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________________ पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार १०३ वह भी दूध पिलाती है, बछड़े को चाटती है न! हम अक्लमंद नहीं चाटते । आप खुद शुद्धात्मा हैं और ये सभी व्यवहार ऊपर-ऊपर से अर्थात् 'सुपरफ्लुअस' करने का है। खुद 'होम डिपार्टमेन्ट' (आत्म स्वरूप ) में रहना और 'फोरिन' (व्यवहार) में 'सुपरफ्लुअस' रहना। 'सुपरफ्लुअस' यानी तन्मयाकार वृत्ति नहीं, केवल 'ड्रामेटिक' (नाटकीय)। केवल 'ड्रामा' (नाटक) ही खेलना है। ड्रामे (नाटक) में घाटा आए इस पर भी हँसना है और मुनाफा हो तब भी हँसना है। 'ड्रामा' में अभिनय करना है, घाटा आये तो वैसा दिखावा करना। मुँह से कहें ज़रूर कि भारी नुकसान हुआ है, लेकिन उसमें तन्मयाकार नहीं होते। हमें 'लटकती सलाम' (निम्न ज़रूरी व्यवहार) रखनी है। कई लोग नहीं कहते कि भाई इनसे मेरा सम्बन्ध 'लटकती सलाम' जितना है? इस प्रकार सारे संसार के साथ रहना है। जिसे इस तरह सारे संसार के साथ रहना आ गया वह ज्ञानी हो गया। इस शरीर के साथ भी 'लटकती सलाम'! हम निरंतर सभी के साथ 'लटकती सलाम' रखते हैं, फिर भी सब कहते हैं कि 'आप हमारे पर बहुत अच्छा भाव रखते हैं।' मैं व्यवहार सभी निभाता हूँ, मगर आत्मा में रहकर । प्रश्नकर्ता: ऐसा होता कि पत्नी के पुण्य से पुरुष का काम बनता हो ? कहते हैं न कि औरत के पुण्य से यह लक्ष्मी है या सब अच्छा है, ऐसा होता है? दादाश्री : वह तो हमारे लोगों ने कोई अपनी पत्नी को पीटता होगा, उसे समझाने के लिए कहा कि अरे तेरी औरत का नसीब तो देख। क्यों चिल्ला रहा है? उसका पुण्य है तो तू खाना खा रहा है! ऐसे शुरू हो गया। सभी जीव अपने पुण्य का ही खा रहे हैं। आपकी समझ में आ गया न? सब अपने पुण्य का ही भोगते हैं और अपना पाप भी खुद ही भुगतते हैं। दूसरे किसी का कुछ लेना-देना ही नहीं। उसमें एक बाल जितनी भी किसी की झंझट नहीं है। प्रश्नकर्ता: कोई शुभ कार्य करें, जैसे कि पुरुष दान करे, लेकिन पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार १०४ स्त्री का भी उसमें सहयोग हो, तब दोनों को फल मिलता है? दादाश्री : हाँ, मिलेगा न! करनेवाले करवानेवाले और अनुमोदन करनेवाले तीनों को पुण्य मिलेगा। आपको जिसने कहा हो कि यह करना, करने योग्य है, वह करवानेवाला है, आप करनेवाले है और विरोध नहीं करे वह अनुमोदना करनेवाला, सभी को पुण्य मिलेगा। लेकिन करनेवाले के हिस्से में पचास प्रतिशत और दूसरे पचास प्रतिशत उन दोनों में बँट जाएँगे । प्रश्नकर्ता: पूर्व जन्म के ऋणानुबंध से मुक्त होने के लिए क्या करना चाहिए? दादाश्री : हमारा जिनके साथ पूर्व जन्म का ऋणानुबंध हो और हमें वह पसंद ही नहीं हो, उसका सहवास पसंद ही नहीं हो, फिर भी उसके सहवास में रहना ही पड़ता हो, तब क्या करना चाहिए कि, उसके साथ बाहर का व्यवहार ज़रूर रखना चाहिए मगर भीतर उसके नाम के प्रतिक्रमण करने चाहिए। क्योंकि हमने पिछले जन्म में अतिक्रमण किया था उसका यह परिणाम है। क्या कोज़िज किये थे? तब कहते हैं कि उसके साथ पूर्व जन्म में अतिक्रमण किया था उसका इस जन्म में परिणाम आया। इसलिए उसका प्रतिक्रमण करने पर वह खत्म हो जाएगा। अर्थात् भीतर उससे माफी माँग लो। क्षमा माँगते रहो कि मैंने जो दोष किये हो, उनकी क्षमा चाहता हूँ। किसी भी भगवान को साक्षी रखकर माफी माँग लो, तो सब समाप्त हो जाएगा। वर्ना फिर क्या होता है? उसके प्रति ज्यादा दोष दृष्टि रखने से, जैसे कि किसी पुरुष को स्त्री बहुत दोषित देखे तो तिरस्कार बढ़ेगा और तिरस्कार हो तो भय लगेगा। आपको जिसका तिरस्कार होगा, उसका भय रहेगा। उसे देखने से आपको घबराहट होगी, इससे समझ लो कि यह तिरस्कार हैं। इसलिए तिरस्कार हटाने के लिए हमें भीतर माफ़ी माँगते रहना चाहिए। दो ही दिन में वह तिरस्कार बंद हो जाएगा। उसे मालूम नहीं हो कि आप भीतर उसके नाम की माफ़ी माँगा करते हो ! 'उसके प्रति जो जो दोष किये हों, 'हे भगवान, मैं क्षमा
SR No.009598
Book TitlePati Patni Ka Divya Vyvahaar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages65
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size43 KB
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