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________________ चमत्कार ५४ चमत्कार यानी दिन-दहाड़े ये बातचीत करते हैं। अब मैं जानता हूँ कि मैं वहाँ पर गया नहीं था। पर 'दादा भगवान' वहाँ जाते हैं, वह बात पक्की प्रश्नकर्ता : और 'ज्ञानी पुरुष' जानते नहीं हैं, वह भी पक्का है? दादाश्री : मैं जानता नहीं हैं, वह भी पक्का है और 'वे' घूमते हैं वह भी पक्का है, वह भी मैं जानता हूँ। और वहाँ अमरीकावाले कहते हैं न, 'आज मुझे तीन बार विधि करवाकर गए।' ऐसा कहते भी हैं और मुझे फिर उनका फोन भी आता है कि आज रात को 'दादा भगवान' आकर तीन बार उसे विधि करवा गए! इसलिए यह तो बड़ा आश्चर्य है! फिर भी उसमें नाम मात्र भी चमत्कार नहीं है। 'आपने मेरा दर्द मिटा दिया' सुनते हैं, उस घड़ी उन्हें टेस्ट आ जाता है, यानी वे टेस्ट छोड़ते नहीं हैं। तब यह टेस्ट नहीं छोड़ें तो वह मोक्ष रह जाता है! यहाँ रास्ते में ही मुकाम किया, इसलिए वह ध्येय रह जाएगा न!! यह तो मेरा हाथ लगा कि उसका काम हो ही जाता है। इसलिए वह ऐसा समझता है कि दादा ने किया यह। दादा को ऐसी कोई फरसत नहीं है, ऐसा सब करने के लिए। दादा तो, वे खुद जो सुख चख रहे हैं, वह सुख आपको देने आए हैं और संसार से मुक्ति दिलाने आए हैं। खुद मुक्त होकर बैठे हैं। संपूर्ण प्रकार से मुक्त होकर बैठे हुए हैं, वे देते हैं, दूसरा कुछ देते-करते नहीं हैं! यह रहस्य रहा अनबूझा और अपने वहाँ तो ऐसा भी होता है न कि आपके जैसे पढ़े-लिखे लोग, हर प्रकार से विचारशील, वे भी आकर मुझे कहते हैं, 'कल दोपहर को साढ़े तीन बजे आप मेरे यहाँ आए थे। और फिर साढ़े चार बजे तक मेरे यहाँ बैठे रहे। जो बातचीत की थी वह सब मैंने नोट कर ली है। फिर आप चले गए। वह बात सच है?' मैंने कहा, 'सच है!' तो फिर मुझे हाँ कहना पड़ता है और मैं तो गया ही नहीं था, दिन-दहाड़े। फिर मैंने पूछा, 'क्या बोला था, वह मुझे कह।' वह फिर कहता है, 'यह बोले थे।' वह मेरे ही शब्द दिखाता है। प्रश्नकर्ता : पर वह सूक्ष्म शरीर की बात है न, कहाँ इस स्थूल शरीर की बात है? दादाश्री : नहीं, उसे यह स्थूल शरीर दिखता है। यह तो मेरे भी मानने में नहीं आता। वे बातें ऐसी-ऐसी आती है, मेरे नाम से कोई देवता घूमते हैं या क्या घूमता है, वह पता ही नहीं चलता। क्योंकि देवताओं का वैक्रिय स्वभाव, जैसा देह धारण करना हो वैसा होता है। दादा के जैसा देह धारण करें, बातचीत ऐसी करें, सबकुछ करते हैं। फिर भी उसमें मैंने कुछ भी नहीं किया होता है। प्रश्नकर्ता : पर हमें आश्चर्य तो होगा ही न? दादाश्री : वह आश्चर्य लगता है, पर इसमें मैं उसे चमत्कार की तरह स्वीकार नहीं करता हूँ। यानी कुछ है इसके पीछे, समझ में नहीं आए वैसा रहस्य है। बुद्धिगम्य रहस्य नहीं है, पर समझ में नहीं आए वैसा रहस्य है यह। पर इसे मैं चमत्कार नहीं कहने दूँगा। चमत्कार कहें तो मैं जादूगर माना जाऊँगा। और मैं क्या कोई जादूगर हूँ? मैं तो 'ज्ञानी पुरुष' हूँ। और संडास जाने की शक्ति भी मुझमें नहीं है। वे 'दादा भगवान' कुछ रहस्य है, वह बात पक्की है। एक बहन खुद पोस्ट ऑफिस चलाती थीं। वह सुबह में पोस्ट ऑफिस में गईं तब दो लुटेरे अंदर छुपे हुए थे। बहन अंदर गई इसलिए उनको और उनकी बेटी, बीस साल की उन दोनों को बाँध दिया और कहा, 'अब चाबी दे।' तब वह बहन क्या कह रही थीं? प्रश्नकर्ता : उसने सब दे दिया और फिर एकदम बैठ गई।
SR No.009581
Book TitleChamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size228 KB
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