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चमत्कार
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चमत्कार
"अब तो क्या होनेवाला है यह मुझे मालूम नहीं है। अब 'दादा भगवान' जो करें, वह सच्चा", ऐसा करके बैठ गई। दूसरी तरफ बीस साल की जवान बेटी भी कहती है, 'मझे किसी तरह का भय नहीं, कुछ भी नहीं और दादा मेरे सामने हाज़िर हो गए। मुझे दादा का साक्षात्कार हुआ।'
दादाश्री : यहाँ आकर मुझे कहती हैं, 'पूरी दुनिया में किसीको साक्षात्कार होने का होगा, तब होगा पर मुझे तो वहाँ साक्षात्कार हो गया।' खुद रूबरू देखे और वह बताने के लिए यहाँ पर आई थी। उसने क्या कहा था?
प्रश्नकर्ता : फिर उन्होंने कहा, 'दादा की दो आँखों में से लाइट मेरी आँखों में आई। दादा की आँख में सिर्फ तेज़ ही था! वैसा कितना टाइम गया वह मुझे मालूम नहीं पर पूरा जगत् विस्मृत। फिर भी मैं कहाँ हूँ, क्या हूँ, वह सब मुझे मालूम था। मैं बेहोश नहीं थी और थोड़ी देर बाद फिर लुटेरे आकर कहते हैं, ये चाबी नहीं लग रही है। दूसरी चाबी लाओ, निकालो।' तब उस बहन ने आँख खोली। तो कहती हैं. 'जो लाइट दादा की आँखों में से मेरी आँखों में आ रही थी, वही लाइट मैंने उसकी आँखों में जाते हुए देखी। वे लोग घबरा गए। उन लोगों ने नकाब बाँधे थे, सिर्फ दो आँखें ही दिख रही थीं' और मुझे कहा, 'पता नहीं, एकदम उनमें चेन्ज हो गया। उस बहन ने कहा, 'देख भाई, यह तो टाइम लॉक (ताला) है। मेरे पास दूसरा कुछ है नहीं। मैं तो कुछ जानती नहीं हूँ। जो कुछ है वह यही है।' 'मैं जो कुछ कहती गई, वह सारा एक्सेप्ट करते गए। उस समय पोस्ट ऑफिस में दस लाख पाउन्ड पड़े थे। दस लाख पाउन्ड की रकम थी कुल मिलाकर, पोस्ट में तो सब लोग रखते हैं न! और आठ-दस हज़ार पाउन्ड तो ड्रॉअर खोलते न तो बाहर ही पड़े थे।' पर उस बहन ने कहा, 'मैंने कहा कि कुछ भी नहीं है।' इसलिए दूसरे ड्रॉवर में सिर्फ सवा सौ पाउन्ड थे, वे लेकर चले गए। वे समाचार आठ-दस दिन तक लंडन के अखबारों में हेडलाइन्स में आए थे।'
दादाश्री : तो सभी पेपरवाले यह छापते रहे!
___ 'दादा भगवान' तो रहें निर्लेप ये जो 'दादा भगवान' का नाम लेते हैं न, उनके हरएक कार्य सफल हुए हैं। इनमें यश का मैं भागीदार हैं। यह मेरा यशनाम कर्म है। ऐसा यशनाम कर्म किसीका ही होता है। बाक़ी संसारी यशनाम कर्म होते हैं, तो यह फलाना विवाह करना था, वह हो गया। यानी वह एक प्रकार
का यशनाम कर्म है। ऐसा मुझे इस बाबत का यशनाम कर्म है। इसलिए 'दादा भगवान''मुझे' यह मेरा यशनाम कर्म पूरा करवा रहे हैं। तो एक, दो नहीं इससे भी बड़ी-बड़ी बाते लाए हैं लोग। बहुत उदाहरण देखे हैं। उसे ये लोग क्या कहते हैं, 'आप चमत्कार करते हैं?' मैंने कहा, 'नहीं, मनुष्य चमत्कार कर ही नहीं सकता। मनुष्य को बुद्धि से ऐसा लगता है कि ये चमत्कार कर रहे हैं। पर यदि शास्त्र समझता हो तो 'यशनाम', वह एक नामकर्म है।
इसलिए यह 'दादा भगवान' का काम है और यशफल मुझे मिलता रहता है। 'उन्हें' यश नहीं चाहिए और यशनाम कर्म तो 'मेरा' है न !
प्रश्नकर्ता : ‘दादा भगवान' को तो कैसा यश? वे तो निर्लेप हैं न?!
दादाश्री : 'उन्हें होता ही नहीं। 'उन्हें' वे आठों कर्म होते ही नहीं हैं। आठ कर्म सारे मेरे हैं। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय, अंतराय, नाम, गौत्र, वेदनीय, आयुष्य वे आठों कर्म 'मेरे' हैं।
प्रश्नकर्ता : 'मेरे' मतलब किसके? दादाश्री : इन 'ज्ञानी पुरुष' के ही न!
अक्रम विज्ञान वह सिद्धि का फल प्रश्नकर्ता : बहुत बार मुझे ऐसा होता है कि 'दादा' यह ज्ञान देते हैं तब एक ही घंटे में खुद के स्व-पद में रख देते हैं, उसे क्या कहेंगे?