SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चमत्कार चमत्कार धोखा खाया विचारकों ने भी.... और मैंने चमत्कार किया वैसा कौन बोलता है? कि जिसे कुछ लाभ उठाना है, वह बोलता है। और किसके पास से लाभ उठाना है? जो लोग उसके पास से कुछ माँगते हैं, वहाँ लाभ उठाते हो? जो लोग खुद के दु:ख दूर करने के लिए सुख मांगने आए हैं, उनसे लाभ उठाते हो?! जो सुख के भिखारी हैं, उनके पास से आप सुख लेते हो? किस तरह के हो आप? उनके पास से एक पाई भी कैसे ली जाए? यह तो वह आपके पास भिखारी हैं और आप उसके पास भिखारी हो! आपका भी भिखारीपन छूटता नहीं है! फिर किस तरह ज्ञान भीतर प्रकट हो? ज्ञान प्रकट ही नहीं होगा न! ज्ञान तो, किसीका किंचित् मात्र सुख छीन लेने की जिसे इच्छा नहीं है, वहाँ ज्ञान प्रकट होता है। किसी भी प्रकार की भीख नहीं, मान-तान की भीख नहीं, अपमान करे तो भी हर्ज नहीं, मान करे तो भी हर्ज नहीं, विषयों संबंधी भीख नहीं, वहाँ ज्ञान प्रकट होता है। तब ये लोग कहते हैं, 'हम ज्ञान लेकर फिरते हैं।' पर चारों तरफ से तो भीख में है तू, किस तरह ज्ञान हो सकता है वहाँ पर?! और वह तो इस भेड़चाल में चलेगा। यहाँ पर बुद्धिशालियों के पास नहीं चाहिए! पर अपने यहाँ बुद्धिशाली कैसे हैं? कच्चे हैं, आपके जैसे नहीं हैं। 'होगा, हमें क्या?' ऐसा कहते हैं इसलिए चमत्कार करनेवाले लोगों को तो बुद्धिशालियों का रक्षण मिल गया। पर बुद्धिशाली उनके रक्षण तोड़ दें तो अभी सीधे हो जाएंगे। पर अपने हिन्दुस्तान के लोग, 'हमें क्या?' ऐसा ही करते हैं! मुझे तो 'हमें क्या' वह नहीं पुसाता। साफ-साफ कह दो। भले ही दो जन्म अधिक हों! पर वे अपने बुद्धिशाली भी चमत्कार में मानने लग गए हैं। अरेरे, क्यों लोग ऐसे हो गए! सारे विचारशील मनुष्यों में इतना घुस गया है कि यह चमत्कार जैसी कोई वस्तु है। यह जो भेड़चाल उसे माने, उसका हमें हर्ज नहीं है, पर विचारशील मनुष्य भी मानें तो समझो कि अपने हिन्दुस्तान की जो बुद्धिशक्ति है, वह 'फ्रेक्चर' होने लगी है। प्रश्नकर्ता : यानी लोगों की भाषा में वह चमत्कार कहलाता है? दादाश्री : इस भेडचाल में, बदिशालियों की भाषा में नहीं। और बुद्धिशाली मेरे पास आते थे, वे कहते थे कि, 'यह चमत्कार!' तब मैंने कहा, 'आपके जैसे बुद्धिशाली ऐसा मानते हैं?' तब वे बोले, 'हमें तो बहुत ऐसा होता है, पर हमें दिमाग़ पर बार-बार टकोरे लगने से फिर उसी रूप हो जाता है।' फिर मैंने सभी प्रकार से समझाया, तब उन्हें एक्सेप्ट हो गया, समझ में आ गया। फिर कहने लगे, 'अब नहीं मानेंगे।' और समझ गए कि चमत्कार नहीं होते। मनुष्य चमत्कार कर ही नहीं सकता। चमत्कार चीज़ बुद्धिशालियों को नहीं माननी चाहिए और अपने ज्ञान लिए हुए महात्माओं को तो जानना ही नहीं चाहिए। कोई चमत्कारी हों तब कहो कि, 'तू चमत्कारी है तो मुझे क्या है, उससे?' इसलिए इसमें बुद्धिशाली तो उलझते नहीं हैं। दूसरे सब तो समझो कि उलझनेवाले ही हैं। वे तो चार भेड़ आगे चलें न, उन्हें देखे न, उनके पैर देखकर ही चलनेवाले हैं। मुँह नहीं देखेंगे। उनके पैर ही किस तरफ मुड़ते हैं, उस तरफ चलते जाते हैं। लाइन भी नहीं बनानी पड़ती! सब बैठ जाएँ, तब वह भी बैठ जाता है। सब हरे कहें, तब वह भी हरे कहता है। कोई पूछे, 'क्या समझें?' तब वह कहता है, 'समझ में आएगा, किसी दिन!' चमत्कार बुद्धिजन्य, नहीं है ज्ञान में प्रश्नकर्ता : पर वे लोग तो दुनिया में यही कहते हैं कि यह मिरेकल हुआ। जो घटना हमेशा नहीं होती वह घटना हो, उसे मिरेकल कहते हैं, चमत्कार कहते हैं। दादाश्री : वे फ़ॉरेनवाले कहते हैं, हम लोगों से ऐसा कहा जाता होगा? प्रश्नकर्ता : यह तो आपके पास आएँ, वे समझते हैं। बाक़ी तो
SR No.009581
Book TitleChamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size228 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy