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मानव धर्म
मानव धर्म
प्रश्नकर्ता : सामान्य मनुष्य को ठीक से प्राप्त हो, आवश्यकताएँ पूर्ण हों, इसलिए सामाजिक स्तर को ऊपर उठाने के लिए प्रयत्न करना, वह ठीक है? सामाजिक स्तर उठाना अर्थात् हम सरकार पर दबाव डालें कि आप ऐसा करें, इन लोगों को दें। ऐसा करना मानव धर्म में आता
है?
दूसरा रास्ता दिखाइए। मैंने कहा, यह आदमी शरीर से तगड़ा है तो उसे अपने पैसे से हजार-डेढ़ हज़ार का एक ठेला दिलवा देना, और दो सौ रुपये नक़द देकर कहना कि सब्जी-भाजी ले आ और बेचना शुरू कर दे। और उसे कहना कि इस ठेले का भाड़ा हर दो-चार दिन में पचास रुपये भर जाना।
प्रश्नकर्ता : मुफ्त नहीं देना, उसे ऐसे उत्पादन के साधन देना।
दादाश्री : हाँ, वर्ना ऐसे तो आप उसे बेकार बनाते हैं। सारे संसार में कहीं बेकारी नहीं है, ऐसी बेकारी आपने फैलाई है। यह हमारी सरकार ने फैलाई है। यह सब करके वोट लेने के लिए यह सारा ऊधम मचाया है।
दादाश्री : नहीं। वह सारा गलत इगोइज्म (अहंकार) है, इन लोगों का।
समाजसेवा करते हैं, वह तो लोगों की सेवा करता है, ऐसा कहलाए या तो दया करता है, संवेदना दिखलाता है ऐसा कहलाए। किन्तु मानव धर्म तो सभी को स्पर्श करता है। मेरी घड़ी खो जाए तो मैं समझू कि कोई मानव धर्मवाला होगा तो वापस आएगी। और उस प्रकार की जो भी सभी सेवा करते हों, वे कुसेवा कर रहे हैं। एक आदमी को मैंने कहा, 'यह क्या कर रहे हो? उन लोगों को यह किस लिए दे रहे हो? ऐसे देते होंगे? आए बड़े सेवा करनेवाले! सेवक आए! क्या देखकर सेवा करने निकले हो?' लोगों के पैसे गलत रास्ते जाते हैं और लोग दे भी आते हैं!
मानव धर्म तो सेफसाइड (सलामती) ही दिखाता है।
प्रश्नकर्ता : यह बात सच है कि हम दया दिखाएँ तो उसमें एक तरह की ऐसी भावना होती है कि वह दूसरों पर जी रहा है।
दादाश्री : उसे खाने-पीने का मिला, इसलिए फिर उनमें से कोई दारू रखता हो, वहाँ जाकर बैठता है और खा-पीकर मौज उड़ाता है।
प्रश्नकर्ता : हाँ, ऐसे पीते हैं। उसका उपयोग उस तरह से होता
प्रश्नकर्ता : किन्तु आज उसे ही मानव धर्म कहा जाता है।
दादाश्री : मनुष्यों को ख़तम कर डालते हो, आप उन्हें जीने भी नहीं देते। उस आदमी को मैंने बहुत डाँटा। कैसे आदमी हो? आपको ऐसा किस ने सिखाया? लोगों से पैसे लाना और अपनी दृष्टि में गरीब लगे उसे बुलाकर देना। अरे, उसका थर्मामीटर (मापदंड) क्या है? यह गरीब लगा इसलिए उसे देना है और यह नहीं लगा इसलिए क्या उसे नहीं देना? जिसे मुसीबत का अच्छी तरह वर्णन करना नहीं आया, बोलना नहीं आया, उसे नहीं दिए और दूसरे को अच्छा बोलना आया उसे दिए। बड़ा आया थर्मामीटरवाला! फिर उसने मुझसे कहा, आप मुझे
दादाश्री : यदि ऐसा ही हो, तो हमें उन्हें बिगाड़ना नहीं चाहिए। यदि हम किसी को सुधार नहीं सकते तो उसे बिगाड़ना भी नहीं चाहिए। वह कैसे? ये लोग जो सेवा करते हैं वे औरों से कपड़े लेकर ऐसे लोगों को देते हैं, किन्तु ऐसे लेनेवाले लोग कपड़े बेचकर बरतन लेते हैं, पैसे लेते हैं। इसके बजाय उन लोगों को किसी काम पर लगा दें। इस प्रकार कपडे और खाना देना, मानव धर्म नहीं है। उन्हें किसी काम पर लगाओ।