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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार
बर्तनों को कुछ स्पंदन हैं? हमारे लोग बिना समझे 'हाँ' में 'हाँ' मिलाते हैं कि दो बर्तन साथ में होंगे तो खड़बड़ेंगे! हम क्या बर्तन हैं कि हम टकरायेंगे? इस 'दादा' को किसी ने कभी टकराव में नहीं देखा होगा! सपना भी नहीं आया होगा ऐसा!! टकराव क्यों? टकराव तो अपनी जिम्मेदारी पर है। क्या यह दूसरे की जिम्मेदारी है? चाय जल्दी नहीं आई हो और हम टेबल तीन बार ठोकें इसकी जिम्मेवारी किसकी? इसके बजाय हम चुपचाप बैठे रहें। चाय मिली तो ठीक वर्ना हम तो चले
ऑफिस। क्या गलत है? चाय का भी कोई समय होगा न? यह संसार नियम के बाहर तो नहीं होगा न? इसलिए हमने कहा है कि 'व्यवस्थित' (साईटिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्स)! समय होगा तो चाय मिलेगी। तुम्हें ठोकना नहीं पड़ेगा। तुम स्पंदन खड़े नहीं करोगे तो भी चाय आयेगी
और स्पंदन खडे करोगे तब भी आएगी। पर स्पंदनों का हिसाब वाइफ के बहीखाते में जमा होगा कि उस दिन आप टेबल ठोक रहे थे न !
घर में वाइफ के साथ मतभेद हो तब उसका समाधान करना नहीं आता, बच्चों के साथ मतभेद हो तब उसका समाधान करना नहीं आता और उलझता रहता है।
प्रश्नकर्ता : पति तो ऐसा ही कहेगा न कि 'वाइफ' समाधान करे. मैं नहीं करूंगा।
दादाश्री : अर्थात् 'लिमिट' (मर्यादा) पूरी हो गई। 'वाइफ' समाधान करे और हम नहीं करें तब हमारी लिमिट पूरी हो गई। (सच्चा) पुरुष तो ऐसा कहे कि 'वाइफ' खुश हो जाए और ऐसा करके अपनी गाड़ी आगे ले जाए। और आप तो पंद्रह-पंद्रह दिन, महीना-महीना भर गाड़ी वहीं की वहीं, आगे ही नहीं बढ़ती। जब तक सामनेवाले के मन का समाधान नहीं होगा तब तक तुम्हें मुश्किल रहेगी। इसलिए समाधान कर लेना।
ऐसे घर में मतभेद हो यह कैसे चलेगा? स्त्री कहे 'मैं तुम्हारी हूँ' और पति कहे कि 'मैं तेरा हूँ' फिर मतभेद कैसा? तुम्हारे दोनों के बीच
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पति-पत्नी का दिव्य व्यवहार 'प्रोब्लम' (समस्या) बढ़ेंगे तो अलगाव पैदा होगा। 'प्रोब्लम' 'सॉल्व' (हल) हों तो फिर अलगाव नहीं होगा। जुदाई के कारण दुःख हैं। और सभी को प्रोब्लम खड़े होते ही हैं, तुम्हारे अकेले को ही होते हों ऐसा नहीं। जितनों ने शादी की उतनों को प्रोब्लम खड़े हुए बिना नहीं रहते।
पति को वाइफ के साथ मतभेद होता है। रात को सोते समय उसके साथ झगड़ा हो और लात मारे तब क्या हो?
प्रश्नकर्ता : नीचे गिर जाए।
दादाश्री : इसलिए उसके साथ एकता रखने की। वाइफ के साथ भी मतभेद होगा, वहाँ भी एकता नहीं रहेगी तब फिर और कहाँ रखोगे? एकता माने क्या कि कभी भी मतभेद नहीं हो। यहाँ पत्नी के साथ तय करना कि तुम्हारे और मेरे बीच मतभेद नहीं होगा, उतनी एकता होनी चाहिए। तुम्हारे बीच ऐसी एकता है?
प्रश्नकर्ता : ऐसा कभी सोचा नहीं था। आज पहली बार सोच रहा
दादाश्री : हाँ, यह सोचना पड़ेगा न? भगवान कितने सोच-विचार के बाद मोक्ष में गए!
बातचीत करो न! इसमें कुछ खुलासा होगा। यह तो संयोगवश इकट्ठा हुए हैं, वर्ना इकट्ठा नहीं होते ! इसलिए कुछ बातचीत करो ! इसमें हर्ज क्या? हम सब एक ही हैं, तुम्हें जुदाई लगती हैं। क्योंकि भेदबुद्धि से मनुष्य को भेद लगता है, बाकी सब एक ही हैं। मनुष्य को भेदबुद्धि होती है न! वाइफ के साथ भेदबुद्धि नहीं होती न?
प्रश्नकर्ता : हाँ, वहीं हो जाती है। दादाश्री : यह वाइफ के साथ भेद कौन करवाता है? बुद्धि ही!
औरत और उसका पति दोनों पड़ोसी के साथ झगड़ा करते हैं तब कैसे अभेद होकर झगड़ते हैं ! दोनों ऐसे ऐसे हाथ कर के तुम ऐसे और