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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
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चाय का भी ठिकाना नहीं होता !! यह तो वाइफ है इसलिए उसके कहने पर सवेरे जल्दी-जल्दी नहा लेते हो, उसकी वजह से सारी शोभा है! और उनकी शोभा आपकी वजह से है।
स्त्री अर्थात् सहज प्रकृति। पाँच करोड़ का नुकसान हुआ हो, तो पति सारा दिन चिंता करता हो, दुकान में नुकसान होता हो तो घर आकर खाता-पीता भी नहीं पर पत्नी तो पति के घर आने पर उससे कहेगी, 'लो, उठो, अब इतनी हाय-हाय मत करो, चाय पीओ और आराम से भोजन करो।' अब आधी पार्टनरशिप उसकी होने पर भी उसे चिंता क्यों नहीं होती, क्योंकि वह साहजिक है। इसलिए इस सहज (प्रकृति) के साथ रहें तब जी पाएँ, वर्ना नहीं जी पाते। और दोनों पुरुष होते तो मर जाते आमने-सामने टकरा टकराकर ) । अतः स्त्री तो साहजिक है, इसलिए यह घर में आनंद रहता है थोड़ा-बहुत ।
स्त्री तो दैवी शक्ति है पर अगर पुरुष को समझ आए तो काम बन जाए। स्त्री का दोष नहीं, हमारी उल्टी समझ का दोष है। स्त्रियाँ तो देवियाँ हैं, उन्हें देवी पद से नीचे नहीं उतारना। 'देवी है,' कहते हैं न । और उत्तर प्रदेश में तो कहीं कहीं 'आइए देवी' कहते हैं, आज भी कहते हैं, 'शारदा देवी आई, सीता देवी आईं।' कुछ प्रदेशों में नहीं कहते ?
और चार पुरुष साथ-साथ रहते हों, एक आदमी खाना पकाये, एक आदमी सफाई करे, उस घर में बरकत नहीं होती। एक पुरुष और एक स्त्री रहें (पति-पत्नी) तब घर सुन्दर दिखता है। स्त्री सजावट बहुत सुन्दर करती है।
प्रश्नकर्ता: आप अकेली स्त्रियों का ही पक्ष मत लिया कीजिए । दादाश्री : मैं स्त्रियों का पक्ष नहीं लेता, इन पुरुषों का पक्ष लेता हूँ। वैसे स्त्रियों को लगेगा ही हमारा पक्ष लेते हैं, पर तरफदारी पुरुषों की करता हूँ। क्योंकि फेमिली के मालिक आप हैं। She is not owner of family, you are owner ( वह कुटुंब की मालिक नहीं, आप मालिक हैं)। लोग बम्बई में मुझे कहते हैं न, 'आप पुरुषों का पक्ष नहीं
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
लेते और स्त्रियों का पक्ष क्यों लेते हैं?' मैंने कहा, 'उनकी कोख से महावीर पैदा हुए हैं, तुम्हारी कोख से कौन पैदा हुआ है? बिना वजह तुम उसकी बात ले बैठे हो ?'
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मैं पुरुषों को ऐसी समझ देता हूँ कि बाद में स्त्रियाँ उनका सम्मान करती हैं। इसलिए दोनों के साथ कैसे व्यवहार करना उसके तरीके हमें आने चाहिए। दोनों को संतोष होना चाहिए।
मुझे तो (व्यवहार में तो) स्त्रियों के साथ भी बहुत अनुकूल होता है और पुरुषों के साथ भी उतना ही अनुकूल होता है। पर वास्तव में हम न तो स्त्रियों के पक्ष में होते हैं और न ही पुरुषों के पक्ष में होते है । दोनों ठीक से संसार चलाओ। पत्नी नहीं हो तो तेरा घर कैसे चलेगा?
पत्नी की शिकायतें
तू शिकायत करेगा तो तू फ़रियादी हो जाएगा। मैं तो जो फ़रियाद लेकर आए उसे ही गुनहगार समझता हूँ । तुझे फ़रियाद करने का वक्त ही क्यों आया? फ़रियादी ज़्यादातर गुनहगार ही होते हैं। खुद गुनहगार है, इसलिए शिकायत लेकर आता है। तू फ़रियाद करेगा तो तू फ़रियादी हो जाएगा और सामनेवाला आरोपी हो जाएगा। इसलिए उनकी दृष्टि में तू आरोपी ठहरेगा। इसलिए किसी के विरुद्ध फ़रियाद मत करना।
वह भाग करता हो तो हम गुणा करेंगे ताकि रक़म (शून्य हो जाए। सामनेवाले के लिए ऐसा सोचना कि उसने मुझे ऐसा कहा, वैसा कहा वही गुनाह है। रास्ते पर चलते समय पेड़ से टकराओ तो उससे झगड़ा क्यों नहीं करते? पेड़ को जड़ कैसे कह सकते हैं? जिनसे चोट लगती है वे सभी हरे पेड़ ही हैं न? गाय का पैर हम पर पड़े तो हम उसे कुछ कहते हैं? ऐसा इन सभी लोगों का है। 'ज्ञानीपुरुष' सभी को माफ़ी कैसे देते हैं? वे जानते हैं कि ये सभी (लोग) पेड़ की तरह है। समझदार को तो कहना ही नहीं पड़ता, वह तो भीतर तुरन्त प्रतिक्रमण कर लेता है।
पति अपमान करे, तब क्या करती हो फिर? दावा दायर करोगी?