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पाप-पुण्य
चाहिए। यह इतना घास काटकर या ऐसा-वैसा करके, शाम को दस-बीस डॉलर ले आए, बहुत हुआ, कमी तो नहीं पड़ेगी। तब कहे, नहीं, हमें तो ये लोग देख लेंगे तो क्या कहेंगे? अरे मूर्ख, लोगों के पास तो जॉब है, तेरे पास जॉब नहीं है, तू पहले इसकी फिक्र करना। किसीकी आबरू इस दुनिया में रही नहीं है। सभी ने कपड़े पहन लिए हैं, इसलिए आबरूदार दिखते हैं और कपड़े निकाल दें तो सब नंगे दिखेंगे। सिर्फ ज्ञानी पुरुष अकेले कपड़े उतार दें, तो भी नंगे नहीं दिखेंगे। बाक़ी यह पूरा जगत् नंगा
है।
पाप-पुण्य पड़े न? पलंग भी चूं-धूं करता रहे न?
प्रश्नकर्ता : पाप और पुण्य का उदय हो, उसका जीवन की घटनाओं पर कुछ असर होता है, उसका कोई उदाहरण देकर समझाइए।
दादाश्री : पाप का उदय हो, तब पहले तो जॉब (नौकरी) चली जाती है। फिर क्या होता है? वाइफ और बेटा हो, वहाँ स्टोर में जाने के लिए पैसे माँगते हैं। वह आदत पहले की पड़ी हुई है, उस अनुसार कहेंगे, दो सौ डॉलर दीजिए, इसलिए कलह होता है फिर। यहाँ सर्विस नहीं और क्या शोर मचाती रहती है बिना काम के? दो सौ-दो सौ डॉलर का खर्चा करना है? यह ऐसे शुरू होता है, सब आराम से। वह भी रोज़ कलह, फिर पत्नी कहेगी, बैंक में से लाकर नहीं देते हो। तब बैंक में थोड़ा रहने दें या नहीं रहने दें? यहाँ इसका किराया देना पड़ेगा। यह सब नहीं करना पड़ेगा? बैंक में पैसे नहीं भरने पड़ेंगे? परन्तु पत्नी कलह करती है, तो दिमाग पक जाए वैसी कलह करती है। ये सभी लक्षण तो रात को सोने भी नहीं देते, यहाँ अमरीका में कितनों को ऐसा अनुभव होता होगा और कहते भी हैं कर्कशा है। रांड और कर्कशा है, ऐसे शब्द बोलते हैं। यानी जितने शब्द आएँ उतने कठोर शब्द बोलता है। छोड़ता नहीं न? उसे परेशान करती रहती है, बेचारे उसकी इस बार नौकरी चली गई, एक तो ठिकाना नहीं पड़ता और दिमाग उल्टा ही चल रहा होता है, उसमें फिर यह परेशान करती है। होता है या नहीं होता वैसा?
प्रश्नकर्ता : होता है, होता है।
दादाश्री : किसी जगह पर होता होगा या बहुत जगहों पर? जॉब चली गई हो, वे मुझे मिलते हैं, 'दादा जॉब चली गई है, क्या करूँ?' कहेगा।
वह जॉब चली गई हो और दिन बहुत अच्छी तरह से निकाले, वह विवेकी मनुष्य कहलाता है। पत्नी और खुद दोनों अच्छी तरह दिन गुजारें वह विवेकी। नये कपड़े नहीं लाते और पहले के कपड़े हों न, वही पहनते हैं। जब तक नौकरी नहीं मिले न, तब तक उतना टाइम निकाल लेते हैं। और पतियों को उत्साही रहना चाहिए, जॉब चली जाए उससे डरना नहीं
प्रश्नकर्ता : एक तरफ जॉब गई हो और दूसरी तरफ दादा मिले हों, तो वह पाप और पुण्य दोनों इकट्ठे हो गए?
दादाश्री : यह पाप का उदय अच्छा आया कि दादा मिल गए, इसलिए दादा हमें पाप में क्या करना चाहिए, वह बता देते हैं और हमारा सब ठिकाने पर ला देते हैं। और पुण्य का उदय हो और दादा मिले हों, तो उसमें क्या दादा के पास से जानने को मिला हमें? और पाप का उदय हो तब दादा कहेंगे कि देख भाई, इस तरह बरतना हं, अब ऐसा करो, वैसा करो और सब ठिकाने पर ला देते हैं। अर्थात् पाप का उदय हो और दादा मिल जाएँ, वह बहुत अच्छा कहलाता है।
रहस्य, बुद्धि के आशय के... हर एक व्यक्ति को खुद के घर में आनंद आता है। झोंपड़ीवाले को बंगले में आनंद नहीं आता और बंगलेवाले को झोंपड़ी में आनंद नहीं आता। उसका कारण उसकी बुद्धि का आशय है। जो जैसा बुद्धि के आशय में भरकर लाया होता है, वैसा ही उसे मिलता है। बुद्धि के आशय में जो भरा हुआ होता है, उसकी दो फोटो खिंचती है, (१) पापफल और (२) पुण्यफल। बुद्धि के आशय का हर एक ने विभाजन किया है। उस सौ प्रतिशत में से अधिकतर प्रतिशत मोटर-बंगला, बेटे-बेटियाँ और पत्नी, उन सबके लिए भरा है। तो वह सब प्राप्त करने में पुण्य खर्च हो गया और धर्म के लिए मुश्किल से एक-दो प्रतिशत ही बुद्धि के आशय में भरे।