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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
प्रश्नकर्ता : विवाहित हों उन लोगों को ज्ञान देर से होता है न? और जो ब्रह्मचर्य का पालन करते हैं, उन लोगों को ज्ञान जल्दी आता है न?
दादाश्री: विवाहित हों और यदि ब्रह्मचर्य व्रत लें तो आत्मा का सुख कैसा है वह उसे पूर्ण रूप से समझ में आता है। वर्ना तब तक सुख विषय में से आता है या आत्मा में से आता है वह समझ में नहीं आता
और ब्रह्मचर्य व्रत हो तो उसे आत्मा का अपार सुख अंदर बरतता है। मन तंदुरुस्त रहता है और शरीर सारा तंदुरुस्त रहता है।
प्रश्नकर्ता : तो दोनों की ज्ञान की अवस्था समान होती है कि उसमें अंतर होता है? परिणीतों की और ब्रह्मचर्यवालों की?
दादाश्री : ऐसा है न, ब्रह्मचर्यवाला कभी भी गिरता नहीं। उसे कैसी भी मुश्किल आए तो भी वह गिरता नहीं। वह सेफसाइड (सलामती) कहलाती है।
ब्रह्मचर्य तो शरीर का राजा है। जिसे ब्रह्मचर्य हो, उसका दिमाग़ तो कितना सुंदर होता है! ब्रह्मचर्य तो सारे पुद्गल का सार है।
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य दादाश्री : वह पुद्गलसार हो तभी समयसार होता है। यह जो मैंने ज्ञान दिया है, वह तो अक्रम है इसलिए चल जाता है। दूसरी जगह तो नहीं चलता। क्रमिक में तो पुद्गलसार चाहिए ही, वर्ना कुछ भी याद नहीं रहता। वाणी बोलने के भी लाले पड़ जाएँ।
प्रश्नकर्ता : अर्थात् इन दोनों में कोई नैमित्तिक संबंध है क्या?
दादाश्री : है न! क्यों नहीं? मुख्य वस्तु है ब्रह्मचर्य तो! वह हो तो फिर आपकी धारणा के अनुसार कार्य होता है। धारणा के अनुसार व्रत -नियम सभी का पालन कर सकेंगे। आगे प्रगति कर सकेंगे, पुद्गलसार तो बहुत बड़ी चीज़ है। एक और पुद्गलसार हो तभी समय का सार निकाल सकते हैं।
किसी ने लोगों को ऐसा सच समझाया ही नहीं न! क्योंकि लोगों का स्वभाव ही पोल (ध्येय के खिलाफ मन का सुनकर उस कार्य को न करना) वाला है। पहले के ऋषि-मुनि सभी निर्मल थे, इसलिए वे सही समझाते थे।
विषय को जहर समझा ही नहीं है। जहर समझे तो उसे छुए ही नहीं न! इसलिए भगवान ने कहा कि ज्ञान का परिणाम विरति (रूक जाना)! जानने का फल क्या? रुक जाए। विषयों का जोखिम जाना नहीं इसलिए उसमें रुका ही नहीं है।
भय रखने जैसा हो तो यह विषय का भय रखने जैसा है। इस संसार में दूसरी कोई भय रखने जैसी जगह नहीं है। इसलिए विषय से सावधान रहें। यह साँप, बिच्छू, बाघ से सावधान नहीं रहते?
अनंत अवतार की कमाई करें, तब उच्च गौत्र, उच्च कुल में जन्म होता है किन्तु लक्ष्मी और विषय के पीछे अनंत अवतार की कमाई खो देते हैं।
मुझे कितने ही लोग पूछते हैं कि 'इस विषय में ऐसा क्या पड़ा है कि विषय सुख चखने के बाद हम मरणतुल्य हो जाते हैं, हमारा मन मर
प्रश्नकर्ता : यह सार असार नहीं होता न?
दादाश्री : नहीं, पर वह सार उड़ जाता है न, युझलेस (बेकार) हो जाता है। वह सार हो, उसकी तो बात ही अलग होती है न! महावीर भगवान को बयालीस साल तक ब्रह्मचर्य सार था। हम जो आहार लेते हैं, उन सबके सार का सार वीर्य है, वह एक्स्ट्रेक्ट (सार) है। अब वह एक्स्ट्रेक्ट यदि ठीक से सँभल जाए तो आत्मा जल्दी प्राप्त हो जाता है और सांसारिक दु:ख नहीं आते, शारीरिक दुःख नहीं आते, अन्य कोई दु:ख नहीं आते।
प्रश्नकर्ता : ब्रह्मचर्य तो अनात्म भाग में आता है न? दादाश्री : हाँ, मगर वह पुद्गलसार है। प्रश्नकर्ता : पुद्गलसार है वह समयसार को कैसे मदद करता है?