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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
दादाश्री : नहीं, भगोड़े क्यों बनें? हम परमात्मा है। हमें भागने की क्या आवश्यकता है? हमें उसका 'समभाव से निकाल (निपटारा)' कर देना है!
प्रश्नकर्ता : निकाल करना हो तो किस प्रकार करें? मन में भाव करना कि यह पूर्व जन्म का है?
दादाश्री : उतने से निकाल नहीं होगा। निकाल अर्थात् सामनेवाले के साथ फोन जोड़ना पड़ेगा, उसकी आत्मा को खबर देनी पड़ेगी। उस आत्मा के पास हमारी भूल हुई है ऐसा क़बूल (एक्सेप्ट) करना होगा। अर्थात् प्रतिक्रमण बड़ा करना होगा।
प्रश्नकर्ता : दूसरा हमारा अपमान करे फिर भी हमें उसका प्रतिक्रमण करना है?
दादाश्री : अपमान करे तभी प्रतिक्रमण करना है, हमें सम्मान दे तब नहीं करना है। प्रतिक्रमण करने से उस पर द्वेषभाव तो होगा ही नहीं, ऊपर से उस पर अच्छा असर होगा। हमारे प्रति द्वेषभाव नहीं होगा यह समझो पहला स्टेप, पर बाद में उसे खबर भी पहुँचती है।
प्रश्नकर्ता : खबर उसकी आत्मा को पहुँचती है क्या?
दादाश्री : हाँ, ज़रूर पहुँचेगी। फिर वह आत्मा उसके पुद्गल को भी धकेलती है कि 'भाई फोन आया तेरा।' अपना यह प्रतिक्रमण है वो अतिक्रमण के ऊपर है, क्रमण के ऊपर नहीं।
प्रश्नकर्ता : बहुत प्रतिक्रमण करने होंगे?
दादाश्री : जितना स्पीड में हमें मकान बनाना है, उतने मज़दूर हमें बढ़ाने होंगे। ऐसा है, कि बाहर के लोगों के प्रति प्रतिक्रमण नहीं होंगे तो चलेगा, पर अपने इर्द-गिर्द के और पासवाले-घरवाले हैं, उनके प्रतिक्रमण ज्यादा करने होंगे। घरवालों के लिए मन में भाव रखना कि एक ही परिवार में जन्मे हैं, साथ रहते हैं, इसलिए किसी दिन इस मोक्षमार्ग में आएँ।
पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार एक भाई मेरे पास आए थे। वे मुझसे बोले, 'दादा, मैंने शादी तो की पर मुझे मेरी बीवी पसंद नहीं।' मैंने कहा, 'क्यों, पसंद नहीं आने का क्या कारण है?' तब कहता है, 'वह थोडी लंगडी हैं, लंगडाती है।' 'तब तेरी बीवी को तू अच्छा लगता है कि नहीं?' तो बोला, 'दादा, मैं तो अच्छा लगूं ऐसा हूँ न! खूबसूरत हूँ, पढ़ा लिखा हूँ, कमाता हूँ और अपाहिज नहीं हूँ।' तब उसमें भूल तेरी ही है। तेरी ऐसी कैसी भूल हुई कि तुझे लंगड़ी मिली और उसने कितने अच्छे पुण्य किये थे कि तू इतना अच्छा उसे मिला? अरे, यह तो अपना किया ही अपने सामने आता है, उसमें सामनेवाले का दोष देखता है? देख तेरी भूल भुगत ले और फिर से नयी भूल मत करना। तब वह भाई समझ गया और उसकी 'लाइफ' फ्रेक्चर होते-होते रह गई, सुधर गई।
दादाई दृष्टि से चलो, पतियों... प्रश्नकर्ता : वाइफ ऐसा कहे कि तुम्हारे पेरेन्ट्स (माँ-बाप) को अपने साथ नहीं रखना है कि नहीं बुलाना है, तब क्या करना?
दादाश्री : तब समझाकर काम लेना। डेमोक्रेटिक (लोकतांत्रिक) पद्धति से काम लेना। उसके माँ-बाप को बुलाकर उनकी बहुत सेवा कर के दिखाना...
प्रश्नकर्ता : माता-पिता वृद्ध हों, बड़ी उम्र के बुजुर्ग हों, एक ओर माता-पिता हैं और दूसरी ओर वाइफ है, तब उन दो में से पहले किसकी बात सुनें?
दादाश्री : वाइफ के साथ ऐसा अच्छा संबंध कर देना कि वाइफ हमें ऐसा कहे कि तुम्हारे माता-पिता का ख्याल रखो न ! ऐसा क्यों करते हो? वाइफ के सन्मुख माता-पिता के बारे में थोड़ा उल्टा बोलना। हमारे लोग तो क्या कहते हैं? मेरी माँ जैसी कोई माँ नहीं है। तुम ऐसा मत करना। फिर जब वह उल्टी चले तब हमें कहना चाहिए कि माँ का स्वभाव कुछ ऐसा ही हो गया है। इन्डियन माइन्ड (भारतीय दिमाग़) उल्टा चलने की आदत होती है। इन्डियन माइन्ड है न!