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समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य (पूर्वार्ध)
(संक्षिप्त रूप में)
खंड : १ विषय का स्वरूप, ज्ञानी की दृष्टि से
१. विश्लेषण, विषय के स्वरूप का प्रश्नकर्ता : कुदरत को यदि स्त्री-पुरुष की आवश्यकता है तो ब्रह्मचर्य किस लिए दिया?
दादाश्री : स्त्री-पुरुष दोनों कुदरती है और ब्रह्मचर्य का हिसाब भी कुदरती है। मनुष्य जैसे जीना चाहता है, वह खुद जैसी भावना करता है, उस भावना के फल स्वरूप यह संसार (प्राप्त होता) है। ब्रह्मचर्य की भावना पिछले जन्म में की हो तो इस जन्म में ब्रह्मचर्य उदय में आएगा। यह संसार खुद का प्रोजेक्शन है।
प्रश्नकर्ता : पर ब्रह्मचर्य का पालन किस फ़ायदे के लिए करना चाहिए?
दादाश्री : हमें यहाँ कुछ लग जाए और खून बहता हो तो फिर उसे बंद क्यों करते हैं? उससे क्या फ़ायदा?
प्रश्नकर्ता : अधिक खून न बह जाए इसलिए। दादाश्री : खून बह जाए तो क्या होगा? प्रश्नकर्ता : शरीर में बहुत वीकनेस (कमज़ोरी) आ जाती है। दादाश्री : वैसे ही अधिक अब्रह्मचर्य से भी वीकनेस आ जाती
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य है। ये सारे रोग ही अब्रह्मचर्य की वजह से है। क्योंकि सारा खाना जो खाते हो, पीते हो, श्वास लेते हो, उन सभी का परिणाम आते आते उसका... जैसे इस दूध से दही बनाते हैं, वह दही आखिरी परिणाम नहीं हैं, दही का फिर आगे होते होते मक्खन होगा, मक्खन से घी होगा। घी आख़िरी परिणाम है वैसे ही इसमें ब्रह्मचर्य, सारा पुद्गलसार है।
इसलिए इस संसार में दो वस्तुएँ व्यर्थ में नहीं गँवानी चाहिए। एक, लक्ष्मी और दूसरा, वीर्य। संसार की लक्ष्मी गटरों में ही जाती है। इसलिए लक्ष्मी खुद के लिए खर्च नहीं करनी चाहिए, उसका बिना वज़ह दुरूपयोग नहीं होना चाहिए और यथासंभव ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। जो खाना खाते हैं, उसका अर्क होकर अंत में अब्रह्मचर्य के कारण खतम हो जाता है। इस शरीर में कुछ खास नसें होती है, जो वीर्य को संभालती है और वह वीर्य इस शरीर को संभालता है। इसलिए हो सके वहाँ तक ब्रह्मचर्य का ध्यान रखना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : पर अभी मेरी समझ में यह बात नहीं आती कि मनुष्य को ब्रह्मचर्य किस लिए पालना चाहिए?
दादाश्री : तो फिर उसे लेट गो करो आप। ब्रह्मचर्य मत पालना। मैं कुछ ऐसे मत का नहीं हूँ। मैं तो इन लोगों से कहता हूँ कि ब्याह कर लो। कोई शादी करे उसमें मुझे हर्ज नहीं हैं।
मैं अपनी बात आपसे मनवाना नहीं चाहता। आपको खुद को अपनी ही समझ में आना चाहिए। ब्रह्मचर्य नहीं पाल सकें यह बात अलग है, पर ब्रह्मचर्य के विरोधी तो नहीं ही होना चाहिए। ब्रह्मचर्य तो (मोक्ष में जाने के लिए - आत्मसाधना का) सबसे बड़ा साधन है।
ऐसा है न, जिसे सांसारिक सुखों की ज़रूरत है, भौतिक सुखों की जिसे इच्छा हैं, उसे शादी कर लेनी चाहिए। सब कुछ करना चाहिए और जिसे भौतिक सुख पसंद ही नहीं हों और सनातन सुख चाहिए, उसे शादी नहीं करनी चाहिए।