________________
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
जाता है, वाणी मर जाती है!' मैंने बताया कि ये सभी मरे हुए ही हैं, लेकिन आपको भान नहीं रहता और फिर वही की वही दशा उत्पन्न हो जाती है। वर्ना यदि ब्रह्मचर्य संभल पाए तो एक-एक मनुष्य में तो कितनी शक्ति है! आत्मा का ज्ञान (प्राप्त) करे वह समयसार कहलाए। आत्मा का ज्ञान हो और जागृति रहे तो समय का सार उत्पन्न हुआ और ब्रह्मचर्य वह पुद्गलसार है।
मन-वचन-काया से ब्रह्मचर्य पाले तो कितना अच्छा मनोबल रहे, कितना अच्छा वचनबल रहे और कितना अच्छा देहबल रहे! हमारे यहाँ भगवान महावीर तक कैसा व्यवहार था? एक-दो बच्चों तक (विषय का) 'व्यवहार' रखते थे। पर इस काल में वह व्यवहार बिगड़नेवाला है, ऐसा भगवान जानते थे, इसलिए उन्हें पाँचवा महाव्रत (ब्रह्मचर्य का ) डालना पड़ा।
इन पाँच इन्द्रियों के कीचड़ में मनुष्य होकर क्यों पड़े हैं, यही अजूबा है ! भयंकर कीचड़ है यह तो ! परंतु यह नहीं समझने से अभानावस्था में संसार चलता रहता है। ज़रा-सा विचार करे तो भी कीचड़ समझ में आ जाए। पर ये लोग सोचते ही नहीं न! सिर्फ कीचड़ है। तब भी मनुष्य क्यों इस कीचड़ में पड़े हैं? तब कहें, 'दूसरी स्वच्छ जगह नहीं मिलती है इसलिए ऐसे कीचड़ में सो गया है। '
प्रश्नकर्ता: अर्थात् कीचड़ के प्रति अज्ञानता ही है न?
दादाश्री : हाँ, उसकी अज्ञानता है, इसलिए कीचड़ में पड़ा है। यदि इसे समझने का प्रयत्न करें तो समझ में आए ऐसा है, पर खुद समझने का प्रयत्न ही नहीं करता है न!
इस संसार में निर्विषय विषय हैं। इस शरीर की ज़रूरत के लिए जो कुछ दाल-चावल-सब्जी-रोटी, जो मिले उसे खाएँ। वे विषय नहीं हैं। विषय कब कहलाए ? आप लुब्ध हों तब विषय कहलाता है अन्यथा वह विषय नहीं, वह निर्विषयी विषय है। अतः इस संसार में जो आँखों से दिखता है वह सभी विषय नहीं है। लुब्धमान हो तब ही विषय है। हमें कोई विषय छूता ही नहीं है।
समझ से प्राप्त ब्रह्मचर्य
यह मकड़ी जाला बुनती है, फिर खुद उसमें फँसती है। उसी प्रकार यह संसार रूपी जाला खुद का ही बुना हुआ है। पिछले जन्म में खुद ने ही माँग की थी। बुद्धि के आशय में हमने टेन्डर भरा था कि एक स्त्री तो चाहिए ही। दो-तीन कमरें होंगे, एकाध लड़का और एकाध लड़की, नौकरी, बस इतना ही चाहिए। उसके बदले वाइफ (पत्नी) तो दी पर ऊपर से सास-ससुर, साला - सलहज, मौसी सास, चाची सास, बुआ सास, मामी सास... कितना फँसाव, फँसाव !!! इतना सारा झमेला साथ में आएगा यह मालूम होता तो यह माँग ही नहीं करते कभी हमने टेन्डर तो भरा था अकेली वाइफ का, फिर यह सब किस लिए दिया? तब कुदरत कहती है, 'भाई, वह अकेली तो नहीं दे सकते, मामी सास, बुआ सास, यह सब साथ में देना पड़ता है। आपको उनके बिना मजा नहीं आता। यह तो सारा लंगर ( पलटन) साथ हो तो ही ठीक से मज़ा आता है!'
६
अब तुझे संसार में क्या-क्या चाहिए, यह बता न ! प्रश्नकर्ता: मुझे तो शादी ही नहीं करनी है।
दादाश्री : यह देह मात्र ही मुसीबत है न? यह पेट दुःखे तब इस देह के ऊपर कैसा होता है? तब दूसरे की दुकान तक व्यापार बढ़ाएँगे (शादी करेंगे) तो क्या होगा? कितनी मुसीबत होगी? और फिर दो-चार बच्चे होंगे। स्त्री (पत्नी) अकेली हो तो ठीक है, वह सीधी चलेगी पर यह तो चार बच्चे ! तो क्या हो? अंतहीन मुसीबतें !
योनि में से जन्म लेता है, उस योनि में तो भयंकर दुःखों में रहना पड़ता है और बड़ा हुआ कि फिर योनि की ओर ही वापिस जाता है 1 इस संसार का व्यवहार ही ऐसा है। किसी ने सच्चा सिखाया ही नहीं न ! माँ-बाप भी कहते हैं कि अब शादी करो। और माँ-बाप का फ़र्ज़ तो है न? पर कोई सच्ची सलाह नहीं देता कि इसमें ऐसा दुःख है।
शादी तो सचमुच बंधन है। भैंस को तबेले में बंद करें ऐसी हालत होती है। उस फँसाव (बंधन) में नहीं फँसे वह उत्तम, फँसे हैं तो भी निकल पाएँ तो उत्तम और नहीं तो आख़िरकार फल चखने केबाद निकल