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________________ १२७ भूल बिना का ज्ञान और समझ ४९ दोष देखे, वहाँ बुद्धि स्थिर ५६ काफी है बैठनी प्रतीति भूल की ४९ पाने को मुक्ति, देखे निजदोष ५८ भूल मिटा दे, वह भगवान ५१ आ जाओ, एक बात पर भूल बिना का दर्शन... ५२ पड़ा ही होता है भीतर... अलौकिक सामायिक वह... ५३ खुद का गटर... नहीं छूता कुछ... ५४ दृष्टि, अभिप्राय रहित आरोप लगाने से, अटके... ५४ ऐसे अंत आए उलझनों का ६२ बुद्धि एक्सपर्ट, दोष देखने में ५५ जहाँ छूटा मालिकीपन सर्वस्व.... ६३ दोष देखना, खुद के ही सदा ५५ आत्मदृष्टि होने के बाद... गरुड़ आते ही, भागें साँप ६४ मोड़नी, दोष देखने की.. निष्पक्षपाती दृष्टि ६४ 'व्यवस्थित' कर्ता, वहाँ... वैसे-वैसे प्रकटे आतम उजियारा ६५ वज्रलेपो भविष्यति... गुह्यतम विज्ञान ६६ देखे दोष ज्ञानी के, उसे... दोष होते हैं परतोंवाले ६७ सरल को ज्ञानी कृपा अपार गुनहगारी पाप-पुण्य की ६८ गुण देखने से गुण प्रकट स्वरूप प्राप्ति के बाद... ६९ निजकर्म यानी निजदोष इसलिए हो गए ज्ञानी ७१ शुद्ध उपयोग, आत्मा का दिखें प्रपात दोष के... ७१ भूलें, उजाले की.. घर में टोका जाए... ७३ प्रकटे केवलज्ञान, अंतिम.. ऐसे होते हैं कर्म चोखे ७४ अँधेरे की भूलें... देखो सामनेवाले को... ७५ दादा 'डॉक्टर' दोषों के वह है एकांतिक रूप से... ७६ दोष निकालने का कॉलेज महत्व है, भूल के भान का ७७ आवरण टूटने से दोष दिखें वहाँ पुरुषार्थ या कृपा? ७९ वीतरागों की निर्दोष दृष्टि वीतरागभाव से विनम्रता... ७९ दोषित दृष्टि को.... 'ज्ञान' प्राप्ति के बाद.. ८१ करना नहीं है,मात्र देखना है १०१ तब दोष हों, वे.... ८४ गेहूँ खुद के ही बीनो न श्रद्धा से शुरू, वर्तन से... ८५ यह तो इन्द्रियगम्य ज्ञान... नहीं छोड़ना कभी... ८६ और यह ज्ञानगम्य... 23 खुद की भूलों को खुद.. १०६ संपूर्ण दोष रहित दशा.... १११ तब संपूर्ण हुआ निकाल १०७ जागृति भूलों के सामने... ११२ कहाँ तक मन चोखा हुआ १०७ इसलिए 'हमारा' नहीं ऊपरी.. ११२ तब तक ऊपरी भीतरवाले.. १०८ इसलिए 'ज्ञानी' देहधारी... ११२ भिन्नता उन दोनों के... १०९ भीतरवाले भगवान दिखाएँ,... ११३ जगत् निर्दोष भगवान ने देखा जग निर्दोष ११५ दोष दिखाएँ, कषाय भाव १२६ कौन-सी दृष्टि से जग दिखे... ११५ वहाँ किसे डाँटोगे? तत्त्व दृष्टि से जगत् निर्दोष ११६ नहीं कोई दुश्मन अब.... १२८ जगत् निर्दोष, प्रमाण सहित ११८ साँप, बिच्छू भी हैं निर्दोष... १२९ शीलवान के दो गुण ११८ महावीर ने भी देखे स्वदोष १३० यह है ज्ञान का थर्मामीटर ११९ अभेद दृष्टि होने से बने... १३१ एक रकम आप मानोगे? १२० गच्छ-मत की जो कल्पना... दृष्टि के अनुसार सृष्टि १२० आज का दर्शन और... १३२ जग निर्दोष अनुभव में... १२२ आश्चर्यकारी, अद्भुत... १३४ अंतिम दृष्टि से जग निर्दोष १२४ नहीं देखते दादा दोष... १३५ जान लिया तो उसका नाम.... १२६ तब प्रकट हो, मुक्त हास्य १३६
SR No.009595
Book TitleNijdosh Darshan Se Nirdosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages83
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size48 KB
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