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चिंता
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चिंता
होगा? मुझे लगा कि मेरे हिस्सेदार तो शायद चिंता नहीं भी करते होंगे। मैं अकेला ही चिंता करता होऊँ। और बीवी-बच्चे सभी साझेदार हैं, तो वे तो कुछ जानते ही नहीं। अब वे कुछ जानते नहीं, तब भी उनका चलता है। तो मैं अकेला ही कमअक्ल हूँ, जो ये सारी चिंताएँ लेकर बैठा हूँ। फिर मुझे अक्ल आ गई। क्योंकि वे सभी साझेदार होकर भी चिंता नहीं करते, तो क्या मैं अकेला ही चिंता किया करूं?
सोचिए मगर चिंता मत कीजिए चिंता यानी क्या? यह समझ लेना चाहिए। हमें किसी भी विषय को लेकर, धंधे को लेकर, और किसी भी संबंध में, यदि कोई बीमारी हो और मन में विचार उठे, उसके लिए विचार आया, कुछ हद तक
और फिर वह विचार हमें भँवर में डाले और चक्कर चले तो समझना कि यह उलटे रास्ते चढ़ा है, इसलिए बिगड़ा। वहाँ से फिर चिंता शुरु हो जाती है।
विचार करने में हर्ज नहीं है। विचार करने का अधिकार है, कि भाई यहाँ तक विचार करना, और विचार जब चिंता में परिणित हो तो बंद कर देना चाहिए। यह एबाव नोर्मल विचार, चिंता कहलाते है। इसलिए हम विचार करेंगे मगर जो एबाव नोर्मल हुआ और अकुलाया पेट में, तब बंद कर देंगे।
प्रश्नकर्ता : आम तौर पर भीतर देखते रहे तब तक विचार कहलाता हैं और भीतर चिंता होने पर उलझ गया कहलाता है।
दादाश्री : चिंता हुई माने लपटाया ही न। चिंता हुई यानी वह समझता है कि मेरे कारण ही चलता है, ऐसा समझ बैठता है। इसलिए वह सब पचड़े में पड़ने जैसा ही नहीं है और है भी ऐसा ही। यह तो सभी मनुष्यों को यह रोग लग गया है। अब जल्दी कैसे निकले? जल्दी निकलनेवाला नहीं न! आदत-सी हो गई है, वह जायेगी नहीं न!
हेबीच्युएटेड (आदत से मज़बूर)।
प्रश्नकर्ता : आपके पास आये तो निकल जाता है न?
दादाश्री : हाँ, निकल जाता है पर धीरे धीरे निकलता है, झट से नहीं निकलता न!
परसत्ता हाथ में ले, वहाँ चिंता होगी आपको कैसा है? कभी उपाधि होती है? चिंता हो जाती है?
प्रश्नकर्ता : यह हमारी बड़ी बेटी की सगाई तय नहीं होती, इसलिए उपाधि हो जाती है।
दादाश्री : आप के हाथ में हो तो उपाधि कीजिए न, पर यह बात आपके हाथ में है? नहीं है। तो फिर उपाधि क्यों करते हैं? तब कुछ इन सेठजी के हाथ में है? इस बहन के हाथ में है?
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : तब किसके हाथ में है यह जाने बगैर हम उपाधि करें, यह किसके समान है कि ताँगा चल रहा है, उस पर हम दस आदमी बैठे हैं, अब उसे चलानेवाला चला रहा है और अंदर हम शोर मचायें कि, 'ए, ऐसे चला, ए, ऐसे चला' तो क्या होगा? जो चलाता है, उसे देखा कीजिए न ! कौन चलानेवाला है' यह जानें तो हमें चिंता नहीं होगी। आप रात-दिन चिंता करते हैं? कहाँ तक करेंगे? उसका अंत कब आयेगा यह मुझे बताइए?
ये बहन तो अपना लेकर आई है, क्या आप अपना लेकर नहीं आयी थी? ये सेठजी आपको मिले कि नहीं मिले? यदि सेठजी आपको मिल गये, तो इस बहन को क्यों नहीं मिलेंगे? आप ज़रा धीरज तो रखो। वीतराग मार्ग में हैं और ऐसी धीरज नहीं धरेंगे तो उससे तो आर्तध्यान होगा, रौद्रध्यान होगा।