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पाप-पुण्य
दादाश्री : हाँ, उस पुण्य के गाइड के लिए तो लोग शुभाशुभ में पड़े हैं न! उस गाइड से सभी मिलेगा। पर मोक्ष के मार्ग में जाते हुए पुण्य बँधता है, पर ऐसे पुण्य की ज़रूरत नहीं है। मोक्ष में जानेवालों का पुण्य तो कैसा होता है? उसे जगत् में सूर्यनारायण उगे या नहीं, वह भी पता नहीं चलता और पूरी ज़िन्दगी बीत जाती है, वैसे पुण्य होते हैं। तो फिर ऐसे कचरे जैसे पुण्य का क्या करना है?
नहीं होती बाकी पाप की कभी प्रश्नकर्ता : यह मार्ग नहीं मिले, तब तक तो उस पुण्य की ज़रूरत है न?
दादाश्री : हाँ, वह ठीक है। पर लोगों के पास कहाँ पुण्य साबुत है? कुछ भी ठिकाना नहीं है। क्योंकि आपकी क्या इच्छा है? तब कहे कि पुण्य करो तो पाप का उदय नहीं आएगा। जब कि भगवान क्या कहते हैं? तूने सौ रुपये का पुण्य बाँधा तो तेरे खाते में सौ रुपये जमा हो जाते हैं। उसके बाद दो रुपये जितना पाप किया यानी कि किसी मनुष्य को 'हट, हट, दूर खिसक' ऐसा कहा, उसमें थोड़ा तिरस्कार आ गया। अब उसका जमा-उधार नहीं होता। भगवान कोई कच्ची माया नहीं है। यदि पुण्य-पाप का जमा-उधार होता तब तो इस वणिक जाति के वहाँ थोड़ा भी दुःख नहीं होता! पर ये तो सुख भी भोगो और दुःख भी भोगो, भगवान कैसे पक्के!
प्रश्नकर्ता : पुण्य के रास्ते पर मनुष्य यदि जाए तो फिर पाप किसलिए आता है?
दादाश्री : वह तो हमेशा से ही नियम है न, कि कोई भी कार्य आप करो, तो पुण्य का कार्य हो तो आपके सौ रुपये जमा होते हैं और पाप का कार्य हो तो भले थोड़ा ही, एक ही रुपये का हो तो भी वह आपके खाते में उधारी में जाता है और वह सौ में से एक भी कम नहीं होता। उस तरह यदि घटता तो कोई पाप लगता ही नहीं। अर्थात् दोनों अलगअलग रहे हैं और दोनों के फल भी अलग-अलग आते हैं। पाप का फल
पाप-पुण्य आए तब कड़वा लगता है।
पुण्य में से पाप इस तरह नहीं घटते हैं। यदि घट जाते तब तो लोग तो बहुत ही पक्के। बिलकुल भी दुःख नहीं आता। एक भी बेटा मरता नहीं या बेटी मरती नहीं। नौकर चोरी नहीं करते। कुछ भी नहीं करते। मजे होते। यह तो पुण्य घेर लें तो मोटरों में मौज-मज़ा भी करवाते हैं और पाप घेर लें तब उसी मोटर से एक्सिडेन्ट करवाता है। यह तो सब घेर लेगा। भीतर होगा उतना सामान घेर लेगा। नहीं होगा तो कहाँ से घेरेगा? जो है वह हिसाब है। उसमें कुछ भी बदलाव नहीं होगा।
__ अनजाने में हुए पापों का? प्रश्नकर्ता : यह मैंने पाप किया या पुण्य किया, ऐसी समझ नहीं हो तो पाप-पुण्य होता है? उसे समझ ही नहीं हो कि यह मैंने पाप किया और यह मैंने पुण्य किया तो उसका बिलकुल असर उसे नहीं ही होगा न?
दादाश्री : कुदरत का नियम ऐसा है कि आपको समझ हो या समझ नहीं हो, फिर भी उसका असर हुए बिना रहता नहीं है। इस पेड़ को काटा, उसमें आप कोई पाप या पुण्य समझते नहीं हों, पर उससे पेड़ को दु:ख तो हुआ ही है न? इसलिए आपको पाप लगा। आप चार घंटे लाइन में खड़े रहकर राशन में से कंट्रोल की चीनी की थैली लेकर जा रहे हों और थैली में छेद हो तो उसमें से चीनी बिखर रही हो तो वह चीनी किसीके काम आएगी या नहीं? नीचे चींटियाँ होती हैं, वे चीनी को ले जाती हैं और चींटियों का भला हो जाता है। अब इसे आपने दान दिया, ऐसा कहा जाएगा। भले बिना समझे, पर दान होता है न? अपनी जानकारी में नहीं है, फिर भी दान होता रहता है न! और चींटियों को सुख होता है न? उससे आपको पुण्य बँधता है। उसका फल भी बिना समझे भोग लिया जाता है!
कितने ही कहते हैं कि अनजाने में पाप हो जाए तो उसका फल कुछ नहीं आता। नहीं क्यों आएगा? मुए, अनजाने में अंगारों पर हाथ रख