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चमत्कार
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चमत्कार
यह चमत्कार का ऐसा भूत लोगों में पैठ गया हो, तो वे लोग इसमें से बाहर निकलें बाहर!
प्रश्नकर्ता : इन्हें जो अनुभव हुआ वह क्या है?
दादाश्री : मैंने कहा था न कि आपकी तैयारी चाहिए?! यहाँ सभी तैयारियाँ रखी हुई हैं। जितनी आपकी हार्ट की प्योरिटी, जितना आप बटन दबाओ, उतना तैयार ! यानी आपके बटन दबाने की देर है। बाक़ी, जगत् तो इसे चमत्कार ही कहेगा। हम यही तो कहना चाहते हैं कि इसे यदि चमत्कार ठहराएँगे तो जगत् को तो ऐसा चाहिए ही है। अपने माध्यम से. अपने हस्ताक्षर माँगते हैं कि चमत्कार होता है या नहीं वह ! जगत् अपने हस्ताक्षर माँगता है कि चमत्कार सही बात है या गलत? चमत्कार गलत बात है।
प्रश्नकर्ता : परन्तु ऐसा होता है, दादा।
दादाश्री : ऐसा सब बहुत जगह पर होता है। इसलिए उन्हें समझा देता हूँ कि 'हाँ, आया था।' क्योंकि सूक्ष्म शरीर घूमता रहता है, वह मैं देख सकता हूँ। अमरीका में भी जाता है। मैं अमरीका में था तब यहाँ पर अहमदाबाद के संघपति रमेशभाई, उन्हें बड़े सवेरे आकर विधि करवा गया था, उनका वहाँ पर पत्र आया था कि 'आप यहाँ आकर विधि करवा गए, मेरा तो कल्याण हो गया!' ऐसे तो कितने लोगों के अपने यहाँ पत्र आते हैं। ऐसा तो बार-बार हुआ करता है। पर हम लोग यदि चमत्कार कहें तो इससे उल्टा अर्थ अधिक फैलेगा। तो वे कमजोर लोग इसका अधिक लाभ उठाएंगे। इसलिए हम लोग ही चमत्कार को उड़ा दें न यहाँ से ही! जिसे बदले में कुछ चाहिए वह बोलता है, कबूल करता है कि हाँ भाई, चमत्कार है मेरा (!) हमें बदले में कुछ चाहिए नहीं। इसलिए इसे उड़ा दो। यह चमत्कार नहीं है।
दो सौ-दो सौ चमत्कार होते हैं। पहले के संतों ने दस चमत्कार किए होंगे, उसका वे लोग बहुत बड़ी पुस्तक रचकर बड़ा दिखावा करते हैं। वैसे तो यहाँ हररोज दो सौ-दो सौ चमत्कार होते हैं निरे!
कोई कहता है, 'घर पर मेरे भाई को बुखार बहुत रहता है, आज पंद्रह-बीस दिनों से उतरता नहीं है।' मेरी एक माला उसे देता हूँ न, तब दूसरे दिन पत्र आता है कि बुखार बिलकुल चला गया है। माला पहनते ही चला गया है। ऐसे बहुत सारे 'केस' होते हैं। यह तो हमारा यशनाम कर्म है। और वे संत भी जो चमत्कार करते हैं न, वह भी यशनाम कर्म होता है।
पहले तो अपने यहाँ फूलों के हार पहनाते थे। तब पाँच-पच्चीस हार होते थे, वह कोई व्यक्ति यहाँ से लेकर जाते और फिर अस्पताल में जाकर वहाँ मरीजों को पहनाते थे और उन्हें कहते, 'दादा भगवान के असीम जय जयकार हो' बोलो। तो सुबह डॉक्टर कहते कि 'इन मरीजों में इतना फर्क किस तरह आया?'
प्रश्नकर्ता : फिर भी वह चमत्कार जैसा नहीं है, ऐसा आप कहते
दादाश्री : हाँ, चमत्कार किया वैसा हम नहीं कहते और यह जो सुना न, उससे तो कई बड़े हो चुके हैं, जगत् आफरीन हो जाए वैसे हुए हैं, पर उन्हें यदि चमत्कार कहोगे तो दूसरों के चमत्कार चलते रहेंगे। इसलिए मैं इन चमत्कारों को तोड़ने के लिए आया है। असल में, हक़ीक़त में, वास्तविकता में वह चमत्कार है ही नहीं।
यह हमारा फोटो भी बहुत काम करता है। इसलिए लोगों को हम आखिर में फोटो देते हैं। क्योंकि इतना यदि काम नहीं करे तो ये 'बर्तन' चमकाए जा सकें वैसे नहीं हैं। बर्तन इतने अधिक गंदे हो गए हैं कि चमकाए जा सकें वैसा नहीं है। इसलिए यह कुदरत उसके पीछे काम कर रही है। सब हो रहा है, चमत्कार नहीं है यह ! ऐसे-ऐसे तो रोज़ कितने ही पत्र आते हैं कि 'दादा, उस दिन आपने कहा था कि जा, तुझे
यह तो हमारा यशनाम कर्म
अब वह चमत्कार कहलाता हो तो वैसे अपने यहाँ रोज़ सौ-सौ,