SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चमत्कार ३४ चमत्कार जो सच्चे ग्राहक हो, आपको धक्का देकर बाहर निकाल देंगे और दूसरे सब घुस जाएंगे, चमत्कार देखने घुस जाएँगे। अपने को वैसा क्या काम है पर? यह तो सच्चे ग्राहक की जगह है। सच्चा ग्राहक कि जिसे मोक्ष में जाना है, जिसे भगवान की पहचान करनी है. साक्षात्कार करना है, उनके लिए यह जगह है। यह अंतिम स्टेशन है! यहाँ ऐसा-वैसा नहीं होता। दूसरी सभी जगहों पर तो चमत्कार इसलिए करते हैं कि लोगों को श्रद्धा बैठे। बाक़ी, वह आप जैसो के लिए नहीं है! अरे, कई लोग तो किसी सोए हुए व्यक्ति का हाथ ऊँचा कर देते हैं! वह तो सो रहा है तो क्यों हाथ ऊँचा हुआ? हाथ ऊँचा हुआ मतलब क्या जाग गया? वह तो सो रहा है। ये सभी मशीनरी हैं! इसमें अपना कुछ काम नहीं होता है। किसीका दर्द कोई ले सकता है? प्रश्नकर्ता : एक संत ने एक आदमी का दर्द ले लिया था। जिससे फिर पूरा जीवन उन्होंने अपंग अवस्था में बिताया था। उसमें आपका क्या मानना है? दादाश्री : किसीका दर्द किसीसे लिया नहीं जा सकता, यह हमारा मानना है। और उनकी भूल होती हो तो उन्हें नुकसान करेगी न? वह कोई आपको नुकसान नहीं करेगी। यानी ऐसा किसीसे हो नहीं सकता। इसलिए यह वहम मन में से निकाल दो ऐसा सब! ___ अपने हिन्दुस्तान के संत हैं, वे सामनेवाले के शरीर में से रोग भी ले लेते हैं (!) ऐसा पुस्तकों में खुल्ले आम लिखा हुआ है। अरे, इस हिन्दुस्तान के बुद्धिशालियों, आपको यह समझ में ही नहीं आता कि उसे संडास जाने की शक्ति नहीं है, वह क्या लेनेवाला था फिर?! और वे तो निमित्त होते हैं। निमित्त मतलब क्या कि कर्म के उदय ऐसे हैं इसलिए इनके निमित्त से परिवर्तन हो जाता है। परन्तु यह 'हम रोग ले लेते हैं, ऐसा ले लेते हैं, आयुष्य बढ़ा देते हैं. ये सारी बातें हैं न, वे दिमाग़ में कीड़े पड़ें वैसी बातें करते हैं! प्रश्नकर्ता : जिन संतों के कहने से सामनेवाले के दर्द निकल जाते हैं वैसा होता है तो उन संतों का यशनाम कर्म होगा, ऐसा न? दादाश्री : वह सब हो सकता है। सामनेवाले का दर्द चला भी जाए, वैसा संत का निमित्त होता है। यानी कि यशनाम कर्म होता है। पर ये 'दर्द ले लेते हैं' वे जो कहते हैं न. वह गलत बात है। वे यदि ऐसा कहें तो हम पूछे कि, 'साहब, आपको इतने सारे रोग किसलिए हैं?' तब कहेगा, 'दूसरों का ले लिया इसलिए!' देखो प्रमाण अच्छा मिल गया न ! अब उन संत से मैं पूछू कि, 'अरे साहब, आपको संडास जाने की शक्ति है? हो तो मुझे कहिए।' आप दर्द किस तरह से लेनेवाले हो? बड़े दर्द लेनेवाले आए, संडास जाने की शक्ति नहीं है और! अरे, मेरे बारे में भी लोग ऐसा कहते थे न! तीन साल पहले इस पैर में फ्रेक्चर हुआ था। तब अहमदाबाद के बडे साहब आए थे, दर्शन करने। मुझे कहते हैं कि, 'दादा, यह आप किसका दर्द ले आए?' यह आप पढ़े-लिखे आदमी यदि ऐसा बोलोगे तो अनपढ़ की तो बिसात ही क्या बेचारे की! आप पढ़े-लिखे हो। आपके खुद के ऊपर आपको श्रद्धा है न और ऐसा आप मान लेते हो? इस दुनिया में किसीका किंचित् मात्र दर्द कोई थोड़ा भी ले नहीं सकता। हाँ, उसे सुख दे सकता है। उसका जो सुख है, उसे वह हेल्प करता है, पर दर्द नहीं ले सकता। यह तो मुझे मेरा कर्म भुगतना था। हर किसीको खुद अपने-अपने कर्म भोगने ही पड़ते हैं। इसलिए ये सारी बातें पैदा की गई हैं। यह तो लोगों को बेवकूफ बनाकर दम निकाल दिया है और वह फिर अपने हिन्दुस्तान के पढ़े-लिखे लोग भी मानते हैं! प्रतिकार करो न, कि 'लो, यह ऐसे करके दो।' पर वैसा पूछने की भी शक्ति नहीं है न! ऐसी पोल नहीं चलने देना चाहिए। नहीं बढ़ती आयु पलभर प्रश्नकर्ता : मैंने तो इतना तक सुना है न कि कहते हैं, हमारे जो आचार्य हैं, उन्होंने फलाने वकील का दस वर्ष का आयुष्य बढ़ा दिया। दादाश्री : अब ऐसा बोलते हैं उससे तो धर्म पर लोगों को जो
SR No.009581
Book TitleChamatkar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages37
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size228 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy