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________________ चमत्कार भी उनके फोलोअर्स पुस्तक में क्या लिखते हैं? 'हमारे गुरु ने ऐसा किया और वैसा किया!' सभी झूठे चमत्कार लिखते हैं। जिसे छोटे बच्चे भी ऐसा कहें कि ये पागलपन किया है, ऐसे चमत्कार लिखते हैं! उसे इस ज़माने के बच्चे तो मानेंगे ही नहीं न! वे पहले के जमाने के लोग चमत्कार में मानते थे। प्रश्नकर्ता: पर दादा, हिन्दुस्तान में सारे ही लोग चमत्कार में मानते हैं न! फिर कोई भी व्यक्ति हो, बेरिस्टर, डॉक्टर, एन्जिनियर सभी मानते हैं। दादाश्री : वे लालची हैं, इसलिए ही मानते हैं। नहीं तो चमत्कार जैसी वस्तु ही इस दुनिया में होती नहीं है। और जो चमत्कार है, वह गोपित विज्ञान है। बाक़ी, चमत्कार जैसी वस्तु ही नहीं है। प्रश्नकर्ता: पर ये जो चमत्कार करते हैं न, उसे तो लोग 'ये ज्ञानी पुरुष हैं' ऐसा कहते हैं। दादाश्री : वे तो ऐसा ही कहेंगे न, पर वैसा न कहे तो उनके चमत्कार चलेंगे नहीं। उन्हें पूछा जाए, उनका निवेदन लिया जाए कि ये चमत्कार किसलिए करते हो? किस हेतु के लिए करते हो? आप निवेदन कीजिए, कहें, तो मजा आए ! प्रश्नकर्ता: तब वे लोग ऐसा कहते हैं कि, 'श्रद्धा उत्पन्न करने के लिए।' दादाश्री : श्रद्धा यदि उस पर होती ही नहीं हो, तो ऐसा गलत करके फिर श्रद्धा उत्पन्न करवाना गुनाह है। वह यदि इस तरह श्रद्धा उत्पन्न करवाने के लिए जो व्यक्ति करता है, उसे पकड़कर दंड देना चाहिए। मैं पच्चीस वर्ष का था, उस समय एक संत आचार्य के पास गया था। वे मुझे कहते हैं, 'मुझ पर श्रद्धा रखो।' मैंने कहा, 'पर मुझे श्रद्धा आती ही नहीं।' तब बोले, 'पर आप श्रद्धा रखते रहो।' तब मैंने कहा, ४० चमत्कार 'मैं आपको उदाहरण दूँ। यह टिकिट है, वह हम पानी चुपड़कर चिपकाएँ, पर गिर जाती है। तो हम नहीं समझ जाएँ कि कुछ कमी है उन दोनों के बीच? ! जिस पर हमें टिकिट चिपकानी है और वह टिकिट, उन दोनों के बीच में कौन-सी वस्तु की कमी है ऐसा अपने को पता चलता है या नहीं चलता? किस वस्तु की कमी है? प्रश्नकर्ता: गोंद की कमी है। दादाश्री : हाँ। इसलिए मैंने कहा, 'ऐसा कोई गोंद लगाओ कि मेरी टिकिट चिपक जाए।' तो भी वे बोले, 'वैसा नहीं, आपको मुझ पर श्रद्धा रखनी पड़ेगी।' मैंने कहा, 'नहीं, वैसी श्रद्धा मैं नहीं रखता हूँ। श्रद्ध बैठती ही नहीं मुझे ! यदि आप वैसे लुभावने होते तो लुभावने के आधार पर मैं थोड़ी श्रद्धा रखता। वैसे लुभावने भी नहीं हैं। यदि आप वैसी वाणी बोलते तो आपकी वाणी सुनकर मैं खुश हो जाता, तो मेरी श्रद्धा बैठती । या फिर आपका वर्तन देखकर मेरी श्रद्धा बैठती। पर वैसा कुछ दिखता नहीं है मुझे आपमें । फिर भी मैं दर्शन करने आऊँगा ऐसे ही, आप त्यागी पुरुष हैं इसलिए। बाक़ी, श्रद्धा तो मेरी बैठती ही नहीं ! ' अब वहाँ चमत्कारी बात करने जाएँ तो मैं तो अधिक डाँ कि ऐसी जादूगरी किसलिए करते हो? पर हिन्दुस्तान के लोग लालची हैं इसलिए चमत्कार देख आएँ, वहाँ श्रद्धा बैठा देते हैं। उस चमत्कार करनेवाले को हम लोग कहें, 'हिन्दुस्तान के लोगों को अनाज - पानी की कमी है, आप अनाज- पानी इकट्ठा करो। वह चमत्कार करो, आपकी जो शक्ति है, वह इसमें खर्च करो।' पर वैसा कुछ नहीं करते! यह तो मूर्ख बनाया है लोगों को ! प्रश्नकर्ता: अभी तक वैसे मूर्ख बनते ही आए हैं। दादाश्री : पर ऐसा जीवन कब तक जीना है? किसलिए लालच होना चाहिए? मनुष्य को लालच किसलिए होना चाहिए? और वह भला देनेवाला कौन? उसे संडास जाने की शक्ति ही नहीं, तो वह क्या देनेवाला है ?
SR No.009581
Book TitleChamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size228 KB
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