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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
वे भूल जाते हैं बेचारे। स्त्रियाँ तो कहती भी हैं कि उस दिन तुम ऐसा बोले थे, जो मेरे कलेजे में लगा है। अरे! बीस साल हुए तो भी नोंध ताजी! लड़का बीस साल का ब्याहने योग्य हो गया तो भी आज तक वह बात याद रखती है! सभी चीजें सड़ जाएँ पर इनकी चीजें (नोंध) नहीं सड़ती! हमसे कुछ उलटा-सीधा व्यवहार हो गया हो तो स्त्री उसे अपनी असली जगह पर रख देती है, कलेजे के भीतर। इसलिए हमें उसके साथ ऐसा कुछ भी व्यवहार नहीं करने जैसा है और सावधान रहने जैसा है।
स्त्री से जितना तुम कहोगे उसकी जिम्मेवारी हमेशा आएगी, क्योंकि वह जब तक हमारा शरीर तंदुरुस्त (स्वस्थ) होगा न, तब तक बर्दाश्त करती रहेगी और मन में क्या कहेगी? जोड़ ढीले पड़ने दो तब इन्हें ठिकाने ला दूँगी। इन सभी को जिनके जोड़ ढीले पड गये उन्हें, ठिकाने ला दिया। मैंने ऐसे देखे भी हैं। इसलिए मैं लोगों को सलाह देता हूँ, बीवी के साथ तकरार मत करना। बीवी के साथ बैर मत रखना, नहीं तो परेशान हो जाएगा।
हमारी स्त्री जाति मूलतः संस्कार में आए न, तो वह तो देवी है। पर यह तो बाहरी संस्कार छूने के परिणाम स्वरूप बिफर गई है अभी। इसलिए शास्त्रकारों ने कहा, 'स्त्री को ऐसे समझा देना सरल हैं किन्तु बिफर गई तो फिर सम्हालना महामुश्किल है।' और हमारे लोग वह बिफर जाए ऐसा करते हैं। उसे उलटा-सीधा कहकर उकसाते हैं और फिर वह बिफरे तो बाघिन जैसी हो जाती है। हमें इस हद तक नहीं जाना चाहिए, मर्यादा रखनी चाहिए। और हम स्त्री को परेशान करते रहें तो कहाँ जाएगी वह बेचारी? इसीलिए वह पहले वक्र (टेढ़ा) चलती है और फिर बिफर जाती है ! वह बिफरी तो सारा बिगड़ गया ! इसलिए उसे छेड़ना मत, लेट गो करना (छोड़ देना)।
और स्त्री जब बिफरेगी तब तुम्हारी बुद्धि काम नहीं देगी, तुम्हारी बुद्धि उसे नहीं बाँध सकेगी। इसलिए बिफरे नहीं ऐसे बातें करना। आँखो में प्रेम भरपूर रखना। अगर वह ऐसा-वैसा कहे तब वह तो स्त्री जाति है, समझकर
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार लेट गो करना। अर्थात् एक आँख में संपूर्ण प्रेम रखना, दूसरी आँख में थोड़ी सख्ती रखना, उस प्रकार रहना चाहिए। वह तो एक आँख में सख्ती की तरह और एक आँख में देवी की तरह मानना, जिस समय जिसकी जरूरत लगे वैसा करना। हर रोज़ ज्यादा सख्ती मत करना। समझ में आया?
प्रश्नकर्ता : एक आँख में सख्ती और एक आँख में प्रेम, वे दोनों एट-ए-टाइम (एक समय) कैसे रहेगा?
दादाश्री : ऐसा तो पुरुष को सब आता है ! मैं तीस-पैतीस साल का था, तब घर आता न, उस वक्त हीराबा अकेली नहीं, आसपास की सभी स्त्रियाँ मुझे देखतीं। तब एक आँख में सख्ती देखें और एक आँख में पूजनीयता देखें। सभी स्त्रियाँ सिर पर ओढ़कर बैठतीं और सभी चौकन्नी हो जातीं। और हीराबा तो हमारे भीतर आने से पहले ही भड़कतीं, जूते की आहट हुई कि भड़क जातीं। एक आँख में सख्ती, एक में नर्मी। उसके बगैर स्त्री नहीं सँभलती। इसलिए हीराबा कहती थीं न, दादा कैसे हैं?
प्रश्नकर्ता : तीखे भँवरे जैसे।
दादाश्री : तीखे भँवरे जैसे हैं ऐसा कायम रखते। वैसे उन्हें जरा भी धमकाते नहीं। घर में प्रवेश करते कि चुप्पी। सब बर्फ जैसा ठंडा हो जाता, जूते की आहट होते ही तुरन्त !
सख्ती किस लिए कि वह ठोकर नहीं खा बैठें, इसलिए सख्ती रखो। इसलिए एक आँख में सख्ती और एक आँख में प्रेम रखना।
प्रश्नकर्ता : इसलिए संस्कृत में कहा है, 'यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता!'
दादाश्री : हाँ! इसलिए मैं जब ऐसा कहता हूँ न, तब सभी मुझे कहते हैं, 'दादा! आप स्त्रियों के तरफ़दार हैं, पक्षपाती हैं।'
अब मैं जब कहता हूँ कि, स्त्रियों की पूजा करो, इसका अर्थ ऐसा नहीं है कि सवेरे जाकर आरती उतारना। ऐसा करने पर तो वह तेरा कचूमर कर देगी। इसका अर्थ क्या है? एक आँख में प्रेम और एक आँख में सख्ती