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चमत्कार
चमत्कार
नौकरी मिल जाएगी, तो मुझे नौकरी मिल गई!' यह सब कुदरत करती
तो मेरा कुछ हल ला दीजिए न।' तो मैं विधि करूँ उसके बाद वे छूट जाते हैं। इसलिए क्या वह मैंने किया? नहीं। मैं निमित्त था इसमें। ये यशनाम कर्म था मेरा!
तो मुझे बहुत सारे लोग कहने आते हैं कि 'दादा, आपने ही यह सब किया है। यह चमत्कार आपने ही किए हैं।' तब मैं कहता हूँ. 'भाई. मैं तो चमत्कारी नहीं हूँ। मैं कोई जादूगर नहीं हूँ और ऐसा कुछ मैं कर सकूँ वैसा नहीं हूँ।' तब कहते हैं, 'यह किया किसने?' यह तो ऐसा है न, दादा खुद का यशनाम कर्म लेकर आए हैं, यानी दादा का यशगान होता है और वह यशनाम कर्म आपका भला करता है। आपका निमित्त होता है उसमें, इसमें मेरा क्या? मैं कर्ता नहीं हूँ न इसमें? इसलिए मैं कहाँ ऐसा माल खा जाऊँ? ये लोग तो बिना काम के यश देने के लिए आते हैं और वे यश खानेवाले सभी यश खाते रहते हैं। लोग तो यश के भूखे होते हैं, वे खाया करते हैं। ये संतपुरुष भी खा जाते हैं, पर वह उन्हें पचता नहीं है बेचारों को, उल्टे अधिक भटकते हैं!
हर किसी के जो यशनाम कर्म होते हैं न, इसलिए उन्हें यश मिलता है। जो थोड़ा भी संत हुआ हो, उन्हें थोड़ा यशनाम कर्म होता है, और हमारा यशनाम कर्म बड़ा! मुझे तो संसारी दशा में भी यश मिलता था। यों ही हाथ लगाऊँ न तो भी उसके पास रुपयों का ढेर हो जाता था। पर सिर्फ मेरे घर पर ही रुपया नहीं आता था! और मुझे भी उस रुपये की ज़रूरत भी नहीं थी। जरूरत थी तब आए नहीं। अब ज़रूरत नहीं है, तब आने को तैयार हैं। तब मैंने कहा, 'जाओ, हीराबा के वहाँ, हमें अब क्या ज़रूरत है?'
इसलिए यह मैंने नहीं किया है। यह तो हमारा यशनाम कर्म जो है, तो यह नामकर्म ही आपको सारा फल देता है। और उसे लोग चमत्कार मानें, वैसा सिखाया गया ! चमत्कार तो हो ही नहीं सकते। मैं एक तरफ ऐसा भी कहता हूँ कि वर्ल्ड में किसीको संडास जाने की शक्ति नहीं है, तो चमत्कार किस तरह करेगा?
एक आदमी ने करोड़ रुपयों का मेरे साथ सौदा किया। कहता है, 'मेरी करोड़ रुपये की जायदाद सारी फँस गई है और मेरे पास आज मेन्टेनन्स (गुजारा) करने के भी पैसे नहीं हैं।' इसलिए सबने कहा, इसकी कुछ विधि कर दीजिए न, बेचारे की कुछ जायदाद बिके। उसे जायदाद तीन-तीन वर्षों से बेचनी थी, वह बिक नहीं रही थी। तो विधि कर दी, फिर एक महीने के अंदर सत्तर लाख में बिक गई। मैंने कहा, 'उस फेक्टरी में सत्यनारायण की कथा करवाओ और दूसरी फेक्टरी में जैनों की पूजा करवाओ।' वह फिर मुझे कहता है, 'दादाजी, तीस लाख की बाक़ी है, कुछ करो न!' में समझ गया कि इस आदमी के साथ सौदा भूल से हो गया है। यह आदमी भगवान का उपकार माने तो बहुत हो गया। मुझे तेरे पास से कुछ लेना नहीं है। तू भगवान का उपकार माने कि ओहो, भगवान के प्रताप से मैं छूट गया, उतना करे तो भी अच्छा।
और यदि मैं कर्ता होऊँ तो दलाली नहीं रखंगा? ऐसा नहीं कहता कि इतने प्रतिशत रख जाना, यदि सफल हो जाए तो? इसलिए हमने बंद कर दिया वह व्यापार । काम करना और नहीं करना दोनों बंद कर दिया न!
प्रश्नकर्ता : आत्मा की बात तो जारी ही है न!
दादाश्री : वह आत्मा की बात तो, इसमें कुछ ले नहीं सकते। इसका बदला ही नहीं होता और इसका बदला देने का रहता हो तो यह बात फलेगी ही नहीं।
प्रश्नकर्ता : इस ज्ञान में तो लेने की बात ही नहीं है। देने की ही बात है न इसमें तो?
दादाश्री : हाँ। बस। क्योंकि वह तो बदले में आप क्या दोगे? पुद्गल दोगे? दूसरा क्या दोगे? और इसकी कीमत यदि पुद्गल हो तो
कई लोग फिर आकर कहते हैं, 'दादाजी, मैं ऐसे फँस गया हूँ।