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पाप-पुण्य किया होगा, पुण्य अधिक किया होगा। इसलिए तो इस सत्संग में आने का टाइम मिला, यहाँ आ सके, नहीं तो सत्संग में आने का टाइम किसे होता है?
पुण्य-पाप के परिणाम स्वरूप... प्रश्नकर्ता : पाप और पुण्य से उसका संबंध किस प्रकार होता है?
दादाश्री : यह पाप है वह, अभी आप यहाँ पर आए हो तो आप यहाँ किसीको ठोकर नहीं लगे ऐसे सँभलकर चलते हो और ठोकर लगे वैसी जगह हो, जगह वैसी भीड़वाली हो, पर मन में सोच होती है कि किसीको लगे नहीं तो अच्छा, ऐसी भावना से यहाँ आओ, तो आपको पुण्य बँधेगा।
और, भीड़ है इसलिए लग भी जाती है, वैसी भावना से आओ तब पाप बँधेगा।
किसीको अपने से किंचित मात्र दुःख हो जाए, तो उसे पाप ही बँधता है। किसीको सुख पहुँचे, शांति हो, किसीके दिल को ठंडक हो, उससे निरा पुण्य बँधता है।
अब वे पूर्व के बँधे हुए पाप, वे इस भव में वापिस उदय में आते हैं। योजना जो पिछले जन्म में हुई थी, वह इस जन्म में फलीभूत होती
पाप-पुण्य प्रश्नकर्ता : करता ही है।
दादाश्री : अरे, एक व्यक्ति ने दावा दायर किया था बाप पर, उसने क्या-क्या किया फिर? उसने दावा दायर करने के बाद वकील से ऐसा कहा, कि पिताजी हार गए तो हर्ज नहीं, वह तो अच्छा हो गया अब। लो, यह आपकी तीन सौ रुपये की फ़ीस। पर अभी एक बार चलाओ। तब कहे, 'क्यों अब क्या है?' तब उसने कहा, 'नाक कटवानी है।' अरे मुए, बाप की नाक कटवानी है? तब कहता है, 'हाँ, उसके लिए मैं डेढ़ सौ रुपये दूंगा।' तो वहाँ पर फजीता करवाया, नाक कटवाई। यानी जब अपनी भूल हो और पाप (का उदय) हो तब, बेटा भी दुश्मन हो जाता है।
परम मित्र कौन? पुण्य अच्छा हो तो सबकुछ अच्छा है। इसलिए पुण्यरूपी मित्र हो तो जहाँ जाओ वहाँ सुख, सुख और सुख। वह मित्र होना चाहिए। पाप रूपी मित्र आया कि घुसा लगाए बिना रहेगा नहीं। फिर समभाव से निकाल नहीं होता, तब चिल्लाना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : वह जो आपने कहा है कि पुण्य चाहे जहाँ मित्र की तरह काम करता है...
दादाश्री : हाँ, खराब से खराब जगह पर आपको, किसी भी जगह पर जहाँ फँस जाओ, वहाँ आपका पुण्य कार्यान्वित होकर खड़ा रहता है।
प्रश्नकर्ता : पाप घर में भी दुःखी करता है।
दादाश्री : पाप घर में बिस्तर में मार डालता है। बिस्तर में चिंता करवाता है, फर्स्टक्लास बिस्तर बिछाया, उस पर भी चिंता करवाता है। पाप छोड़ता नहीं न! इसलिए ही संतों ने कहा हुआ है, पाप से डरो।
कैसा पुण्य चाहिए मोक्ष के लिए? प्रश्नकर्ता : जब तक मोक्ष के मार्ग पर नहीं पहुँचे, तब तक पुण्य नाम के गाइड की ज़रूरत पड़ती है न?
जब पाप का उदय आता है तब परा दिन मन में विचार. खराब चिंता के विचार आया करते हैं, बाहर भी नकसान होता है. बच्चे विरोध करते हैं, पार्टनर के साथ झगड़े होते हैं, पाप का उदय हो तब। और पुण्य का उदय हो तब दुश्मन हो न, वह भी आकर कहेगा, 'अरे चंदूभाई, कोई कामकाज हो तो मुझे कहना...' अरे, तू दुश्मन, पर तब तो पुण्य का उदय आया था आपका। इसलिए पुण्य के उदय में शत्रु मित्र बन जाता है। और पाप का उदय हो, तब बेटा शत्रु बन जाता है। कोई बेटा बाप के ऊपर दावा दायर करता है क्या?