले जन्म में फिर वे ही इकट्ठे होंगे या नहीं होंगे?
दादाश्री : हाँ, होते हैं न, किसी की ऐसी ज़िन्दगी हो तो होते हैं। सारी ज़िन्दगी क्लेश नहीं हुआ हो तो होते हैं।
आदर्श व्यवहार, जीवन में... दादाश्री : ज़िन्दगी को किस प्रकार सुधारें? प्रश्नकर्ता : सच्चे मार्ग पर जाकर।
दादाश्री : हाँ, उसमें फर्क पड़ेगा लेकिन उसमें घुसे हैं, इसलिए निकलने का रास्ता खोजना पड़ेगा। यों ही भाग नहीं सकते।
प्रश्नकर्ता : प्रत्येक दिन कम होता जा रहा है।
दादाश्री: 'मेरा' कहकर मरना है। असल में मेरा है नहीं। वह जल्दी चल बसे तो हमें अकेले बैठे रहना पडे। सत्य हो तो दोनों को साथ ही जाना चाहिए न? और अगर पति के पीछे सती हो तो भी वह किस राह गई हो और यह पति किस राह गया होगा! क्योंकि सबकी अपने कर्मों के हिसाब से गति होती है। कोई जानवर में जाए, कोई मनुष्य में जाए, कोई देवगति में जाए। उसमें सती कहे कि मैं आपके साथ मर जाऊँ तो
दादाश्री : कितने साल तक सुधारना? सारी जिन्दगी? कितने साल, कितने दिन, कितने घण्टे, किस प्रकार सुधरेगा वह सब?
प्रश्नकर्ता : मुझे मालूम नहीं।
दादाश्री : हं.... इसीलिए सुधरता नहीं न! और वास्तव में दो ही दिन सुधारने के हैं, एक वर्किंग डे (काम पर जाने का दिन) और एक