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चमत्कार
चमत्कार
न, तो पूरा मुंबई वहाँ इकट्ठा हो जाए। क्यों रुपये नहीं गिरते? गिन्नियाँ गिरें तो कितना काम हो जाए! लोगों की दरिद्रता ही मिट जाए न दुसरे दिन से! एक-एक गिन्नी हिस्से में आई हो तो दूसरे दिन लोग बेचारे आम लाएँगे या नहीं लाएँगे? पर यह तो वही की वही राख किसी जगह पर गिरती है, तो किसी जगह पर कुमकुम के छींटे होते हैं!
इस वीतराग मार्ग में आत्मा मिले तो सच्ची बात है, नहीं तो बात सब बेकार है। और आत्मा मिलने की यदि भूमिका है तो सिर्फ यह मनुष्यगति ही एक भूमिका है। बाक़ी दूसरी सब जगहों पर आत्मा मिले वैसी भूमिका ही नहीं है। वहाँ तो भटक-भटककर मर जाना है। यानी भीतर ठंडक होनी चाहिए, शांति होनी चाहिए। हमें ऐसा विश्वास हो जाए कि अब मोक्ष होगा मेरा! आपको विश्वास हो गया है, मोक्ष होगा, वैसा?
प्रश्नकर्ता : एक सौ एक प्रतिशत हो गया है!
दादाश्री : हाँ, वैसा विश्वास हो जाना चाहिए। अपना तो यह मोक्षमार्ग है और वीतरागों का मार्ग है, चौबीस तीर्थंकरों का मार्ग है! ये तो दूषमकाल के लोग हैं, इसलिए कर्म से बेचारे फंसे हुए हैं। इसलिए मेरे साथ उनसे रहा नहीं जा सकता। नहीं तो खिसकते ही नहीं मेरे पास से। ऐसी ठंडक दें, फिर वहाँ से कौन खिसके? पर कर्मों से सब फँसे हुए हैं और निरी अपार 'फाइलें' हैं, फिर क्या करें वे!
कलश हिला... वह चमत्कार? प्रश्नकर्ता : कितनी ही जगहों पर लोग यात्रा पर हर वर्ष जाते हैं, अब वहाँ पर एक मंदिर का जो कलश है, सब कहते हैं, उसे हिलता हुआ देखते हैं - वह क्या है?
दादाश्री : उसमें बहुत गहरे उतरने जैसा नहीं है। जिसे दिखता है न, उनके लिए ठीक है। बाक़ी, आज का साइन्स यह स्वीकार नहीं करेगा। आज का साइन्स स्वीकार करेगा क्या?
प्रश्नकर्ता : नहीं।
दादाश्री : हो चुका तब! विज्ञान स्वीकार करे, उतनी बात सच माननी। दूसरा सब तो अंधश्रद्धा है। कितने ही देवी-देवता लोगों को श्रद्धा बैठाने के लिए चमत्कार करते हैं, तो वैसा होता है किसी समय। बाक़ी, सारा साइन्टिफिक होना चाहिए। ये 'साइन्स' जो-जो माने उतना ही मानने जैसा है। साइन्स से बाहर कुछ है ही नहीं। कितना तो नासमझी से अंधश्रद्धालु सारा जबरदस्ती घुसा देते हैं। जहाँ-तहाँ सब लोगों ने, अज्ञान प्रजा को श्रद्धा बैठाने के लिए सारे साधन खडे किए हैं। वे समझदार लोगों के लिए नहीं है। आपके लिए वह नहीं है। वह सब तो दूसरे लोगों के लिए है।
वह कलश हिले, उससे हमें क्या फायदा? उससे हमें आत्मा प्राप्त हो जाएगा? इसलिए यह तो जिसे भगवान पर श्रद्धा नहीं बैठती हो, उन्हें श्रद्धा बैठे उसके लिए वे हिलाते हैं, तो उन लोगों को श्रद्धा वहाँ बैठती है। पर उससे हमें क्या फायदा? यह दुनिया पूरी हिला दे, तो भी मैं कहूँ कि 'तू किसलिए सिरफोड़ी करता है, बेकार बिना काम के! बैठा रह न, सो जा न चुपचाप! इसमें हमें क्या फायदा?' अज्ञान हटे तो जानें कि फायदा हुआ। बाक़ी, यह अलमारी यहाँ से ऐसे खिसकी तो हमें क्या फायदा? यानी हमें इतना कहना चाहिए कि मुझे क्या फायदा?
प्रश्नकर्ता : मुझे ऐसा लगा था कि वह जगह पवित्र हो गई!
दादाश्री : सारा पवित्र ही है न, जगत् तो! ये तो सारे विकल्प हैं। हमें तो अपना काम हुआ तो सच्चा। बाक़ी यह सारी पोल है। अनंत जन्मों से यही किया है न! अरे..., फलानी जगह पर देवता हिले, मूर्ति हिली। अरे, उसमें तुझे क्या फायदा हुआ?! लोग तो कहेंगे, ऐसा हो गया और वैसा हो गया। पर हमें अपना फायदा देखना चाहिए।
मुझे लोग कहते हैं, यह तिपाई कुदवाइए ऐसे! वह हो सकता है। उसका प्रयोग होता है। पर वह करने से क्या होगा? वह कूदे उससे क्या होगा? यहाँ पर फिर लोग समाएँगे नहीं, ये सीढ़ियाँ टूट जाएँगी, और आप