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________________ मानव धर्म मानव धर्म हैं, तो उच्च गति में जाते हैं। डेबिट जमा करे तो नीचे जाते हैं और यदि क्रेडिट-डेबिट दोनों व्यापार बंद कर दें तो मुक्ति हो जाए। ये पाँचों जगह खुली हैं। चार गतियाँ हैं। बहुत क्रेडिट हो तो देवगति मिलती है। क्रेडिट ज्यादा और डेबिट कम हो तो मनुष्यगति मिलती है। डेबिट ज्यादा और क्रेडिट कम हो तो जानवरगति और संपूर्णतया डेबिट वह नर्कगति। ये चार गतियाँ और पाँचवी जो है वह मोक्षगति। ये चारों गतियाँ मनुष्य प्राप्त कर सकते हैं और पाँचवी गति तो हिन्दुस्तान के मनुष्य ही प्राप्त कर सकते हैं। 'स्पेशल फॉर इन्डिया।' (हिन्दुस्तान के लिए खास) दूसरों के लिए वह नहीं है। अब यदि उसे मनुष्य होना हो तो उसे बुजुर्गों की, माँ-बाप की सेवा करनी चाहिए, गुरु की सेवा करनी चाहिए, लोगों के प्रति ओब्लाइजिंग नेचर (परोपकारी स्वभाव) रखना चाहिए। व्यवहार ऐसा रखना चाहिए कि दस दो और दस लो, इस प्रकार व्यवहार शुद्ध रखें तो सामनेवाले के साथ कुछ लेन-देन नहीं रहता। इस तरह व्यवहार करो, संपूर्ण शुद्ध व्यवहार। मानवता में तो, किसी को मारते समय या किसी को मारने से पहले ख्याल आता है। मानवता हो तो ख्याल आना ही चाहिए कि यदि मुझे मारे तो क्या हो? यह ख्याल पहले आना चाहिए तब मानव धर्म रह सकेगा, वर्ना नहीं रहेगा। इसमें रहकर सारा व्यवहार किया जाए तो फिर से मनुष्यत्व प्राप्त होगा, वर्ना मनुष्यत्व फिर से प्राप्त होना भी मुश्किल है। जिसे इसका पता नहीं है कि इसका परिणाम क्या होगा, तो वह मनुष्य ही नहीं कहलाता। खुली आँखों से सोएँ वह अजागृति, वह मनुष्य कहलाता ही नहीं। सारा दिन बिना हक़ का भोगने की ही सोचते रहें, मिलावट करें, वे सभी जानवरगति में जाते हैं। यहाँ से, मनुष्य में से सीधा जानवरगति में जाकर फिर वहाँ भुगतता है। अपना सुख दूसरों को दे दे, अपने हक़ का सुख भी औरों को दे दें तो वह सुपर ह्युमन कहलाता है और इसलिए देवगति में जाता है। खुद को जो सुख भोगना है, खुद के लिए जो निर्माण हुआ, वह खुद को ज़रूरत है फिर भी औरों को दे देता है, वह सुपर ह्युमन है। अत: देवगति प्राप्त करता है। और जो अनर्थ नुकसान पहुंचाता है, खुद को कोई फायदा नहीं हो फिर भी सामनेवाले को भारी नुकसान पहुंचाता है, वह नर्कगति में जाता है। जो लोग बिना हक़ का भोगते हैं, वे तो अपने फ़ायदे के लिए भोगते हैं, इसलिए जानवर में जाते हैं। किन्तु जो बिना किसी कारण लोगों के घर जला डालते हैं, ऐसे और कार्य करते हैं, दंगा-फ़साद करते हैं, वे सभी नर्क के अधिकारी हैं। जो अन्य जीवों की जान लें अथवा तालाब में जहर मिलाएँ, अथवा कँए में ऐसा कुछ डालें, वे सभी नर्क के अधिकारी हैं। सभी जिम्मेदारियाँ अपनी खुद की है। एक बालभर की जिम्मेदारी भी संसार में खुद की ही है। कुदरत के घर ज़रा-सा भी अन्याय नहीं है। यहाँ मनुष्यों में शायद अन्याय हो, लेकिन कुदरत के घर तो बिलकुल न्यायसंगत है। कभी भी अन्याय हुआ ही नहीं है। सब न्याय में ही रहता है और जो हो रहा है वह भी न्याय ही हो रहा है, ऐसा यदि समझ में आए तो वह 'ज्ञान' कहलाता है। जो हो रहा है वह गलत हुआ, यह गलत हुआ, यह सही हुआ' ऐसा बोलते हैं वह 'अज्ञान' कहलाता है। जो हो रहा है वह करेक्ट (सही) ही है। अन्डरहैन्ड के साथ मानव धर्म यदि कोई अपने पर गुस्सा करे वह हमसे सहन नहीं होता किन्तु सारा दिन दूसरों पर गुस्सा करते रहते हैं। अरे! यह कैसी अक्ल? यह मानव धर्म नहीं कहलाता। खुद पर यदि कोई जरा-सा गुस्सा करे तो सहन नहीं कर सकता और वही मनुष्य सारा दिन सबके ऊपर गुस्सा करता रहता है, क्योंकि वे दबे हुए हैं इसलिए ही न? दबे हुओं को मारना
SR No.009592
Book TitleManav Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2009
Total Pages21
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size213 KB
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