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पाप-पुण्य
पाप-पुण्य हो तब परिणाम कैसा आता है ! पूरण करते समय सतत खयाल रखना कि, पाप करके किसीको धोखा देकर पैसा इकट्ठा करते समय हमेशा याद रखना कि वह भी गलन होनेवाला है। वह पैसा बैंक में रखोगे तो वह भी जानेवाला तो है ही। उसका भी गलन तो होगा ही। और वह पैसा इकट्ठा करते समय जो पाप किया, जो रौद्रध्यान किया, तो ऊपर से उसकी दफ़ाएँ साथ में आनेवाली हैं और जब उसका गलन होगा तब तेरी क्या दशा होगी?
पुण्य पूरा हो वह अलग कर दे ज्ञानी से.... पुण्याई का स्वभाव कैसा है? खर्च हो जाता है। करोड़ों मन बर्फ हो पर उसका स्वभाव कैसा होता है? पिघल जाए वैसा।
तेरा हमारे साथ का संयोग पुण्य के आधार पर है। तेरा पुण्य खतम हो जाए उसमें हम क्या करें? और तू मान बैठे कि यही संयोग मुझे चाहिए, फिर क्या हो? मार खा जाएगा। सिर भी टूट जाएगा। जितना मिला उतना लाभ। उसके आनंद में रहना कि मेरा पुण्य जगा है। तु ऐसा मानता है कि यह मनचाहा संयोग मिल जाए?
प्रश्नकर्ता : ऐसा नहीं।
दादाश्री : तब? यह नियमानुसार ही है न? या नियम से बाहर होगा?
पुण्य हो तब तक दादा के पास बैठने का समय मिल जाता है, उस पुण्य का उपकार मानना चाहिए। यह हमेशा के लिए होता होगा कहीं? ऐसी आशा भी कैसे रखी जाए?
कुसंग से पाप का प्रवेश इस दुनिया में सबसे बड़ा पुण्यशाली कौन है? जिसे कुसंग नहीं छुए। जिसे पाप करते हुए डर लगता है, वह बड़ा ज्ञान कहलाता है!
कुसंग से पाप का प्रवेश होता है और बाद में पाप काटता है। उसे जैसे ही फुरसत मिले तब और कोई कुसंग मिल जाता है, तब फिर कुसंग से निंदा करना बढ़ जाता है और निंदा करने से दाग़ पड़ जाते हैं। ये सारे दुःख हैं वे उसके ही हैं। हमें किसीके बारे में भी बोलने का अधिकार क्या है? हमें अपना देखना है। कोई दु:खी हो या सुखी, पर हमें उसके साथ क्या लेना-देना? यह तो राजा हो तो भी उसकी निंदा करते हैं। खुद को कुछ भी लेना-देना नहीं वैसी पराई बात ! ऊपर से द्वेष और ईर्ष्या और उसके ही दु:ख हैं। भगवान क्या कहते हैं कि वीतराग हो जा। तू है ही वीतराग, ये राग-द्वेष किसलिए? तू नाम में पड़ेगा तो राग-द्वेष हैं न? और अनामी हो जाएगा तो वीतराग हो गया!
सद्उपयोग, आत्मार्थ के लिए ही.... ऐसा है न, यह पुण्य जागा है तो खाना-पीना सब घर बैठे आ मिलता है इसलिए यह सब टी.वी. देखना है, नहीं तो खाने-पीने का ठिकाना नहीं हो तो पूरे दिन मेहनत करने जाए या टी.वी. देखे? यानी कि ये पुण्य का दुरुपयोग करते हैं। इस पुण्य का सदुपयोग तो ऐसे करना चाहिए कि यह टाइम है वह आत्मा के लिए निकालना चाहिए। फिर भी टी.वी. नहीं ही देखना वैसा आग्रह नहीं है, थोड़ी देर देख भी लें, पर उसमें से रुचि निकाल देनी चाहिए सोचकर कि यह गलत है।
परोपकार से बँधे पुण्य प्रश्नकर्ता : पुण्य किस तरह से सुधरते हैं?
प्रश्नकर्ता : नियमानुसार ही है।
दादाश्री : उसके बाद मान बैठें तो क्या होगा? वह तो कभी पुण्य जगे तब मुझसे भेंट हो जाती है। फिर बिछडता है तब पता चल जाता है। इसलिए बिछड़ने की स्थिति में अनुभव किया हो तो फिर हर्ज नहीं है न अपने को। पलायन वृत्ति से कहीं कर्म से छूटा जा सकता है? मैं बड़ौदा में होऊँ, तू बड़ौदा में हो, तब भी कर्म मिलने नहीं देंगे! यह ज्ञान दिया हुआ है, जिस समय जो आ मिला वह 'व्यवस्थित' और उसका समभाव से निकाल कर। बस, इतनी ही बात है।