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चमत्कार
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चमत्कार
रही है!' विज्ञान मना करता है। यह मेरी बात समझ में आती है क्या? आपको क्या लगता है?
प्रश्नकर्ता : समझ में आता है।
दादाश्री : क्योंकि मनुष्य जाति को ऐसी बाते बहुत पसंद है। यह तो मैं भी ऐसा बोलूँ कि मैं आपको सब ऐसा कर दूंगा और ये लोग भी कहते हैं, 'दादा, आप ही यह करते हैं।' अरे भाई, मेरी करने की शक्ति नहीं है। यह तो सारा मेरा यशनाम कर्म है। इसलिए वह आपका काम कर रहा है। हमसे एक भी शब्द उल्टा नहीं बोला जा सकता और इन्हें क्या? अहंकारी तो चाहे जैसा बोलें। फिर भी हमें उनका उल्टा-सुल्टा नहीं बोलना है। क्योंकि उनके भक्तों के लिए यह बात बहुत बड़ा विटामिन है और उनके भक्तों को वहाँ एकाग्रता रहती है न, चित्त चिपका हुआ रहता है न?| इसलिए हम लोगों को दूसरा कुछ नहीं बोलना चाहिए। हम उनके भक्तों के चित्त उखाड़ने के लिए यह बात नहीं करते हैं। यह तो आपको समझाने के लिए है कि विज्ञान क्या है यह ! वीर भगवान ने आयुष्य तीन मिनट भी नहीं बढ़ाया। इसलिए ऐसा कुछ होता नहीं है।
प्रश्नकर्ता : आयुष्य का मनुष्य के श्वास के साथ संबंध है? दादाश्री : हाँ, संबंध है, ठीक है वह।
रौब मारते हैं।
ऐसा है, वह तो दुनिया में सभी तरफ श्वासोच्छश्वास कम करें, उससे आयुष्य बढ़ता है, ऐसा तो नियम ही है। उसमें उससे ऐसा नहीं बोला जा सकता कि हम आयुष्य बढ़ाते हैं। वैसा बोलना वह बड़ा गुनाह है। महावीर भगवान भी नहीं बोल सकते, कोई भी नहीं बोल सकता! यह संडास जाने की शक्ति नहीं और आयुष्य क्या बढ़ानेवाले थे वे? वर्ल्ड में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जन्मा है कि जिसे संडास जाने की शक्ति हो, उसकी गारन्टी लिख देता हूँ। और, कुछ भी 'मैं करता हूँ' ऐसा पुस्तकों में लिखते हैं, वे सब अहंकारी हैं। यह मैंने किया और मैंने ऐसा किया
और मैंने फलाना किया' कहते हैं न, वे सभी अहंकारी हैं। हमारी पुस्तक में 'मैं करता हूँ, तू करता है और वे करते हैं वह होता ही नहीं है किसी जगह पर। दूसरे सभी में यही होता है न 'मैं करता हँ', वह जहाँ पर हो, वहाँ पर वे पुस्तकें अहंकारियों को सौंप देनी चाहिए। यदि मोक्ष में जाना हो तो वह पुस्तक अपने पास नहीं रखनी चाहिए। 'मैं ऐसा करूँ
और मैं वैसा करूँ, मैं तार दूं और मैं डूबो दूं।' वे सब अहंकारी बातें हैं। बाक़ी किसीमें करने की शक्ति ही नहीं है न! यह तो ऐसा है न, भोलीभाली प्रजा है, इसलिए चला फिर!
इसलिए ये संत तो कहेंगे, 'मरना हमारे स्वाधीन है, हमें जब मरना हो तब हम मरेंगे।' अरे, एक मिनट किसीकी ताकत नहीं है ऐसी! ये तो मूर्ख लोगों को फँसा देते हैं! तो मुझे ऐसा ही लगेगा न कि कब तक ऐसे मूर्ख रहोगे आप?! भगवान महावीर कहते हैं, 'हे देवों, ऐसा हुआ नहीं है, होगा नहीं और होनेवाला नहीं है।' और ये लोग तो देखो, लोगों को श्रद्धा बैठे इसलिए कहते हैं, 'मैंने इतना आयुष्य बढ़ाया!' पर थोडे दिनों के बाद यह बैठी हुई श्रद्धा भी उठ जाती है। भीतर शंका-कुशंका नहीं होती, पढ़े हुए मनुष्य को? तो वह श्रद्धा सच्ची कहलाएगी?
पर टिकिट चिपकती ही नहीं वहाँ गुरु हाज़िर हों तो ही काम होता है, फिर काम नहीं लगते। फिर
प्रश्नकर्ता : उसमें ये योगी श्वास को रोककर, श्वास की गति अथवा श्वास का अनुपात कम करें तो उनके आयुष्य में फर्क पड़ता है?
दादाश्री : वह ठीक है। वह तो स्वाभाविक है। वह तो आयुष्य बढ़ाना,कहने का मतलब क्या है कि श्वासोच्छ्श्वास खर्च नहीं होने देता वह, श्वासोच्छ्श्वास पर आयुष्य आधारित है। पर वह उसके लिए नहीं कहता है, वह तो रौब मारता है। उसके लिए कहता हो तो अच्छी बात है। वह तो हरएक को होता है, इसमें नया क्या है वह? जितने श्वासोच्छ्श्वास कम खर्च होंगे, उतने वर्ष बढ़ते हैं। पर ये क्या कहते हैं? आयुष्य बढ़ाना मतलब वर्ष बढ़ाना- वैसा नहीं, पर ये तो श्वासोच्छ्श्वास बढ़ा दिए, ऐसा