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चमत्कार
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माया- लोभ कम होने चाहिए और शांति बढ़नी चाहिए। इतना काम है न? वह अमृतवर्षा बरसे या न बरसे, उससे हमें क्या काम है? फिर भी देवता ऐसा सब करते हैं। इसलिए हम उन्हें गलत नहीं कह सकते। पर अपने क्रोध - मान-माया - लोभ कम नहीं हों, उसका हमें क्या करना है?
प्रश्नकर्ता: पर दादा, इसमें अपने ज्ञान लिए हुए महात्माओं को क्या समझना चाहिए?
दादाश्री : महात्मा किसलिए झंझट करें? वहाँ केसर बह रहा हो तो भी महात्मा किसलिए देखने जाएँ? ऐसे ढेर सारा बह रहा हो तो भी किसलिए जाएँ ? समय बिगड़ेगा बेकार में ऐसा समय बिगाड़कर क्या काम है फिर ? हम शुद्ध उपयोग में न रहें? जिसे शुद्ध उपयोग मिला है, वह शुद्ध उपयोग में नहीं रहेगा? वह तो, जिसे श्रद्धा नहीं बैठती हो, उसे श्रद्धा बैठाने के लिए देवी-देवता करते हैं या दूसरे लोग भी ऐसा करते हैं! कितनी बार देवी-देवता भी नहीं करते, उसमें मनुष्य चमत्कार कहकर कारस्तानी अधिक करता है और परेशानी बढ़ाता है बिना काम के! पर उनका इरादा गलत नहीं है, उसमें लोग दर्शन करने आते हैं न! पर अपने को इसकी जरूरत नहीं है, हमें क्या फायदा?
प्रश्नकर्ता: पास में मंदिर है न, तो सब लोग कहते हैं कि दर्शन करने जाओ। तो हम तो 'दादा भगवान' की साक्षी में दर्शन कर के आ गए।
दादाश्री : उसमें हर्ज नहीं है। दर्शन तो हम मूर्ति के कर सकते हैं, पर ऊपर से अमृत ऐसे झरा या वैसे झरा, उसमें हमें क्या लेना-देना? अपने क्रोध-मान-माया लोभ कम हुए या नहीं, शांति हुई या नहीं, वह देखने की ज़रूरत है।
इसलिए कृपालुदेव ने कहा न, कि धर्म उसे कहते हैं कि धर्म होकर परिणमित हो । ऐसे परिणमित नहीं होता हो तो उसे धर्म कहा ही कैसे जाए? अनंत जन्मों से आवन जावन की, दौड़भाग की, पर थे, वैसे के वैसे ही रहे। बाक़ी क्रोध-मान- माया लोभ कम हों, तो बात समझें
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चमत्कार
कि भीतर मतभेद कम हुए हैं, शांति बढ़ी, तो हम जानें कि कुछ इसमें भला हुआ, कर्म बंधन रुक जाएगा और ये तो निरे कर्म ही बंधते हैं, इसलिए ऐसा अमृत टपके, फिर भी हमें उसका क्या काम है?
कुमकुम के बदले केसर गिराओ न !
मतलब अमृत टपके या चाहे जो हो, पर हमने 'गलत है' वैसा नहीं कहा है। वह तो कितनी जगह पर केसर गिरता है। कितनी जगह पर कुमकुम गिरता है, चावल गिरते हैं। केसर तो नहीं गिरता पर कुमकुम तो गिरता ही है। केसर जरा महँगा है, इसलिए नहीं गिरता । हाँ, केसर के छींटे होते हैं पर केसर ऐसे ढेर सारा नहीं गिरता । और केसर गिरता हो तो भी क्या बुरा है? थोड़ा-थोड़ा लाकर घर पर कुछ बनाकर खाएँगे !
और मैं तो कह दूँ कि, 'हे देवी-देवताओं, आपको नमस्कार है। पर ये आप छींटे छिड़क रहे हो, उसकी मुझे ज़रूरत नहीं है। आपको चावल डालने हों, तो डालो और नहीं डालने हों, तो भी उसका मुझे कोई काम नहीं है। मुझे तो क्रोध-मान- माया-लोभ कम हों, शांति हो ऐसा कर दीजिए। ' हमें ऐसा कहने में हर्ज क्या है?
प्रश्नकर्ता:
नहीं, पर यह जिसे श्रद्धा नहीं हो, उसे भगवान में श्रद्धा बैठे उसके लिए ऐसा होता होगा न ? !
दादाश्री : यह तो अंधश्रद्धालु लोगों को श्रद्धा बैठाने के लिए है। और उसमें तो कितनी जगहों पर अरे.... रात को मंदिरों में घंट बजते हैं, इसलिए दूसरे दिन लोग सब दर्शन करने आते हैं, एक साथ ! और मैं तो कहूँ कि लाख बार तू घंट बजाए तो भी मेरे किस काम का ? मुझे तो भीतर ठंडक हो जाए ऐसा हो, तो आऊँ तेरे वहाँ दर्शन करने। नहीं तो मुझे क्या काम है उसका ? मुझे तो बहुत दर्द होता हो, तो भी मैं ध्यान नहीं दूँ। ऐसे ध्यान दिया जाता होगा? हम कोई बच्चे हैं कि ज़रा-सा प्रसाद दिया कि दौड़भाग करें? आपको समझ में आता है न?
बाक़ी, जगत् तो सारा ऐसा ही है, लालची है और यदि पेड़े गिरें