SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चमत्कार १० चमत्कार फिर आत्मा ही नहीं है वह। अमूल्य चीज़ की वेल्यु नहीं होती! मुझे ही चूरण लेना पड़ता है वहाँ..... यहाँ एक भाई आते हैं। उनके फादर अठहत्तर वर्ष के थे। वे हमारे गाँव के थे। मैं वहाँ पर उन्हें दर्शन देने जाता था, उनके घर पर। उन्होंने फादर से कहा कि, 'आज दादा दर्शन देने आनेवाले हैं।' अठहत्तर वर्ष के मनुष्य को किस तरह यहाँ लाया जाए? पर उन्होंने क्या किया? घर में से बाहर निकलकर और रोड पर बैठ गए। फिर मैं वहाँ गया तब मैंने पछा कि, 'ऐसे इस रोड पर बैठो, अच्छा दिखता है यह सब? क्या फायदा है इसमें? वह कहो।' तब उन्होंने कहा, यहाँ नीचे दो मिनट पहले दर्शन होंगे न! घर में तो आप आओ उसके बाद दर्शन होंगे न! पर मैंने कहा, नीचे धूल....? तब बोले, 'भले ही धल है, अनंत जन्म धूल में ही गए हैं न हमारे! अब इस एक जन्म में आप मिले हैं तो हल ले आने दीजिए न!' तब मैंने कहा, 'ठीक है फिर!' मैं हँसा। तो वे पैरों से लिपट गए, दर्शन करने के लिए। मैंने ऊपर से ऐसा किया, धन्य है, ऐसा कहने के लिए पीठ थपथपाई। तो बारह वर्ष से उनकी कमर में जबरदस्त दर्द था, वह दूसरे ही दिन 'स्टोप'! इसलिए फिर उन्होंने क्या किया? पूरे गाँव में कह आए कि, 'दादा भगवान ने, जो मेरा बारह वर्ष से दर्द नहीं मिट रहा था, इतने-इतने इलाज करवाए, पर एक थपकी मारते ही दु:ख खतम हो गया।' तब गाँव के लोगों में दस-बीस लोग थे न, जो दु:ख से परेशान हो गए थे, वे सभी मेरे यहाँ पधारे! मुझे कहते हैं, 'आपने इन्हें कुछ ऐसा किया तो हमें भी कुछ कर दीजिए।' फिर मैंने उन सबको समझाया कि मुझे संडास नहीं उतरता, तब चूरण लेना पड़ता है। कभी कब्ज हो गया हो तो मुझे चरण लेना पड़ता है तो आप समझ जाओ न! मुझसे कुछ हो सके ऐसा नहीं है, यह सब! वह तो 'हवा चली और खपरैल खिसका और उसे देखकर कुत्ता भौंका, कोई कहे मैंने देखा चोर, और वहाँ मच गया शोर चारों ओर!' उसका नाम संसार। यह साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स है, यह चमत्कार नहीं है। वह मुझे तुरन्त पता चल गया। इसलिए मैंने कह दिया कि चूरण खाता हूँ तब मुझे संडास होता है। मुझे हआ कि अब कुछ ढूंढ निकालो, नहीं तो ये तो रोज़ बला खड़ी होगी। व्यापार कौन-सा था और कौनसा व्यापार खड़ा हो जाएगा! प्रश्नकर्ता : इस बात में फिर आत्मा विस्मृत हो जाता है न? दादाश्री : हाँ, आत्मा भूल जाते हैं और ये दूसरे लोग तो अपने सबको तो घुसने ही नहीं देंगे न ! सारे वे लोग ही आकर बैठ जाएंगे और ये मिलमालिक मुझे यहाँ से उठाकर ले जाएँ। ये पैसेवाले लोग झंझट करें, चाहे सो करें। मेरे आसपास के लोगों को चाहे जैसा भी करके यहाँ से उठा लें मुझे। एक व्यक्ति मुझे कह रहा था, 'दादा, आपका हरण करके ले जाएंगे।' मैंने कहा, 'हाँ, जगत् है यह तो!' हम जादूगर नहीं हैं इसलिए अभी अपने यहाँ ऐसे रोज़ के कितने ही चमत्कार होते हैं। पर सभी से मैं कहता हूँ कि दादा चमत्कार नहीं करते हैं। दादा जादूगर नहीं हैं। यह तो हमारा यशनाम कर्म है। इतना सारा यश है कि हाथ लगाएँ और आपका काम हो जाता है। अपने वहाँ एक ज्ञान लिए हुए महात्मा है। उनकी सास टाटा केन्सर होस्पिटल में थीं। तो उनकी सास को होस्पिटलवालों ने छुट्टी दे दी कि अब दो-तीन दिन में यह केस फेल होनेवाला है, इसलिए दो-तीन दिनों में आप घर पर ले जाओ। तब उस व्यक्ति के मन में ऐसा हुआ कि, 'दादा यहाँ पर मुंबई में ही हैं, तो मेरी सास को दर्शन करवा दूं। फिर यहाँ से ले जाऊँगा।' इसलिए मुझे आकर वहाँ पर कहने लगे कि, 'मेरी सास है न, उन्हें यदि दर्शन दे सकें तो बहुत अच्छी बात है।' मैंने कहा, 'चलो, मैं आता हूँ।' मैं वहाँ टाटा होस्पिटल में गया। उसने कहा, 'दादा भगवान आए हैं।' तब वह स्त्री तो बैठ गई। और किसीके मन में आशा भी नहीं थी, वे चार वर्ष तक जीवित रहीं वापिस। उन डॉक्टरों ने भी नोट किया कि ये दादा भगवान कोई आए और न जाने यह क्या किया!
SR No.009581
Book TitleChamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size228 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy