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चिंता
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चिंत्ता
की चिंता रहेगी ही न कि, 'कल क्या करेंगे? कल क्या खायेंगे?'
दादाश्री : नहीं, वह ऐसा है न, सरप्लस (जरुरत से ज्यादा) की चिंता होती है। खाने की चिंता किसी को भी नहीं होती। सरप्लस की ही चिंता होती है। यह कुदरत ऐसी व्यवस्थित है कि सरप्लस की ही चिंता। बाकी, छोटे से छोटा पौधा चाहे कहीं भी उगा हो, वहाँ जाकर पानी छिड़क आती है। इतनी सारी तो व्यवस्था है। यह रेग्युलेटर ऑफ द वर्ल्ड है। वह वर्ल्ड को रेग्युलेशन में ही रखता है।
प्रश्नकर्ता : आपको सभी ऐसे सरप्लसवाले ही मिले लगते हैं कि जिन लोगों को चिंता होती ही है, डेफिशिट वाला (जरुरत से कम) कोई मिला नहीं लगता।
दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है, डेफिशिट वाले भी बहुत मिले हैं, पर उनको चिंता नहीं होती। उन्हें मन में जरा ऐसा होता है कि आज इतना लाना है, वह ले आते हैं। अर्थात चिंता-बिंता करें वे ओर होंगे, ये तो भगवान को सौंप देते हैं। 'उसे अच्छा लगा वह सही' ऐसा कहकर चलाते रहते हैं। और ये तो भगवान नहीं, ये तो खुद कर्ता है न! कर्म का कर्ता मैं और भोक्ता भी मैं, इसलिए फिर चिंता सिर पर लेता है।
चिंता, वहाँ लक्ष्मी टिके ? प्रश्नकर्ता : अगर ऐसा हो तब तो फिर लोग कमाने ही नहीं जायें और चिंता ही नहीं करें।
दादाश्री : नहीं, कमाने जाते हैं, वह भी उसके हाथ में नहीं हैं न! वे सारे नेचर (कुदरत) के घुमाये घूमते लट्टू हैं और मुँह से अहंकार करते हैं कि मैं कमाने गया था। और बिना वजह चिंता करते हैं। चिंतावाला रूपया लायेगा कहाँ से? लक्ष्मीजी का स्वभाव कैसा है? लक्ष्मी चिंतावाले के यहाँ मकाम नहीं करती हैं। जो आनंदी हो, जो भगवान को याद करता हो, उसके यहाँ लक्ष्मीजी जायेंगी।
चिंता से धंधे की मौत प्रश्नकर्ता : धंधे की चिंता होती है, बहुत अड़चनें आती है।
दादाश्री : चिंता होने लगे तो समझना कि कार्य अधिक बिगड़ेगा। चिंता नहीं होती तो समझना कि कार्य नहीं बिगड़ेगा। चिंता कार्य की अवरोधक है। चिंता से तो धंधे की मौत आती है। जो चढ़े-उतरे उसी का नाम धंधा, पूरण-गलन है वह। पूरण हुआ उसका गलन हुए बिना रहेगा ही नहीं। इस पूरण-गलन में हमारी कोई मिल्कियत नहीं है। और जो हमारी मिल्कियत है, उसमें कुछ पूरण-गलन होता नहीं है। ऐसा शुद्ध व्यवहार है। यह आपके घर में आपके बीवी-बच्चे सभी पार्टनर्स हैं न?
प्रश्नकर्ता : सुख-दुःख के भुगतान में हैं।
दादाश्री : आप अपने बीवी-बच्चों के अभिभावक (संरक्षक) कहलाते हैं। अकेले अभिभावक को ही चिंता क्यों करनी चाहिए? और घरवाले तो उल्टा कहते हैं कि आप हमारी चिंता मत करना। चिंता से कुछ बढ़ जायेगा क्या?
प्रश्नकर्ता : नहीं बढ़ता।
दादाश्री : नहीं बढ़ता तो फिर वह गलत व्यापार कौन करे? यदि चिंता से बढ़ जाता हो तो अवश्य करना।
उस समझ से चिंता गई... धंधा करने में तो बहुत बड़ा कलेजा चाहिए। कलेजा टूट जाये तो धंघा ठप्प हो जायें।
पहले एक बार हमारी कंपनी को घाटा हुआ। हमें ज्ञान होने से पहले, तब हमें सारी रात नींद नहीं आयी, चिंता होती रहती थी। तब भीतर से उत्तर मिला कि इस घाटे की चिंता अभी कौन-कौन करता