________________
चमत्कार
५२
चमत्कार
पर मैंने कुछ भी नहीं किया था। सिर्फ पैर पर विधि करवाई थी! ऐसा बड़ौदा के बड़े होस्पिटलवालों ने भी नोंध की है कि 'दादा भगवान' से इतने केसों में परिवर्तन हो गए हैं।
फिर तीन लोगों ने तो हमें ऐसी खबर दी थी कि प्लेन हिला कि हम 'दादा भगवान के असीम जय जयकार हो' बोलने लगे। अंदर लोगों में हाहाकार मच गया था। पर हम 'दादा भगवान के असीम जय जयकार हो' बोले कि प्लेन रेग्युलर हो गया!
यहाँ संसार मुक्त, युक्त नहीं ऐसे हमारे कितने सारे चमत्कार होते हैं, फिर भी हम उसे चमत्कार नहीं कहते हैं। लोग मुझे आकर कहते हैं, 'दादा, यह आपने चमत्कार किया। मुझे ऐसा लाभ हो गया।' मैंने कहा, 'यह चमत्कार नहीं है।' बाक़ी अपने यहाँ तो ऐसे अपार चमत्कार होते हैं। कोई थोड़े-बहुत होते हैं? पर वह क्या है? यह तो मेरा यशनाम कर्म है। इसलिए मेरा हाथ लगा कि आपका कल्याण हो जाता है और आप मुझे यश देते रहते हो कि यह सारा दादा ने किया। पर उसमें मेरा क्या है? यह तो यशनाम कर्म ने किया है! किसने किया?
प्रश्नकर्ता : फिर भी दादा ने किया कहलाएगा न?
दादाश्री : ना, दादा ने नहीं, यशनाम कर्म जो है न. वह कर्म होता है। कर्म अलग और हम लोग अलग। वह कर्म हमें फल देता है। तो यह यशनाम कर्म बहुत बड़ा होता है, इसलिए हमें हरकोई यश ही देता रहता है।
मिलता रहता है। यानी अपयश बांधा हुआ है उसने, और मैं नहीं करता हँ तो भी यह यश मिलता है, उसका क्या कारण है? यशनाम कर्म के कारण है।
मैं कईयों से कहता हूँ कि, यह ज्ञान होने से पहले सांसारिक बातों में यश मिलता रहता था। मैं कहता कि, 'भाई, इसमें मैं नहीं पड़ा हूँ, मैंने कुछ किया नहीं है, मैं जानता तक नहीं और ये दूसरे किसीने किया होगा, इसलिए यह यश दूसरे को दे आओ।' क्योंकि मैं जानता हूँ कि आपका यश हो, वह मुझे दे जाए, तो आपको रुखा रखते हैं न? किया हो आपने और यश मुझे दे जाते हैं। आपके मन में कैसी आशा होती है? कि यह व्यक्ति मुझे यश भी नहीं देता। इसलिए मैं क्या कहता हूँ उसे कि, 'यह दूसरे किसी ने किया है, इसलिए वहाँ जाकर दे आओ।' तो भी कहेगा, 'ना, ना, आपके बिना तो होगा ही नहीं। आप तो जब हो तब ऐसा ही बोलते हैं न!' इसलिए वापिस आकर मुझे ही देकर जाते हैं। कुछ भी करके, वह पोटली डालकर चला जाता है, अब उसका क्या हो? अब मैं क्या करूँ? इसका तो उपाय ढूंढना पड़ेगा न? फिर मैं समझ गया कि यह यशनाम कर्म है।
प्रश्नकर्ता : फिर उस पोटली का आप क्या करते हो?
दादाश्री : कुछ नहीं। हम ऐसे विधि करके उसे वापिस फेंक देते हैं। क्योंकि वह हम रखते नहीं हैं और हमने किया हो तो भी हम नहीं रखते हैं न! क्योंकि हम कर्ता ही नहीं हैं, निमित्त हैं सिर्फ। क्या हैं? निमित्त। ये हाथ लगा इसलिए कोई, 'मैं' हाथ भी नहीं हूँ और पैर भी नहीं हूँ, ये तेरे कर्म का उदय आया है और मेरा हाथ लगा। तेरा दर्द हाथ मिटने का था और मेरा हाथ लगा। क्योंकि यश मुझे इतना ही मिलना था कि दादा ने मिटाया यह। वह सब यश मिलता है! तब मुझे कहते हैं कि, 'आप करते हैं वह?' मैंने कहा कि, 'यह सारा यशनाम कर्म ही है।' वह मैंने बताया अभी। जो अभी तक लोग बताते नहीं थे 'यह मेरा यशनाम कर्म है', लोग वैसा नहीं कहते हैं। उस घड़ी लोगों को बहुत मज़ा आता है, अंदर जरा टेस्ट आ जाता है।
इतना आपको विश्वास है कि जैन शास्त्रकारों ने नामकर्म में यशनाम कर्म और अपयश नामकर्म लिखा है? कितने लोग ऐसे होते हैं कि काम करें तो भी अपयश मिलता है, ऐसा आपके सुनने में आया है? वह किस कारण से? अपयश नामकर्म होता है, उसे अपयश का फल मिलता रहता है। तो वह अच्छा काम करे तो भी अपयश का फल