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________________ मानव धर्म १८ मानव धर्म दादाश्री: कॉमन धर्म तो मानव धर्म. वह अपनी समझ के अनुसार मानव धर्म निभा सकता है। प्रत्येक मनुष्य अपनी समझ के अनुसार मानव धर्म निभाता है, किन्तु जो सही अर्थों में मानव धर्म अदा करते हों, तो वह सबसे उत्तम कहलाए। मानव धर्म तो बहुत श्रेष्ठ है किन्तु मानव धर्म में आए तब न? लोगों में मानव धर्म रहा ही कहाँ है? मानव धर्म तो बहुत सुंदर है परंतु वह डिवेलपमेन्ट के अनुसार होता है। अमरीकन का मानव धर्म अलग और हमारा मानव धर्म अलग होता है। प्रश्नकर्ता : उसमें भी फर्क है, दादाजी? किस तरह फर्क है? तो बहुत बड़ा अपराध कहलाता है। मारना हो तो ऊपरी (हमारे उपर जो है) को मार! भगवान को अथवा ऊपरी को, क्योंकि वे आपके ऊपरी हैं, शक्तिमान हैं। यह तो अन्डरहैन्ड अशक्त है, इसलिए जिंदगीभर उसे झिड़काता रहता है। मैंने तो अन्डरहैन्ड चाहे कैसा भी गुनहगार रहा हो, तो भी उसे बचाया है। किन्तु ऊपरी तो चाहे कितना भी अच्छा हो तो भी मुझे ऊपरी नहीं पुसाता और मुझे किसी का ऊपरी बनना नहीं है। ऊपरी यदि अच्छा हो तो हमें हर्ज नहीं, लेकिन उसका यह अर्थ नहीं है कि वह हमेशा ऐसा ही रहेगा। वह कभी हमें सुना भी सकता है। ऊपरी कौन कहलाए कि जो अन्डरहैन्ड को सँभाले! वह खरा ऊपरी है। मैं खरा ऊपरी खोजता हूँ। मेरा ऊपरी बन पर खरा ऊपरी बन! तू हमें धमकाए, क्या हम इसलिए जन्में हैं? ऐसा तू हमें क्या देनेवाला है? आपके यहाँ कोई नौकरी करता हो तो उसे कभी भी तिरस्कृत मत करना, छेड़ना मत। सभी को सम्मानपूर्वक रखना। क्या पता किसी से क्या लाभ हो जाए! प्रत्येक क़ौम में मानव धर्म प्रश्नकर्ता : मनुष्य गति की चौदह लाख योनियाँ, लेयर्स (स्तर) हैं। किन्तु यों तो मानव जाति की तरह देखें तो बाइलॉजिकली (जैविक) तो किसी में कोई अंतर नज़र नहीं आता है, सभी समान ही लगते हैं लेकिन इसमें ऐसा समझ में आता है कि बाइलॉजिकल अंतर भले न हो, किन्तु जो उनका मानस है...... दादाश्री : वह डेवलपमेन्ट (आंतरिक विकास) है। उसके भेद इतने सारे हैं। प्रश्नकर्ता : अलग-अलग लेयर्स होने के बावजूद बाइलॉजिकली सभी समान ही हैं तो फिर उसका कोई एक कॉमन धर्म हो सकता है न? दादाश्री : बहुत फर्क होता है। हमारी ममता और उनकी ममता में फर्क होता है। हमारी माता-पिता के प्रति हमारी जितनी ममता होती है उतनी उनमें नहीं होती। इसलिए ममता कम होने से भाव में फर्क होता है, उतना कम होता है। प्रश्नकर्ता : जितनी ममता कम होती है उतना भाव में फर्क पड़ जाता है? दादाश्री : उसी मात्रा में मानव धर्म होता है। अतः हमारे जैसा मानव धर्म नहीं होता। वे लोग तो मानव धर्म में ही हैं। करीब अस्सी प्रतिशत लोग तो मानव धर्म में ही हैं, सिर्फ हमारे लोग ही नहीं हैं। बाकी सभी उनके हिसाब से तो मानव धर्म में ही हैं। मानवता के प्रकार, अलग-अलग प्रश्नकर्ता : ये जो मानव समूह हैं, उनकी जो समझ है. चाहे जैन हों, वैष्णव हों, क्रिश्चियन हों, वे तो सभी जगह एक समान ही होते हैं न? दादाश्री : ऐसा है कि जैसा डिवेलपमेन्ट हुआ हो, ऐसी उसकी
SR No.009592
Book TitleManav Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size213 KB
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