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________________ मानव धर्म मानव धर्म प्रश्नकर्ता : सभी को सुख पहुँचाने की शक्ति प्राप्त हो, ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए न? दादाश्री : हाँ, ऐसी प्रार्थना कर सकते हैं! जीवन व्यवहार में यथार्थ मानव धर्म प्रश्नकर्ता : अब जिसे मनुष्य की मूल आवश्यकताएँ कहते हैं, उस भोजन, पानी, आराम आदि की व्यवस्था और प्रत्येक मनुष्य को आसरा मिले, इसके लिए प्रयत्न करना मानव धर्म कहलाता है? दादाश्री : मानव धर्म तो वस्तु ही अलग है। मानव धर्म तो यहाँ तक पहुँचता है कि इस दुनिया में लक्ष्मी का जो बँटवारा है, वह कुदरती बँटवारा है। उसमें मेरे हिस्से का जो है वह आपको देना पड़ेगा। इसलिए मुझे लोभ करने की जरूरत ही नहीं है। लोभ न रहे वह मानव धर्म कहलाता है। लेकिन इतना सब तो नहीं रह सकता, परंतु मनुष्य यदि कुछ हद तक का पालन करे तो भी बहुत हो गया। प्रश्नकर्ता : तो उसका अर्थ यह हुआ कि जैसे-जैसे कषाय रहित होते जाएँ, वह मानव धर्म है? दादाश्री : नहीं, ऐसा हो तब तो फिर वह वीतराग धर्म में आ गया। मानव धर्म यानी तो बस इतना ही कि पत्नी के साथ रहें, बच्चों के साथ रहें, फलाँ के साथ रहें, तन्मयाकार हो जाएँ, शादी रचाएँ इन सबमें कषाय रहित होने का सवाल ही नहीं है, किन्तु आपको जो दुःख होता है वैसे दूसरों को भी दुःख होगा, ऐसा मानकर आप चलें। प्रश्नकर्ता : हाँ, पर उसमें यही हुआ न, कि मानो कि हमें भूख लगी है। भूख एक प्रकार का दुःख है। उसके लिए हमारे पास साधन है और, हम खाते हैं। किन्तु जिसके पास वह साधन नहीं है उसे वह देना। हमें जो दुःख होता है वह औरों को नहीं हो ऐसा करना वह भी एक तरह से मानवता ही हुई न? दादाश्री : नहीं, यह आप जो मानते हैं न, वह मानवता नहीं है।। कुदरत का नियम ऐसा है कि वह हर किसी को उसका भोजन पहुँचा देती है। एक भी गाँव हिन्दुस्तान में ऐसा नहीं है जहाँ पर किसी मनुष्य को कोई खाना पहुँचाने जाता हो, कपड़े पहुँचाने जाता हो। ऐसा कुछ नहीं है। यह तो यहाँ शहरों में ही है, एक तरह का प्रतिपादन किया है, यह तो व्यापारी रीत आज़माई कि उन लोगों के लिए पैसा इकट्ठा करना। अड़चन तो कहाँ है? सामान्य जनता में, जो माँग नहीं सकते, बोल नहीं सकते, कुछ कह नहीं पाते वहाँ अड़चनें हैं। बाकी सब जगह इसमें काहे की अड़चन है? यह तो बिना वज़ह ले बैठे हैं, बेकार ही! प्रश्नकर्ता : ऐसे कौन हैं? दादाश्री : हमारा सारा सामान्य वर्ग ऐसा ही है। वहाँ जाइए और उनसे पूछिए कि भाई, तुम्हें क्या अड़चन है? बाकी इन लोगों को, जिन्हें आप कहते हैं न कि इनके लिए दान करना चाहिए, वे लोग तो दारू पीकर मौज उड़ाते हैं। प्रश्नकर्ता : वह ठीक है किन्तु आपने जो कहा कि सामान्य लोगों को ज़रूरत है, तो वहाँ देना वह धर्म हुआ न? । दादाश्री : हाँ, मगर उसमें मानव धर्म को क्या लेना-देना? मानव धर्म का अर्थ क्या कि जैसे मुझे दु:ख होता है वैसे दूसरों को भी होता होगा इसलिए ऐसा दुःख न हो इस प्रकार व्यवहार करना चाहिए। प्रश्नकर्ता : ऐसा ही हुआ न? किसी को कपड़े नहीं हो... दादाश्री : नहीं, वे तो दयालु के लक्षण हुए। सभी लोग दया कैसे दिखा सकते हैं? वह तो जो पैसेवाला हो वही कर सकता है।
SR No.009592
Book TitleManav Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size213 KB
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